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जूं बाली बूजी
नैंसी की बुआ को दो ही काम पसन्द हैं।
क्यो क्यो
(जनवरी 2022) मेरा जवाब
कपड़ों का रंग फीका क्यों पड़ जाता है?
यह सवाल शायद ही तुम्हें तंग करता हो। क्योंकि पहन-पहनकर जी भरने से पहले तुम्हारे सबसे पसन्दीदा कपड़े तो छोटे हो जाते होंगे।
भाग 2- नन्हा राजकुमार
पिछले अंक में तुमने पढ़ा लेखक को बचपन में बड़ों ने चित्र बनाने से हतोत्साहित किया तो वह पायलट बन बैठा। अपनी एक यात्रा के दौरान उसे रेगिस्तान में जहाज़ उतारना पड़ा। वहाँ उसकी भेंट एक नन्हे राजकुमार से हुई। राजकुमार ने उससे भेड़ का चित्र बनाने के लिए कहा और फिर एक-दूसरे से परिचय का सिलसिला शुरू हुआ। राजकुमार ने बताया कि वह एक छोटे-से ग्रह का निवासी है। अब आगे...
जिन्न ऐसे होते हैं?
"जिन्न अक्सर सुनसान जगहों में रहते हैं। कुछ तो खुले पानी या समुन्दर में भी रहते हैं। कुछ खतरनाक किस्म के जिन्न कब्रिस्तान में भी पाए जाते हैं, जो इन्सानों का गोश्त खाते हैं। अगर कोई ज़िन्दा आदमी रात-बिरात इनके बीच फँस जाए तो उसका खून पी जाते हैं। और तो और कुछ जिन्न तो इन्सानी शक्ल में रहते हैं। कोई भूल से भी उनके हाथ पड़ जाए तो उसे कैद करके भेड़ बना देते हैं।"
अपना ग्राउंड
शहर की ठसाठस भरी गलियों, महल्लों और कांयकांय के बीच एक ग्राउंड था। अपना ग्राउंड। सबका ग्राउंड। ग्राउंड में गड्ढे थे। कई जगह पत्थर-कंकड़ भी। जहाँ ग्राउंड खतम होता, वहाँ कोने में कचरे का ढेर था। अब क्यूँकि कचरे का ट्रक हमारे महल्ले में नहीं आता था, वो ढेर पहाड़ का रूप ले चुका था। कई पुश्तों ने अपना कचरा यहाँ स्वाहा किया होगा।
भाग 3- नन्हा राजकुमार
पिछले अंक में तुमने पढ़ा...लेखक को विश्वास है कि नन्हा राजकुमार B612 ग्रह से है जिसकी खोज कुछ ही समय पहले हुई थी। छह साल हो गए उसके दोस्त को गए लेकिन लेखक को उसकी बातें याद हैं...धीरे-धारे वह अपने दोस्त के बारे में जानने लगता है। यह भी कि नन्हे राजकुमार के ग्रह के पर कुछ पौधे तो अच्छे माने जाते हैं और कुछ पौधे बुरे, जैसे कि बाओबाब। अपने दोस्त की बातों के समझने के बाद और उसके आग्रह पर लेखक ने उसके ग्रह पर होने वाले बाओबाब का एक चित्र बनाया जो काफी अच्छा बना। अब आगे....
अस्पताल और कोरोना का डर
मरीज़ों में कोई चुपचाप लेटा था तो किसी की नज़र ऑक्सीजन डिस्प्ले से हट ही नहीं रही थी। सपना मन ही मन सोचने लगी कि ऐसा माहौल तो जब से कोरोना शुरू हुआ है तब से सिर्फ टी.वी., रेडियो और अखबारों में सुनते और देखते आ रहे थे। अब कोरोना मरीज़ों को अपने सामने कुछ मीटर की दूरी पर बेड पर लेटे देख उसे डर-सा लगने लगा।
मदद
बड़े पार्क के नाम से मशहूर एक पार्क खिचड़ीपुर में है। उसी पार्क से सटे एक घर में रहने वाली साजिया लॉकडाउन में बन्द होकर रह गई है। इस वक्त वह ये सोचकर अपने घर की खिड़की के सामने कुर्सी डालकर बैठ गई है कि आज का मौसम उसे अच्छा लग रहा है। वह टकटकी लगाए आसमान में ढलते सूरज को देख रही है जो खिचड़ीपुर की कूड़ा पहाड़ी के कारण वक्त से पहले ही छुपता जा रहा है।
तोहफा
