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पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने का खामियाजा भुगत रही है पूरी दुनिया
बीते दो वर्षों में कुदरत ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। कुदरती आपदाओं की झड़ी लगी हुई, तूफानों का आना, पहाड़ों का गिरना, बादल फटना आदि प्रकृति में होते नित बदलावों ने हमें चेता दिया है कि सुधर जाओ, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा।
धरती को रहने लायक बनाने की चुनौती
करीब दो वर्ष पहले मार्च 2019 को संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए मध्य अमेरिका के छोटे से देश अल सल्वाडोर की पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्री लीना पोहन ने पारिस्थितिकी तंत्र के पुनरुद्धार के लिए एक दशक मनाने का सुझाव दिया था। उनका कहना था कि इस दशक की स्थितियां ही आगामी दशकों में हमारे जीवन को निर्धारित करेंगी।
मोदी सरकार के प्रयास रंग लाये,भारत में कम हुई व्यापार में रिश्वतखोरी
कोरोना महामारी के बीच एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने विश्व के 197 देशों में व्यापार रिश्वतखोरी जोखिम के स्तर पर एक प्रतिवेदन जारी किया था। चूंकि भारत में कोरोना की दूसरी लहर जारी है अतः इस प्रतिवेदन पर शायद किसी की नजर ही नहीं गई।
अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा रहा प्रदूषण
विश्व में दरअसल औद्योगिक विकास के च ने ही पर्यावरण को सबसे अधिक क्षति पहुंचाते हुए प्रदूषण को फैलाया है। आज के विकसित देशों के बीच विकास की ऐसी अंधी प्रतियोगिता चल पड़ी है जिसके चलते विभिन्न देश प्रकृति का जरूरत से ज्यादा दोहन कर रहे हैं। इसके कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है एवं यह हमें वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, भूमि प्रदूषण एवं प्रकाश प्रदूषण के रूप में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। वहीं दूसरी ओर पृथ्वी पर जनसंख्या का विस्फोट, औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की असंतुलित गति एवं प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों का समापन कुछ ऐसे कारक हैं जो प्रदूषण की समस्या को दिन-ब-दिन गम्भीर बनाते जा रहे हैं। प्रदूषण से आशय पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष से है। प्रदूषण न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक है। विकास की दौड़ में आज का मानव इतना अंधा हो गया है कि वह अपनी सुख-सुविधाओं के लिए कुछ भी करने को तैयार है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी ही दूषित हो रही है एवं अब तो निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है।
एलोपैथ, आयुर्वेद को आपस में नहीं लड़ाएं, इन चिकित्सा पद्धतियों को बीमारियों से लड़ने दें
स्वामी रामदेव और एलोपैथिक चिकित्सकों में इस समय जुबानी जंग जारी है। रामदेव आयुर्वेद और एलोपैथिक चिकित्सक अपनी-अपनी पैथी की महत्ता बताने में लगे हैं। दोनों अपनी-अपनी चिकित्सा पद्धति के गुण गाते नहीं अघा रहे।
संक्रमण की दर कम होने से राहत लेने की बजाय तीसरी लहर से निबटने की तैयारी युद्ध स्तर पर करें
