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एक नेता का कबूलनामा
Naye Pallav
|Naye Pallav 20
चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। सीट बंटवारे की पहली लिस्ट पार्टी जारी कर चुकी थी। कई नेताओं के नाम इस लिस्ट में नहीं थे। सभी असंतुष्ट नेता पार्टी कार्यालय में आकर हंगामा मचा रहे थे। कुछ नेता 'पार्टी अध्यक्ष मुर्दाबाद' के नारे लगा रहे थे, तो कुछ गमला-मेज-कुरसी पटक रहे थे। लोटन दास अपनी धोती खोलकर प्रवेश द्वार पर बिछा धरने पर बैठ गये। अन्य नेताओं से चिल्लाकर बोले, "भाइयों, आप भी इस मनमानी के खिलाफ हमारा साथ दें। पैसे देकर खरीदे गये हैं टिकट ! इसके खिलाफ हम यहां नंग-धड़ंग धरना देंगे, प्रदर्शन करेंगे।"

लोटन दास की बात सुनकर कुछ और नेता वहां आ गये। सभी धोती-कुरता खोलने लगे। भीड़ में से आवाज आयी, "नहीं चलेगी, नहीं चलेगी, सौदेबाजी नहीं चलेगी । "
कुछ ही देर में मीडियाकर्मी वहां पहुंच गये। दर्जनों कैमरा देख नेताओं में और जोश आ गया। कुछ तो अपनी चड्डी उतारने लगे, लेकिन बगलवाले ने ऐसा करने से रोका। फुसफुसाकर नेता को बताया, "चैनल पर लाइव आ रहा है।"
दूसरी तरफ शनिचर महतो मैदान में लोट रहे थे। चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे थे, “एक बीघा जमीन बेचकर पैसे दिये थे। मेरी तीनों पत्नियां मना कर रही थीं। बेटा घर छोड़कर चला गया। बेटी एक कार्यकर्ता के साथ भाग गयी। फिर भी मैं टिकट के लिए रात-दिन लगा रहा। पैसे लेकर भी मुझे टिकट नहीं दिया गया। अब मैं कौन-सा मुंह लेकर घर जाऊं।" इतना बोलते ही शनिचर की हालत खराब हो गयी। ... और फिर, हृदयगति रुक जाने से उनकी मौत हो गयी।
इसपर पार्टी कार्यालय में जमकर हंगामा मचा। भारी संख्या में पुलिस आ गयी। डंडे चले। टीवी पर लाइव चलता रहा। और देखते ही देखते यमराज को शनिचर महतो की मौत की खबर मिल गयी। पलक झपकते यमराज वहां पहुंच गये और अपने भैसा पर शनिचर महतो की आत्मा को जबरन बैठा चलते बने।
यमराज ने चित्रगुप्त के दरबार में लाकर शनिचर को पटक दिया। चित्रगुप्त ने इशारे से पूछा, "कौन है यह ?"
"महाराज, अभी-अभी मरा है। नाम शनिचर महतो है। खुद को वहां नेता बताता था। चुनाव में टिकट नहीं मिलने का दरद बर्दाश्त नहीं कर सका। हृदयगति रुक जाने से इसकी मृत्यु हो गयी।" यम ने हाथ जोड़कर कहा।
"ठीक है, शनिचर, तुम कठघरे में आ जाओ। तुम्हारे पाप-पुण्य का हिसाब-किताब हो जाने पर ही यह निर्णय लिया जाएगा कि तुम्हें स्वर्ग भेजना है या नरक।" चित्रगुप्त ने कड़ककर कहा।
शनिचर महतो दुखी मन से कठघरे में आ गये। उनसे कुछ पूछा जाता, इससे पहले ही बोल पड़े, "महाराज, या तो हमें स्वर्ग भेजिए या फिर से धरती पर। हम जिन्दगी भर जनता की सेवा किये हैं। हमें यह मौका मिलना ही चाहिए...।"
बीच में ही चित्रगुप्त महाराज बोल उठे, “कमबख्त, दुष्ट, इसे भी क्या तुम धरती समझते हो? जब कुछ पूछा जाए तो बोलना।" फिर कुछ फाइल निकालकर चित्रगुप्त देखने लगे। कुछ देर बाद नाराज होते हुए तेज आवाज में बोले, “दुष्ट, तुम पर पहला आरोप यही है कि तुमने अबतक जनता को लूटा है।"
Dit verhaal komt uit de Naye Pallav 20-editie van Naye Pallav.
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