नए स्कूल में आए अभी कुछ ही दिन हुए थे। मैंने और मेरी कुछ सहेलियों ने साथ ही में इस स्कूल में एडमिशन लिया था। इसलिए हमारा एक बनाबनाया ग्रुप था। हम ज़्यादातर साथ ही रहते। और उस स्कूल में पहले से पढ़ रहे दूसरे बच्चों से बहुत ज़्यादा मतलब नहीं रखते थे। खासकर लड़कियों के एक ग्रुप से हमारी कुछ खास बनती नहीं थी। इसकी एक वजह मॉनिटर के लिए मुझे चुना जाना भी था।
तटरेखा को नापना
एक कील से शुरुआत करते हैं। जब हमें किसी कील की लम्बाई नापना हो तो उसे 6 इंच स्केल से नापकर देख सकते हैं। ऐसा करने पर कील की लम्बाई यदि 3.7 सेंटीमीटर और 3.8 सेंटीमीटर के निशान के बीच आ रही है तो इस लम्बाई को हम कैसे बताएं? हम चाहते हैं कि हमें कील की एकदम ठीक-ठीक लम्बाई पता चल जाए। तो हमने वर्नियर कैलीपर्स की मदद से कील की लम्बाई नापी। इस बार लम्बाई 3.73 सेंटीमीटर निकली। किसी दोस्त ने नापी तो 3.74 सेंटीमीटर निकली।
कटे खेतों में बीनना
20 मार्च जब मैं हॉस्टल से घर गया, तो यह सोचकर गया था कि मैं बोर्ड के बचे हुए दो पेपर देने ज़्यादा से ज़्यादा दस दिनों में वापस आ जाऊँगा। मैं अपनी विज्ञान और हिन्दी की पुस्तकें भी साथ ले गया था ताकि तैयारी कर सकूँ। लेकिन लॉकडाउन बढ़ता रहा। और मैं लगभग 3 महीने (सटीक से पूरे 82 दिन) बाद हॉस्टल लौटा। बोर्ड के लम्बित पेपर रद्द कर दिए गए हैं और परिणाम घोषित होने वाले हैं। मेरा छोटा भाई नितेश (जो छह साल का है) अभी भी घर पर है। मैं इसलिए आया हूँ क्योंकि आईटीआई के आवेदन की घोषणा हो गई है और मुझे फॉर्म भरने हैं।
मैं भी वहाँ था...
मैं उस घटना की बात कर रहा हूँ जिसने दशकों से ब्राज़ील के ज़बरदस्त फैन रहे फुटबॉल-प्रेमी बंगालियों को हमेशा के लिए अर्जेन्टिना का फैन बना दिया। और यह लगभग रातोंरात हो गया। मानो हम सबके दिमाग पर किसी ने ऐसा जादू कर दिया जिसे उसके बाद कोई दोहरा नहीं सका है।
गुण्डी में मुण्डी
एक रात की बात है। हम सब सो रहे थे। अचानक माँ ने मुझे और भाई को उठाया। माँ और पापा टेंशन में थे। "ये पानी कहाँ से आ रहा है?" माँ ने पापा से कहा। दोनों ने इधर-उधर नज़रें घुमाईं तो देखा कि ज़मीन के नीचे से पानी के बुलबुले निकल रहे थे। माँ ने कहा "उठो, उठो! हमारे घर में पानी भर गया है!”
चॉकलेट के स्वाद की अन्दर की बात
चॉकलेट का शौकीन कौन नहीं है। लेकिन क्या तुम्हें मालूम है कि चॉकलेट में ये स्वाद कैसे आता है? ये स्वाद किण्वन (फर्मेन्टेशन) के कारण आता है, जिसे सूक्ष्मजीव अंजाम देते हैं।
इतिहास के स्रोतों से... एक फूल झाड़ने वाले की गाथा
रोज़ सुबह मुझे अपने घर के सामने की सड़कों को झाड़ने की आवाज़ आती है। भोर होने से पहले अँधेरे में ही ये काम हो जाता है। जब उजाला होता है तो सड़कें साफ मिलती हैं। वे कौन लोग हैं जो यह काम करते हैं, उन्हें क्या लगता है, उन पर क्या बीतती है...
2020 लॉकडाउन डायरी
ऑनलाइन क्लास में जो काम आ रहा था, कोमल उसे करती नहीं थी। इस वजह से काफी काम इकट्ठा हो गया था। एक दिन मैम का फोन आया कि कोमल वर्कशीट करके नहीं भेज रही है, मला क्या रीज़न है। क्या आप उसे फोन नहीं देते!