कोरोना वायरस की दूसरी प्रचंड लहर ने भारत में शहर से लेकर गांव तक जमकर तांडव मचाया है। इस लहर ने भारत में उपलब्ध चिकित्सा क्षेत्र को ध्वस्त करके रख दिया है। हाल के दिनों की कठिन परिस्थितियों ने देश में चिकित्सा क्षेत्र में व्याप्त अव्यवस्थाओं की पोल खोलकर रख दी है।
सिर्फ लॉकडाउन लगाकर नहीं जीती जा सकती कोरोनावायरस से लड़ाई
कोरोना के नए दौर को देखते हुए महाराष्ट्र में कई स्थानों पर लाकडाउन लगाया गया है तो राजस्थान सहित देश की कई राज्य सरकारों ने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं मॉनिटरिंग कर रहे हैं तो राज्यों की सरकारें भी गंभीर हुई हैं। राजस्थान सरकार शुरू से ही गंभीर रहने के साथ ही हम सतर्क हैं की टैगलाइन के साथ काम कर रही है। वहीं राजस्थान में 19 अप्रैल तक आंशिक लॉकडाउन लगा दिया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नियमित समीक्षा कर रहे हैं और आवश्यक निर्देश दिए जा रहे हैं। कोरोना प्रोटोकाल की पालना के लिए सख्ती का सहारा लेने के साथ ही 9वीं तक स्कूल, जिम, सिनेमा, स्विमिंग पूल आदि बंद करने के आदेश जारी किए जा चुके हैं। हालांकि इस बात पर संतोष किया जा सकता है कि कोरोना प्रोटोकाल की पालना को लेकर राज्यों की सरकारें सजग रही हैं पर सख्ती के अभाव में लापरवाही के कारण कोरोना के नए मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं।
रजनीकांत का प्रकाश सूर्य बनता गया
रजनीकांत ने अपनी एक्टिंग के दम पर सिनेमा जगत और लोगों के दिल में अलग ही जगह बनाई है, दादा साहब फाल्के अवॉर्ड उनके विलक्षण अभिनय कौशल, अनूठी प्रतिभा एवं हिन्दी सिनेमा को दिये गये अविस्मरणीय योगदान का सम्मान है।
चैतन्य महाप्रभु की कृष्णलीलाएं हैं अद्भुत
चैतन्य महाप्रभु भक्ति रस संस्कृति के प्रेरक एवं उन्नायक संवेदनशील एवं भावुक संत हैं। समस्त प्राणी जगत प्रेम से भर जाए, श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो जाए और उनकी आध्यात्मिकता सरस हो उठे, ऐसी विलक्षण एवं अद्भुत है श्री राधा-कृष्ण के सम्मिलित रूप अवतार की संकीर्तन रसधार एवं श्री चैतन्य की जीवनशैली।
नक्सलवाद से निपटने कारगर रणनीति जरूरी
बस्तर में सुरक्षा बलों के काफिले पर माओवादियों द्वारा घात लगाकर किया गया सुनियोजित नवीनतम किंतु क्रूर हमला, मध्य भारत के माओवादी प्रभावित क्षेत्र में कालांतर में इसी ढंग से किए गए हमलों के लंबे सिलसिले की अगली कड़ी है।
कृषि आय में कैसे हो बढ़ोत्तरी?
ऐसे समय पर जब आमतौर माना जाता है कि मुक्त बाजार व्यवस्था से कृषि उत्पादों को ज्यादा भाव मिल पाता है, जिससे किसानों की आमदनी बढ़ती है, इस पर यकीन करना कल्पना से परे है। कनाडा में वर्ष 2017 में गेहूं का जो भाव मिला, वह 150 साल पहले 1867 में लगी कीमत से कहीं कम था। यह बात केवल कनाडा पर ही लागू नहीं है बल्कि मीडिया खबरों के मुताबिक अमेरिका में भी किसानों का कहना है कि गेहूं की जो कीमत आज उन्हें मिल रही है, वह उस मूल्य से कहीं कम है जो वर्ष 1865 में खत्म हुए 4 वर्षीय गृहयुद्ध के समय मिला करती थी। तो क्या इसे बाजार व्यवस्था की कार्यदक्षता कहें?
टीका लेने पर जोर दिया जाए
देश में टीकाकरण अभियान जनवरी में जब शुरू हुआ, तब संक्रमण के मामले और मौत की संख्या बहुत कम थी और उसका ग्राफ तेजी से नीचे की ओर जा रहा था. इस कारण टीकाकरण को लेकर लोगों में गंभीरता नहीं थी. जबकि बीते एक सप्ताह में संक्रमितों और मौत की संख्या तेजी से बढ़ी है सरकार ने एज कैटेगरी को बढ़ा दिया है.
