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भारतीय नृत्य व नाट्य कला
कई युग बीत गए... और आज भी समय-चक्र अपनी गति से घूमता हुआ नए युग की संरचना करता जा रहा है। किन्तु आगे आने वाली संतानें कहीं अपने पूर्वजों की भव्यता व दिव्यता को भूल न जाएँ, इसके लिए अत्यन्त आवश्यक है इनको आपस में बाँधे रखना। इन युगों को एक माला में पिरोए रखने का दायित्व मुझ 'कला' को भी सौंपा गया है। विभिन्न देशों के विभिन्न कालों की संस्कृति को समेटे हुए हूँ मैं 'कला'। और आज आपके समक्ष उस देश का गुणगान करने आई हूँ, जिसने मुझे अत्यंत सम्मान दिया। केवल सम्मान ही नहीं, पावनता प्रदान कर पूर्ण भी बनाया। यहाँ आकर ही मैं माध्यम बन सकी भगवान की पूजा-अर्चना की। अतः मैं सहस्रों बार नमन करती हूँ 'भारत-भूमि' को और गर्व से वर्णन करती हूँ यहाँ परिपोषित हुए मेरे आयाम'नृत्य-नाट्य कला' का!
नई सोच की हरियाली!
समय आ गया है कि हम अपनी प्रतिभाओं व ऊर्जाओं को सही दिशा में प्रशस्त कर अपनी पथ्वी के प्रति अपने दायित्व को पूर्ण करें। धरती व प्रकृति को पोषित और संरक्षित करने में सहयोग दें!
त्रिपुण्ड- ललाट की सुसज्जा मात्र नहीं!
प्रिय पाठकगणों! आपने कई बार आसन पर विराजमान गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी के भाल पर त्रिपुण्ड सुशोभित देखा होगा।
आपका निर्णय कैसा होना चाहिए?
कॉपोरेट जगत में बहुत से लोगों ने अपनी किस्मत आज़माई है। ऐसी बहुत सी हस्तियाँ हुईं, जिन्होंने सिफर से सफर शुरु किया और सफलता के ऊँचे शिखर तक जा पहुँची।
'साधना' और 'सत्संग' का विज्ञान
ब्रह्मज्ञान का अनुभव करने पर हमें विज्ञान को भी अध्यात्म के चश्मे से देखना आ जाता है। बड़ी सहजता से हम रटने वाले सिद्धांतों में छिपे हुए गूढ़ अर्थ समझने लगते हैं।
जय श्री राम!
प्रशन गुरु महाराज जी, आपके प्रश्न आश्रमों व सत्संग स्थलों पर संगत 'जय श्री राम' का जयघोष करती सुनाई देती है। क्या यह जयकारा इस बात का प्रमाण नहीं कि आपकी संस्था साम्प्रदायिक है? कहीं आप व आपके अनुयायी केवल हिंदू मत के समर्थक और पैरवीकार तो नहीं?
मन इतना चंचल क्यों है?
यह अटल सत्य है कि मन की आत्मा में संस्थिति (स्थिरता) गुरु-कृपा के बिना संभव नहीं है।
जीवन-युद्ध का सूत्र!
मन में बड़ी उथल-पुथल थी। एक बोझिलता थी, म थकान थी। भावनाएँ डावांडोल थीं। यह एक शिष्य के मन का उत्पात था। शिष्य था छत्रपति शिवा।
भ्रष्टाचार का मंथन
जब-जब समाज पर दुःखों के ऐसे बादल उमड़े कि उसे कोई मार्ग नहीं मिला, तब-तब अध्यात्म ने उसका मार्ग प्रशस्त किया है।
साधकों, तूफानी चाल चलो !