तेज हवाओं की कहानी
कुछ तेज़ हवाएँ थीं। उनका एक गाँव था। वह गाँव उड़ता रहता था। उड़ते गाँव में तेज़ हवाएँ उड़ते-उड़ते रहती थीं। दिन भर उड़ते-उड़ते वे थक जाती थीं। शाम को वे सोने जातीं। मगर उनकी नींद उड़ जाती। नींद उड़ती तो नींद के सपने उड़ जाते। कोई सपना किसी पेड़ पर जाकर अटक जाता। वहाँ वह उस पेड़ की नींद में चला जाता।
एक छींक
सभी ने एक मुँह से उसे दिलासा तो दी थी। पर सभी के चेहरे के भाव बिलकुल अलग-अलग थे। इस तरह के बर्ताव को देख अनामिका समझ नहीं पा रही थी कि क्या सच में यह सब उसके छींकने की वजह से हो रहा है। अगर हाँ, तो वह तो मामूली-सी छींक थी।
बचपन के कपड़े
सबसे पहली याद तब की है जब कुछ बड़े हो गए थे। यानी कक्षा दसवीं में थे। साल 1971। उन दिनों भी बोर्ड परीक्षाओं की तारीख और रिजल्ट का ऐसा ही शोर होता था। आज टीवी और दूसरे माध्यमों की वजह से यह और भी ज़्यादा होता है। मानो बोर्ड की परीक्षा ना हो, कोई विश्व युद्ध हो।
इकाइयाँ
जो लोग स्कूल गए होंगे वे इकाइयों का महत्व ज़रूर जानते होंगे। कारण यह है कि परीक्षा में यदि उत्तर के साथ इकाई नहीं लिखी तो नम्बर कटते हैं। जैसे यदि लम्बाई नापने की बात है तो सिर्फ 20 लिखने से काम नहीं चलता लिखना पड़ता है कि यह 20 सेंटीमीटर है, 20 किलोमीटर है या 20 फुट है या 20 इंच। यह तो हुई परीक्षा की बात और नम्बर कटने की बात लेकिन इकाइयों का महत्व हमें कभी-कभी भयानक हादसों के बाद स्पष्ट हो पाता है।
भुतहा जामुन
हमारे गाँव में जामुन का एक पेड़ था। उसके जामुन इतने मीठे थे कि दाँत लगाओ तो मानो मुँह में शर्बत घुल जाए। पर एक अजीब बात थी। उस जामुन में कोई बीज नहीं होता था। लोग कहते थे कि उस पेड़ पर एक भूत रहता था। उसे जामुन के बीज खास पसन्द थे।
भविष्य में जीवों का रंग बदलेगा
यानी कि वातावरण में लम्बे समय के लिए बदलाव होने पर वहाँ की जानवरों की आबादी में कई (सैकड़ों हज़ारों/लाखों) पीढ़ियों बाद किसी गुण में बदलाव दिखता है। ये नया गुण उन जानवरों को बदली हुई परिस्थितियों में बेहतर ढंग से जीने में मदद कर सकता है।
भूरीबाई चित्तरकाज
जब भूरीबाई कागज़ पर रंगों से गहुए का पेड़ लिखती हैं तो उनकी स्मृति में बचपन का एक ऐसा पेड़ उगता है जो पूरी धरती पर फैला है। आसमान और धरती की आठों दिशाओं में उसके फल टपके हुए हैं। महुआ बीनते हुए, अपनी चिपचिपी उँगली की मिठास को अपनी नन्ही-सी बहन को चटाने में उसके वार्ग, मुलायम लार से भरे हुए मुंह की छुअन भी चित्र में लिखी जाती है।
लॉकडाउन के वक्त घुटन
तालाबन्दी में बचपन
शरीर का पानी गँवाकर खतरे में हाथी
हाल ही में पता चला है कि किसी गर्म दिन में हाथी अपने शरीर का 10 प्रतिशत तक पानी गँवा देते हैं। यह ज़मीन पर पाए जाने वाले किसी भी जीव की तुलना में अधिक है।
लॉकडाउन के वक्त - घर और बाहर
कोरोना से बचने के लिए सभी के खाने के बर्तन, तौलिए, कंघी इन सारी छोटी-छोटी चीज़ों को भी अलग-अलग रखा। हम सब हैं तो एक ही घर में। और फिर इस नई बीमारी पर तो किसी भी तरह का विश्वास नहीं किया जा सकता है ना!
देश की सबसे साफ नदी
देश में नदियों की हालत तो किसी से छुपी नहीं है। नदियों की साफ-सफाई के लिए अरबों-खरबों के प्रोजेक्ट आते हैं, लेकिन इन सबके बावजूद भी नदियों की हालत ज्यों की त्यों है। इसके ज़िम्मेदार सरकार के साथ-साथ हम लोग खुद भी हैं।
छिपकली को लगी ठण्ड
पहले तो मैंने सोचा कि कहीं छिपकली बीमार तो नहीं। फिर अनुमान लगाया कि छिपकली को ठण्ड ही लगी होगी। मैंने मोचा कि उसे हाथ से उठाऊँ। तभी ख्याल आया कि अगर छिपकली को पकडूंगा तो वह अपनी पूँछ से हाथ धो बैठेगी।
स्कूल खोलें या ना खोलें
पिछले महीनों से देश के स्कूल कमोबेश बन्द पड़े हैं। कहने को तो ऑनलाइन क्लास की व्यवस्था की गई है लेकिन उसकी अपनी समस्याएँ हैं। वैसे तो केन्द्र सरकार ने अक्टूबर में आदेश जारी कर दिए थे कि राज्य अपने विवेक के अनुसार स्कूल खोलने का निर्णय ले सकते हैं किन्तु अधिकांश राज्यों ने स्कूल ना खोलने या आंशिक रूप से खोलने का ही निर्णय लिया है। इस सन्दर्भ में मुख्य सवाल यह है कि स्कूल खोलने या बन्द रखने का निर्णय किन आधारों पर लिया जाएगा।