अंगड़ाई लेता किसान आंदोलन
भारत सरकार व किसानों के प्रतिनिधियों के मध्य 22 जनवरी को हुई ग्यारहवें दौर की अंतिम वार्ता के भी विफल होने तथा उसके बाद 26 जनवरी को दिल्ली में किसानों के ट्रैक्टर मार्च के दौरान कुछ जगहों पर फैली हिंसा के बाद आंदोलन में जो गतिरोध की स्थिति बन चुकी थी,वह संभवतः अब समाप्त होने जा रही है। विभिन्न राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का विरोध करने के बाद तथा फ़सल कटाई का काफ़ी हद तक काम निपटाने के बाद आंदोलनकारी किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा एक बार फिर अपने आंदोलन को तेज़ करते हुए सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है।
नेपाल में लोकतंत्र व साम्यवाद का अंतद्वंद्व
नेपाल के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संसद की बहाली का आदेश सुकून दे सकता है, लेकिन प्रश्न लोकतंत्र और साम्यवाद के बीच अंतर्द्धवंद्व का है.
भारत में धार्मिक स्थलों को विकसित किए जाने से तेज गति से आगे बढ़ रहा है -पर्यटन उद्योग
एक अनुमान के अनुसार, भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोज़गार प्रदान कर रहा है एवं देश के कुल रोज़गार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। भारत में प्राचीन समय से धार्मिक स्थलों की यात्रा, पर्यटन उद्योग में, एक विशेष स्थान रखती है। एक अनुमान के अनुसार, देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है। आज देश के पर्यटन उद्योग में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है। भारत में पर्यटन उद्योग लगभग 23,400 करोड़ अमेरिकी डॉलर की आय अर्जित कर रहा है। देश में पर्यटन उद्योग में 87 प्रतिशत हिस्सा देशी पर्यटन का है जबकि शेष 13 प्रतिशत हिस्सा विदेशी पर्यटन का है। देश में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार के चार मंत्रालयपर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय, रेल मंत्रालय एवं परिवहन मंत्रालय, आपस में तारतम्य बनाते हुए मिलकर कार्य कर रहे हैं। इन चारों मंत्रालयों के संयुक्त प्रयासों से देश में धार्मिक यात्राओं को आसान बना दिया गया है। परिवहन मंत्रालय द्वारा विभिन्न तीर्थ स्थलों पर आसानी से पहुंचने हेतु मार्गों को विकसित किया गया है एवं बुनियादी ढांचे को भी विकसित किया जा रहा है। जिसके चलते देश के नागरिकों द्वारा धार्मिक यात्राएं करने की मात्रा में काफी उछाल देखने में आ रहा है।
युवाओं को स्मार्टफोन की लत, बढ़ रहा कई बीमारियों का खतरा
विज्ञान द्वारा इजात सामग्री जितनी अधिक लाभकारी हैं उससे अधिक हानिकारक हो रही है आज के समय मोबाइल एक ऐसा कारण बन रहा हैं जिसे धीमा जहर की संज्ञा भी दी जाए तो थोड़ा हैं .यह विचार कभी कभी आता है की हमारे समय में टी.वी,मोबाइल आदि होते तो संभव है। जिस स्थिति में आज हम हैं न हो पाते,ऐसा नहीं की ये अनुपयोगी हैं पर इनके कारण समय बहुत व्यर्थ जाता है और अफीमची जैसी स्थिति बनी रहती हैं . व्यसन होना जरूरी हैं पर अतिव्यसनी होना बहुत हानिकारक हैं .मोबाइल से हमारी याददास्त कम होती जा रही हैं,पहले स्मरण शक्ति अच्छी होती थी अब मशीनी आधारित हो रही .पहले कॅल्क्युलेटर न होने से मौखिक पाँव अध्धा पौने से गणित हल हो जाते थे आज थोड़े से काम के लिए कैलकुलेटर उपयोग होता हैं .पहले सैकड़ो टेलीफोन नंबर याद रहते थे अब अपना नंबर याद नहीं रहता है.
