उतरन
Sarita|November First 2024
कोई जिंदगीभर उतरन पहनती रही तो किसी को उतरन के साथ शेष जिंदगी गुजारनी है, यह समय का चक्र है या दौलत की ताकत.
निर्मला कर्ण
उतरन

शोभा के मातापिता की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो जाने के बाद उसे उस के मामा अपने साथ ले आए. उस के परिवार में कोई नहीं था जो उस की देखभाल कर सके. उस के दादादादी की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी और पिता अपने मातापिता की इकलौती संतान थे. मामा के अतिरिक्त उस का और कोई ठिकाना नहीं था.

सात वर्ष की शोभा को देख कर मामी नाक भौं सिकोड़ती बोलीं, “कैसी अभागी है, मांबाप को खा गई और अब हमारे सिर पर बोझ बन कर आ गई है. हम अपने बच्चों को देखें या इसे."

शोभा, जिसे अभागी का अर्थ भी पता नहीं था, मामी के मुंह से ऐसी फटकार सुन कर घबरा गई. यही मामी जब वह अपने मम्मीपापा के साथ आती थी तब कितना प्यार दिखाती थी. मामामामी के एक बेटा और एक बेटी थे. मिनी शोभा से छोटी थी, वह 4 वर्ष की थी और छोटा दीपू अभी मात्र एक वर्ष का ही था.

मामी के नहीं चाहने पर भी शोभा मामाजी के दबाव के कारण उस घर में रह रही थी. धीरेधीरे मामी ने शोभा से घरेलू काम लेना प्रारंभ किया.

समय आदमी को सबकुछ सिखा देता है. शोभा समय से पहले समझदार हो गई. वह धीरेधीरे घर के सभी काम सीख गई और मामी के अधिकतर काम वह कर देती. उन की अपनी बेटी मिनी तो नाजों पली थी, वह उन की प्यारी दुलारी थी. उसे कुछ भी न कहतीं और सारा काम शोभा से करवातीं. शोभा को घर में पढ़ाई का बहुत कम अवसर मिलता था. वह तो मामाजी के कारण उस के स्कूल और कालेज की पढ़ाई चल रही थी वरना मामी तो उसे पढ़ाने के पक्ष में बिलकुल न थीं. मामा के आगे उन की एक नहीं चली.

लेकिन एक मामले में मामाजी ने भी आंखें बंद कर लीं, आखिर वे मामी का कितना विरोध करते. मामी ने कभी भी शोभा को नए कपड़े नहीं दिए. वह हमेशा मिनी की उतरन ही पहनती. मिनी भरेपूरे शरीर की मल्लिका थी जबकि शोभा बहुत दुबलीपतली. उसे भरपूर पौष्टिक भोजन नहीं मिलता था, इसलिए उस का शारीरिक विकास अधिक नहीं हो पाया था. सो, मिनी के कपड़े उसे आ जाते.

Denne historien er fra November First 2024-utgaven av Sarita.

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