बह्मज्ञानी साधकों, इरो नहीं, रुको नहीं, बस चलते रहो। हमारे गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी हमारे साथ हैं। जब हम निःस्वार्थ भाव से अध्यात्म पथ पर अपनी साधना व सेवाएँ अर्पित करते हुए चलेंगे, तब हम गुरु-कृपा से प्रतिकूल परिस्थितियों को भी अनुकूल होता देख पाएँगे।
सुमेरु पर्वत के समान थे महावीर
हे महाभिक्षु! महाश्रमण महावीर का ज्ञान, दर्शन और शील किस प्रकार का था? जैसा आप जानते हैं और जैसा आपने उन्हें देखा है, वैसा ही मुझे बताने की कृपा करें।
चोर-चोर मौसेरे भाई।
नन्हा कन्हैया दो साल का हो चला था। अब तो गुडलिया-गुडलिया सारे नंदभवन में दौड़ा करता था। नन्हे पैरों में नन्हे-नन्हे नुपुर... उनकी छन-छन करती झनकार अनहद नाद सी बजती सुनती थी।
'वाद' और विवाद'
ज्ञान प्राप्त कर सरल बनो। बालक सरल होता है, अज्ञानी नहीं। बालक सम सरल हृदय ईश्वर को प्राप्त कर पाते हैं। अज्ञान तो संसार-परिक्र मण का मूल है।
फारस के संत जरथुस्त्र
'ब्रह्मज्ञान को पाते ही मैंने अनंत प्रकाश का दर्शन किया। उस प्रकाश में मैंने प्रभु अहुरमज्दा (पारसियों में प्रचलित भगवान का नाम) का साक्षात् दर्शन किया। उनसे बातचीत की।'
रसोईघर एक औषधालय
आज यह घर-घर की कहानी हैचाहे कोई भी छोटी-मोटी बीमारी (सर्दी, खाँसी, सिर दर्द, कमर दर्द, पेट दर्द, एसिडिटी, वातरोग, कम या उच्च रक्तचाप) हो, हम सीधा एलोपैथी के डॉक्टर या केमिस्ट के पास पहुँच जाते हैं और दवाइयों के बड़े-बड़े पत्ते ले आते हैं।
श्री कृष्ण ने चमत्कार नहीं, दिव्य लीलाएं की।
तुम्हें स्मरण होगा कृष्णे कि विहार के समय एक बार तुमने मुझसे कहा था कि वे लोग कितने सौभाग्यशाली होंगे, जिन्होंने कान्हा को अपनी गोद में खिलाया होगा। वे गोपियाँ, जो कन्हैया को सताती थीं और कन्हैया उनको। तो मैं तुम्हें कृष्णलीला सुनाने के लिए तारा मइया को लाया हूँ। ये नंद बाबा के यहाँ यशोदा माता की सहायिका थीं।
श्री आशुतोषाय नम :
कल्पना कीजिए एक ऐसी स्थिति की, जब आपके तन का रोम-रोम दर्द से कराह रहा हो! मन का मनका-मनका बिखरा हो! श्वासें उखड़ी-उखड़ी सी हों! विचारों में झंझावात उठा हो! हृदय में टीस हो!
एक शाम सद्रगरु के नाम...
.बंगाल का 'छोटो मोशाय' (Little Sir) आगे चलकर इतना 'बड़ा' हो जाएगा कि विश्व उसे योगानंद परमहंस के नाम से जानेगा- किसी ने सोचा तक नहीं था। सिवाय उनके गुरु युक्तेश्वर गिरि जी के।
कौन उठा सकता है भगवान आशुतोष को समाधि से ?
वक्त है आया ऐतिहासिक वीरों जैसे बलिदान का, कार्य क्षेत्र में ध्यान रहा है जिन्हें गुरु के मान का। भक्ति भाव से ओत-प्रोत हो कुछ तो ऐसा कर जाएँ, सच्चे शिष्य बनकर के हम विजय पताका लहराएँ।
गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा क्यों कहते हैं।
शताब्दियों पूर्व, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को महर्षि वेद व्यास जी का अवतरण हुआ था। वही वेद व्यास जी, जिन्होंने वैदिक ऋचाओं का संकलन कर चार वेदों के रूप में वर्गीकरण किया था। 18 पुराणों, 18 उप-पुराणों, ब्रह्मसूत्र, महाभारत आदि अतुलनीय ग्रंथों की रचना करने का श्रेय भी इन्हें ही जाता है।
साधक उपनिषद्र
समाधान प्रदाता
हे अंतर्यामी आशुतोष! आपको शत-शत नमन!
