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छोटे लोगों का बचपन
मुझे अभी भी याद है एक बार तीसरी कक्षा की गणित शिक्षिका मुझसे त्रस्त होकर झल्लाईं, "जितने सवाल देती हूँ, सभी को गलत हल कैसे कर लेते हो?"
थकान ऑन लाइन
पहले महीने ऑनलाइन क्लासेस शुरू होते ही हम भाई-बहनों की खुशी दुगुनी हो गई। अब मोबाइल पर खेल के साथ थोड़ी-सी पढ़ाई भी हो जाएगी। जब हम सभी मोबाइल पर आए हुए काम कर रहे होते या लिखने में ज़रा-सा ध्यान लगा ही होता तभी फोन बन्द हो रहता।
पत्थर चला घूमने
वैसे वह नन्ही धारा भी बड़ी बदमाश थी। कभी सीधी चलती तो कभी आड़ी-तिरछी। और कभी तो वह सरपट नीचे कूद पड़ती। नव्हे पत्थर को भी खूब मज़ा आ रहा था।
मक्के के फूल
हरी थी मन भरी थी, मोतियों से जड़ी थी। राजाजी के बाग में दुशाला ओढ़े खड़ी थी।
चमगादड़ करोड़ों वर्ष से वायरसों को गच्चा दे रहे हैं
अभी तक सार्स-कोव-2 वायरस (कोविड-19 बीमारी के लिए ज़िम्मेदार कोरोना वायरस) लगभग डेढ़ करोड़ लोगों को बीमार कर चुका है लेकिन चमगादड़ों का ऐसे वायरसों के साथ जीने का काफी पुराना इतिहास रहा है।
कार्बन एक मजेदार तत्व
जब मैं स्कूल में थी, यदि उस समय कोई यह कहता/ कहती कि आगे चलकर मैं कार्बनिक रसायन शास्त्र पसन्द करने लगूंगी (और इतना पसन्द करूँगी कि उसमें पीएचडी कर लूंगी), तो मैं आसपास के पागलखानों में खाली जगह ढूँढ़ने निकल जाती। कार्बनिक रसायन शास्त्र के प्रति मेरा प्रेम कॉलेज के मेरे शिक्षकों के कारण और जो कुछ मैंने बाद में अपने आप सीखा उसके कारण है। इसने मुझे कार्बन नाम के तत्व का प्रशंसक बना दिया। तुम्हें थोड़ा अन्दाज़ा देने की कोशिश करती हूँ कि ऐसा क्यों है।
अन्तिम भाग - बोरेवाला
अब तक तुमने पढ़ाः अनु की गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई हैं। चार महीने पहले ही उसकी सजिचेची की मौत हो जाती है। तब से अम्मा उदास रहने लगती हैं और अच्चन भी घर में कम ही दिखाई देते हैं। पहले तो अनु फटी-पुरानी बोरियों के थेगड़ों को सिलकर पहनने वाले चाकप्रान्दन से डरती है। पर धीरे-धीरे अनु को चाकप्रान्दन से बातें करना अच्छा लगने लगता है। फिर एक दिन रघु मामन चाकप्रान्दन को इलाज के लिए कुतिरवट्टम ले जाने की बात करते हैं। अनु को कुछ समझ नहीं आता। वो सोचती है शायद चाकप्रान्दन को इलाज की ज़रूरत है। पर माँ तो इलाज से ठीक होती नज़र नहीं आतीं। काश कोई मुझे इस सबके बारे में समझाता, मुझसे बात करता...
टीके (वैक्सीन) किस तरह काम करते हैं?