पेट्रो पदार्थों की महंगाई के पीछे का सच
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बीते एक साल में तेल की कीमतें दोगुनी हो गई हैं। बेंट क्रूड ऑयल इंडेक्स के अनुसार मार्च 2020 में यह 30 डॉलर प्रति बैरल थी जो फरवरी 2021 में तकरीबन 64 डॉलर प्रति बैरल हो गई।
मानव अस्तित्व के लिए खतरे की घंटी
पृथ्वी के तापमान में असंतुलन से मौसम में हो रहे बदलाव से समूची दुनिया चिंतित है। लोग कहीं वैश्चिक तापमान में बढ़ोतरी के खिलाफ नये सिरे से कदम उठाने और विश्व नेताओं पर दबाव बनाने के लिए सड़क पर उतर रहे हैं। कहीं बच्चे मानव श्रृंखला बना रहे हैं और कार्बन उत्सर्जन कम करने की अपील करते नजर आ रहे हैं। संदेश यही कि चेत जाओ, अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जब मानव अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। इस संकट के निदान की दिशा में संयुक्त राष्ट्रसंघ सहित पेरिस, कोपेनहेगन, वारस, दोहा हो या कानकुन आदि, समय-समय पर दुनिया के देशों ने गहरी चिंता जतायी है।
बजट में आयकर सुधारों को गति
कोविड-19 की आर्थिक चुनौतियों के बीच छोटे आयकरदाताओं और मध्यम वर्ग को नये बजट से मुस्कराहट नहीं मिली है.
विदेशी शक्तियों की मदद से चल रहे आंदोलन से आम जनता हो रही है परेशान
सर्वोच्च न्यायालय ने जन-प्रदर्शनों, आन्दोलनों, बन्द, रास्ता जाम, रेल रोको जैसी स्थितियों के बारे में जो ताजा फैसला किया है, उस पर लोकतांत्रिक मूल्यों की दृष्टि से गंभीर चिन्तन होना चाहिए, नयी व्यवस्थाएं बननी चाहिए। भले ही उससे उन याचिकाकर्ताओं को निराशा हुई होगी, जो विरोध-प्रदर्शन के अधिकार के लिए लड़ रहे हैं। कोई भी आन्दोलन जो देश के टुकड़े-टुकड़े कर देने की बात करता हो, लाल किले का अपमान करता हो, 500 पुलिसवालों पर हिंसक एवं अराजक प्रहार करके उन्हें घायल कर देता हो या राष्ट्रीय ध्वज का निरादर करता हो, उसे किस तरह और कैसे लोकतांत्रिक कहा जा सकता है? वही लोकतंत्र अधिक सफल एवं राष्ट्रीयता का माध्यम है, जिसमें आत्मतंत्र का विकास हो, स्वस्थ राजनीति की सोच हो एवं राष्ट्र को सशक्त करने का दर्शन हो, अन्यथा लोकतंत्र में भी एकाधिपत्य, अव्यवस्था, अराजकता एवं राष्ट्रविरोधी स्थितियां उभर सकती है। सत्ता, राजनीति एवं जन-आन्दोलनों के शीर्ष पर बैठे लोग यदि जनतंत्र के आदर्श को भूला दें तो वहां लोकतंत्र के आदर्शों की रक्षा नहीं हो सकती। आज लोकतंत्र के नाम पर जिस तरह के विरोध प्रदर्शन की संस्कृति पनपी है, उससे राष्ट्र की एकता के सामने गंभीर खतरे खड़े हो गये हैं। यह बड़ा सच है कि यदि किसी राज्य में जनता को विरोध-प्रदर्शन का अधिकार न हो तो वह लोकतंत्र हो ही नहीं सकता। विपक्ष या विरोध तो लोकतंत्र का आधार होता है क्योंकि जिस देश की जनता एवं राजनीतिक दल पंगु, निष्क्रिय और अशक्त हो तो वह लोकतांत्रिक राष्ट्र हो ही नहीं सकता। विरोध तो लोकतंत्र का हृदय है और देश की अदालत ने भी विरोधप्रदर्शन, धरने, अनशन, जुलूस आदि को भारतीय नागरिकों का मूलभूत अधिकार माना है लेकिन उसने यह भी साफ-साफ कहा है कि उक्त सभी कार्यों से जनता को लंबे समय तक असुविधा होती है तो उन्हें रोकना सरकार का अधिकार एवं दायित्व है। विरोध भी शालीन, मर्यादित होने के साथ आम जनजीवन को बाधित करने वाला नहीं होना चाहिए। अदालत की यह बात एकदम सही है, क्योंकि आम जनता की जीवन निर्वाह की स्थितियों को बाधित करना तो उसके मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। यह सरकार का नहीं, जनता का विरोध है।