तुझसे भला क्या छिप पाएगा, तुम तो अंतर्यामी हो, बिन माँगे सब देने वाले, तुम तो प्रभु महादानी हो। अपनापन तेरे जैसा कहीं और नहीं मिल पाएगा, तेरे निश्छल स्नेह को पाकर जीने का ढंग आएगा।
तनाव युक्त से मुक्त जीवन की ओर...
अभी पिछले कुछ महीनों से कोरोना वायरस से फैली महामारी के चलते हम बहुत सी कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं। ऐसा लगता है मानो किसी ने हमारे शांत-सुखी जीवन रूपी जल में कंकड़ फेंक दिया हो... और लगातार फेंकता ही जा रहा हो। इस कारण हममें से अधिकतर लोगों का मन दुःखी, विचलित, अशांत रहने लगा है। बढ़ते समय के साथ यह तनाव का रूप ले रहा है। इसीलिए हम आपके लिए लाए हैं तनावमुक्त रहने के कुछ सूत्र...
चेतना का विकास करें!
प्रश्न- गुरु महाराज जी, महर्षि अरविंद और नीत्शे- दोनों ने ही मानव को 'अतिमानव' बनने की प्रेरणा दी। मेरी दुविधा यह है कि महर्षि अरविंद तो आध्यात्मिक पुरुष थे और नीत्शे एक कट्टर नास्तिक, फिर दोनों के विचारों में समानता कैसे?
दाता भी आपसे दान चाहता है! किसका?
गुरु का इंतजार तो चिरंतन काल से चला आ रहा है। वे इस प्रतीक्षा में हैं कि कब कोई ऐसी पुकार सुनाई देगी जो निःस्वार्थ या बेमकसद होगी। केवल और केवल उनके लिए होगी।
क्यों भटक जाते हैं राही पथ से ?
प्रश्न- गुरु महाराज जी, आपने जो हमें ब्रह्मज्ञान दिया है, वह इतना महान, इतना पवित्र है। फिर क्यों हममें से कुछ साधक इस ज्ञान-मार्ग पर चल नहीं पाते? क्यों वे इसे छोड़ बैठते हैं?
घर-घर तीर्थ बने!
घर-घर तीर्थ बने!
दीर्घ श्वास का विज्ञान
जब हम साधक साधना का निरन्तर अभ्यास करते हैं, तो सूक्ष्म श्वास के भीतर चल रही सूक्ष्मतर प्राणधारा से और उसके भीतर चल रहे सूक्ष्मतम प्रभु नाम से जुड़ जाते हैं। इस नाम से जुड़ जाने पर आरम्भ होता है, हमारा आध्यात्मिक विकास।
वेद मंत्रों का विलक्षण प्रभाव
गुरुदेव श्री आशुतोष महाराज जी ने वैदिक मंत्रोच्चार पर विशेष बल दिया है। आपके मार्गदर्शन में हर वर्ग के, हर आयु के सहस्रों दीक्षित साधकों ने वेद-मंत्रों की उच्चारण शैली को सीखा है व उसका निरंतर अभ्यास करते हैं। विशेषकर प्राकृतिक उथल-पुथल के काल में इन मंत्रों का सस्वर उच्चारण या श्रवण करना अत्यंत लाभप्रद है। इसमें निहित विज्ञान क्या है-आइए, श्री महाराज जी के वचनामृत द्वारा जानते हैं। इन मंत्रों का गायन आप संस्थान के यूट्यूब चैनल तथा DJJS App पर 'रुद्री पाठ' नाम से अपलोडिड ऑडियो के माध्यम से श्रवण कर सकते हैं। यदि आप इसे प्रातः व सायं काल में अपने घर में सुनते हैं, तो वायुमंडल में प्रखर रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
सोच को बनाएँ सकारात्मक !
सोच को बनाएँ सकारात्मक !