प्रतिरक्षा तंत्र हमारे शरीर में बीमारियों के खिलाफ सुरक्षा की व्यवस्था है। यह तंत्र अंगों, कोशिकाओं और प्रोटीन्स से मिलकर बना है जो साथ-साथ काम करते हैं और शरीर में बाहर से आने वाले घुसपैठियों पर नज़र रखते हैं, उन्हें नष्ट करते हैं। इन घुसपैठियों को रोगजनक (पैथोजेन) कहते हैं। इनमें बैक्टीरिया और वायरस शामिल हैं।
नज़रिया
इस दौरान लोगों से मुझे अलग तरह की तारीफें भी सुनने को मिलतीं। वे कहते. "नैन नक्श अच्छे हैं,ऊपर वाला थोड़ा रंग और दे देता तो बढ़िया होता।"
फीकल सैक
नन्हे पक्षियों के डाइपर
हरा समन्दर गोपी चन्दर
मैंने कभी समुद्र नहीं देखा था। और मेरे पास अपनी अलग से कोई छतरी भी नहीं रही थी। इसलिए जब मुझे अपने जीवन की पहली छतरी मिली, वो भी समुद्री हरे रंग की, तो ये बहुत बड़ी बात थी।
लॉकडाउन और कलात्मकता
पिछले कुछ महीनों में बन्द जगहों में सिमटे रहने को मजबूर होकर हम सभी अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगियों में ठहराव के आदी होते जा रहे हैं। मैं पहले से कहीं ज़्यादा सपने देख रही हूँ।
सड़कों पर निकली किताबों की एक नदी
कनाडा में एक शहर है, टोराँटो। यहाँ हर साल एक उत्सव मनाया जाता जिसे 'नुइ ब्लांश' कहा जाता है। फ्रंसिसी में इसका मतलब होता है, 'सफेद रात' या यह कह लें कि 'जगमगाती हुई रात।
चमगादडों की दुनिया
रोहित चक्रवर्ती एक वाइल्डलाइफ बायॉलोजिस्ट हैं। उन्हें चमगादड़ों की खोजबीन करने में बहुत मज़ा आता है। वह चमगादड़ों पर काफी सारा शोध कर चुके हैं। और इस बात की उम्मीद करते हैं कि ऐसा करके वह इन जानवरों को बचा सकते हैं जिनसे उनको इतना प्रेम है!
आसमान में एक शानदार आतिशबाज़ी
सर्दियाँ शुरू होते ही अन्तरिक्ष में रुचि रखने वाले अपनी नज़र आसमान की तरफ घुमा लेते हैं। ठण्ड की रातों में आसमान साफ रहता है, बादल नहीं होते हैं। ऐसे में कम्बल या शॉल ओढ़कर किसी पहाड़ पर या फिर घर की छत पर स्टार गेज़िंग का मज़ा कुछ अलग ही होता है।
मेरे बगीचे का पीर नीम बाबा
चैत का महीना है और भोर के पहले का अँधेरा है। मेरे बगीचे में रहने वाली बुलबुल और श्यामा ने अभी चहकना शुरू नहीं किया है। दिन गर्म होने लगे हैं लेकिन अभी हवा में ठण्डक है। उसी का आनन्द लेने के लिए सुबह की मीठी नींद छोड़कर बगिया में आ बैठा हूँ। घनी शान्ति पसरी हुई है। रात का जादू अभी खतम नहीं हुआ है।
लॉकडाउन में नानी
होली के तीन दिन बाद आज घर में फिर से थोड़ी रौनक आई है। घर भी पूरा चमचमा रहा है। इस नए घर को और नया बनाया जा रहा है। सफाई खतम ही हुई थी कि दरवाज़े पर किसी ने दस्तक दी।
99.9 प्रतिशत मार दिए, चिन्ता तो 0.1 प्रतिशत की है
आजकल साबुन, हैंड सेनिटाइज़र्स, कपड़े धोने के डिटर्जेंट, बाथरूम-टॉयलेट साफ करने के एसिड्स, फर्श साफ करने, बरतन साफ करने, सब्ज़ियाँ धोने के उत्पादों वगैरह सबके विज्ञापनों में एक महत्वपूर्ण बात जुड़ गई है। वह बात यह है कि ये उत्पाद 99.9 प्रतिशत जर्स को मारते हैं। मजेदार बात यह है कि सारे उत्पाद जादुई ढंग से 99.9 प्रतिशत जर्स को ही मारते हैं। और तो और, ये विज्ञापन तुम्हें यह भी सूचित करते हैं कि ये कोरोनावायरस को भी मार देते हैं।
मुकू की दास्तान
और हाँ, मुकू के साथ मैं भी तो थी। एक इन्सान। मुझे कभी-कभी ऐसा महसूस होता है कि वो इन्सानों की तरह सोचता है,या यह सोचता है कि वो भी इन्सान है। या फिर शायद वह यह सोचता है कि हम सब चूजे हैं।