भारत के दबाव के चलते ही पाकिस्तान में हो पा रहा है तोड़े गये मदिर का पुनर्निर्माण
पड़ोसी देश पाकिस्तान में हिन्दू आस्था केंद्रों के जय जयकार का उद्घोष होना यूँ तो कालबाह्य हो गया है। लेकिन अभी हाल ही में जिस प्रकार से एक मंदिर को तोड़ा गया है और उसके बाद आक्रोशित हिन्दू समाज ने जो प्रतिक्रिया दी, वह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए एक शक्तिशाली कदम माना जा रहा है।
कारगर साबित होती वैक्सीन कूटनीति
भारत की वैक्सीन रणनीति ने पश्चिमी वर्चस्व वाले विमर्श की हवा निकाल दी है। दुनिया अब भारत को वैक्सीन के प्रभावी एवं किफायती आपूतकर्ता की दृष्टि से देख रही है।
सरकारी तंत्र में सुधार का मतलब
खासतौर पर शहरी मध्य वर्ग और नीति निर्माताओं द्वारा सरकार में सुधार करने की वकालत की जाने लगी। महत्वपूर्ण मुद्दा यह बना कि सरकारी विभागों और सार्वजनिक क्षेत्रों में अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या को कम करना है। इसके पीछे यह धारणा काम कर रही थी कि सरकारी क्षेत्र में जरूरत से ज्यादा नौकरियां हैं, जिन्हें कम करके सरकारी घाटे को कम किया जा सकता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का रोजगार अनुपात दुनिया में सबसे कम है। सातवें वेतन आयोग के अनुसार अगर रेलवे और डाक विभाग को निकल दिया जाए तो प्रत्येक 100,000 लोगों के लिए केवल 139 सरकारी कर्मचारी हैं। इसके विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे बाजारवादी और कथित तौर पर न्यूनतम सरकार वाले देश में प्रति 100,000 निवासियों पर 668 सरकारी कर्मचारी हैं। भारत में ज्यादातर सरकारी कर्मचारी रेलवे, डाक विभाग, गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के तहत काम करते हैं, जबकि स्वास्थ्य, शिक्षा और शहरी विकास जैसे क्षेत्रों में सरकारी कर्मचारियों की संख्या न के बराबर है।
देशभक्ति के संदर्भ में गांधी दर्शन को प्रासंगिक मानते हैं भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत हमेशा ही अपनी इस बात पर अडिग रहे हैं कि भारत की पवित्र भूमि पर जन्म लेने वाला हर व्यक्ति हिंदू है और हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है जो एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है।
पीठ दर्द से लेकर पाचन तक सुधारता है वज्रासन
वर्क फ्रॉम होम करने वाले ज्यादातर लोग पीठ के दर्द से जूझ रहे हैं। लगातार एक ही जगह पर बैठे रहने के कारण खाना पचने में दिक्कतें हो रही हैं। योग से इसमें सुधार किया जा सकता है। व्रजासन से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाने के साथ पैरों और रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाया जा सकता है। योग विशेषज्ञ डॉ.नीलोफर बता रही हैं इसे करने का सही तरीका और इस योग के 5 बड़े फायदे...