टेलीफोन केबल से भकम्प संवेदी
अमेरिका के एक भूकम्प विज्ञानी जोवेन ज़ान ने विचित्र अन्दाज़ में नया साल मनाया। उन्होंने नए साल के जश्न के दौरान बैंड की तेज़ ध्वनि से उत्पन्न कम्पन को ज़मीन के नीचे दबे प्रकाशीय तन्तुओं की मदद से रिकॉर्ड किया।
लाल कलंगी
लाल कलंगी
खोई-पाई चीज़ों से बुनाई
घर में जब भी सफाई होती है तो मेरी माँ मुझे ज़रूर डाँटती हैं कि ये क्या कबाड़ इकट्ठा कर रखा है। अब भला उन्हें कैसे समझाऊँ कि वो कबाड़ नहीं, बल्कि काम की ही चीजें हैं।
कैमरे के लैंस से वाइल्डलाइफ अडवेन्चर
जंगलों में घूमना, बाघ, हाथी, नाग जैसे जानवरों को करीब से देखना, उनकी फोटो निकालना ये था बेदी ब्रदर्स का बचपन। बड़े होकर बेदी ब्रदर्स भारत के जानेमाने वाइल्डलाइफ फिल्ममेकर और फोटोग्राफर बने। बेदी खानदान की तीन पुरतें इसी फील्ड में हैं उनके पिता रमेश बेदी नामचीन वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर और लेखक थे, बेटे नरेश व राजेश बेदी अपने फिल्मों और फोटो के लिए मशहूर हैं और उनके बेटे भी इसी रास्ते पर चल रहे हैं। पिछले चार दशकों से देश के लुप्त हो रहे जानवटों, खासकर बड़े जानवरों पर बेदी ब्रदर्स ने अनेक फिल्में बनाई हैं। उनकी तमन्ना थी कि वे आसमान से जंगलों की फिल्मिंग करें। और 2013 में दोनों भाइयों ने दूरदर्शन प्रसार के साथ मिलकर एक ऐसी सीटीज़ निकाली जिसमें उन्होंने यही किया। इस सीटीज़ का नाम था वाइल्ड अडवेन्चर्स बलूनिंग विथ बेदी ब्रदसी जनवटी में भोपाल लिटरेचर फेस्टिवल में बेदी बन्धुओं ने भी भाग लिया था। इस मौके पर उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं:
अपना धर्म छोड़ना
मैं तब चालीस साल, पाँच महीने और सत्रह दिन का था। गर्मियों की एक शाम मैं पटना में था। पटना मेरे लिए बिलकुल नया शहर था। यहाँ मुझे कोई नहीं जानता था। इसलिए मैं जो करना चाह रहा था उसे करने के लिहाज़ से यह बिलकुल मुफीद जगह थी। दुकानों पर लगे बोर्ड पढ़ते हुए मैं आगे बढ़ता जा रहा था। और आखिरकार मुझे वो जगह मिल ही गई बाल कटाने का सैलून।
टिड्डियाँ और हम
अप्रैल-मई में तुमने भारत में टिड्डी दलों के हमले के बारे में सुना होगा। राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों से होते हुए पहले ये मध्यप्रदेश के कई जिलों में और अब आगरा-दिल्ली में दिख रहे हैं।
असली अनिल कपूर
जिसे देखो वो आज काम पर लगा हुआ था। वैसे तो रोज़ ही स्कूल की साफ-सफाई सब मिलकर किया करते थे पर आज सबके हाथों में एक अलग ही तेज़ी थी और चेहरों पर चमक भी।
जिस दिन मैं बनी... दुनिया की सबसे तेज़ धावक
उन दिनों मैं होशंगाबाद के बोरी-सतपुड़ा के जंगलों में सात बहनों (बैब्लर) को पकड़ने की कोशिश कर रही थी।
शहीद होती मछलियाँ
शहीद होती मछलियाँ
बच्चा रसोईघर
जब लॉकडाउन हुआ तो ये देखा गया कि यहाँ बस्तियों में सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं आई। इसलिए यहाँ ज़मज़म पर एक कम्युनिटी किचन शुरू किया गया। फिर यहाँ से बस्तियों में खाना बाँटा जाने लगा।
हम कागज़ नहीं दिखाएंगे
मैं अपना नाम नहीं बताऊँगी - न तुमको, न किसी और को। मैं किसी को कागज़ नहीं दिखाऊँगी, यह सिद्ध करने के लिए कि मैं यहाँ की हूँ। यह मुल्क मेरा है।