भारत ने आपदा को अवसर बनाया
कोरोना हारेगा और जिंदगी एक बार फिर पटरी पर आ जाएगी। हुआ भी कुछ ऐसा ही जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश को 3 जनवरी को वैक्सीन का खुशनुमा उपहार दिया तो पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई। पीएम मोदी ने देशवासियों को ट्वीट कर कोरोना वैक्सीन के इस्तेमाल को मंजूरी मिलने पर बधाई दी है। वैक्सीन की मंजूरी को कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में निर्णायक मोड़ बताया। जहां मोदी ने इसे आत्मनिर्भर भारत की ओर एक कदम बताया वहीं विपक्ष ने इसे असुरक्षित और बीजेपी का टीका तक बता दिया जो बहुत दुःख की बात है।
भारत पर बढ़ता विदेशी निवेशकों का भरोसा
नया वर्ष 2021 देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) बढ़ने की संभावनाओं के शुभ संकेत लेकर आया है। हाल में संयुक्त राष्ट आथक एवं सामाजिक परिषद द्वारा जारी एशिया और प्रशांत क्षेत्र में एफडीआइ के रुझान और परिदृश्य 202021 शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के प्रकोप के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था विदेशी निवेशकों के लिए आकर्षक गंतव्य बन गई है।
भारतीय ज्ञान परंपरा को पहचानने का समय
देव दीपावली के पावन अवसर पर वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति को, जिसे चोरी करके एक सदी पहले कनाडा की रेजिना यूनिवर्सिटी के संग्रहालय में पहुंचा दिया था, उसे वापस देश को सौंपे जाने की चर्चा की थी। तब वहां के कुलपति टॉमस चेज ने बड़ी मार्के की बात कही थी कि यह हमारी जिम्मेदारी है कि ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा जाए और उपनिवेशवाद के दौर में दूसरे देशों की विरासत को पहुंची क्षति की हरसंभव भरपाई की जाए।' आशा है कि इस साल के अंत तक यह मूर्ति अपने मूल स्थान पर पुनः विराजित हो जाएगी। दरअसल विपन्नता की स्थिति में अपनी बहुमूल्य संपत्ति को गिरवी रखना और स्थिति सुधरने पर उसे छुड़ाकर वापस लाना कोई नई बात नहीं है और इसका दस्तूर अभी भी जारी है।
अपराधियों से मुक्त भी हो नई संसद
हमारी संसद जनतांत्रिक मूल्यों की उम्दा अभिव्यक्ति है। उसके सदस्य जनप्रतिनिधि राष्ट्रीय विधायिका के मंच पर संघ की संवैधानिक शक्तियों का जनहित में उपभोग करते हैं। दुख की बात है कि आपराधिक पृष्ठभूमि या मानसिकता के कुछ लोग आज इसकी प्रकृति को दूषित कर रहे हैं। अब जब नए साल में नए संसद भवन का निर्माण शुरू होगा तब हमें इसे दागियों से मुक्त करने का भी संकल्प लेना चाहिए। राजनीतिक पाटयों से इस संबंध में कोई विशेष उम्मीद नहीं की जा सकती, क्योंकि उन्हें जिताऊ उम्मीदवार चाहिए।
सच्चे गांधीवादी थे राजेंद्र प्रसाद
राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के सीवान जिला के जीरादेई गांव में हुआ था. वे बचपन से ही मेधावी थे. चाहे शुरुआती शिक्षा हो या उच्च, सभी में उन्होंने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया. तमाम अभावों के बावजूद उन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल की वकालत करने के साथ ही भारत की आजादी के लिए भी संघर्ष किया. वे कभी किसी पद के लिए लालायित नहीं रहे। निःस्वार्थ भाव से पूरे देश में घूमते हुए सार्वजनिक जीवन में आनेवाली समस्याओं के हल के लिए तन-मन से पूरी तरह समर्पित रहे. चाहे कांग्रेस अध्यक्ष का पद हो या संविधान सभा अध्यक्ष का, या फिर देश के राष्ट्रपति का, उन्होंने कभी आगे आकर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत नहीं की.