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नाभि - कुदरत की अनमोल देन !
आज की आधुनिक जीवन-शैली में सेहत और त्वचा संबंधी समस्याएँ बढ़ती ' जा रही हैं। स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का पार पाने के लिए हम डॉक्टर के पास जाते हैं। दवाओं पर पैसा पानी की तरह बहाते हैं।
दंड बने, उदंड नहीं !
पूर्ण गुरु का सेवक कैसा होता है ? उसका कर्म और धर्म क्या हुआ करता है ?
जब भगवान बन जाएँ व्यवधान, - तो कौन करे समाधान?
पूरी सृष्टि को बंधनमुक्त करने वाले श्रीराम आज लीला करते हुए स्वयं नागपाश में बँधे हुए थे। सभी - वानर और भालू व्याकुल थे। लेकिन नारद जी जानते थे कि गरुड़ जी इस पाश को काट सकते हैं। इसलिए उन्होंने उनसे जाकर कहा- 'हे गरुड़! आप तो भगवान विष्णु को अपनी पीठ पर सुशोभित कर चला करते हैं। चला भी क्या, उड़ा करते हैं।
गणतन्त्र दिवस
संपूर्ण भारतवर्ष इस माह एक राष्ट्रीय पर्व बेहद धूमधाम से मनाता है । आप ठीक समझे , 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतंत्र दिवस ! इसी संदर्भ में हमने कुछ युवाओं के बीच एक सर्वेक्षण किया । सर्वेक्षण का चिंतन बिंदु था - 15 अगस्त और 26 जनवरी में क्या अंतर है ? आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 15 में से 10 युवाओं को यह पता ही नहीं था कि गणतंत्र दिवस किसलिए मनाया जाता है ! सभी के अनुसार 15 अगस्त को तो भारत आजाद हुआ था , पर 26 जनवरी को क्या हुआ था . . . इस संदर्भ में वे मूक थे । इसी ने हमें प्रेरित किया कि पत्रिका के माध्यम से एक ऐसा लेख आपके बीच रखा जाए जो इस दिन के महत्व और इससे जुड़े रोचक तथ्यों को उजागर करे ।
गणतंत्र दिवस की परेड
गणतंत्र दिवस की परेड हमेशा से आकर्षण का केन्द्र रही है । सन् 1950 में , पहली बार परेड इर्विन एम्फीथियेटर (आज का नेशनल स्टेडियम) में आयोजित हुई थी । आगामी 4 वर्षों तक परेड के स्थान बदलते रहे । फिर सन् 1955 से इसकी आयोजन स्थली स्थायी रूप से राजपथ , नई दिल्ली हो गई ।
क्रम बदलने पर भी समान अर्थ
आँकड़ों के अनुसार संस्कृत को कम्प्यूटर की प्रोग्रामिंग के लिए सर्वाधिक उपयुक्त भाषा माना गया है ।
क्या श्रद्धा अंधविश्वास है?
क्या श्रद्धा अंधविश्वास है?
कैंसर- एक रहस्य !
कुछ दिनों पूर्व एक 65 वर्षीय पूर्व सेनाकर्मी मेरी ओ. पी. डी. में आए। चाल ढाल में वे किसी युवक से कम नहीं थे। सेना से रिटायर हुए इन सज्जन को देखकर कोई यह अंदाज़ा भी नहीं लगा सकता था कि इन्हें कोई रोग है।
कवि थिरोमणि कालिदास !
पिछले अंक में आपने मूर्धन्य कवि कालिदास के जीवन से संबंधित कई प्रेरणाप्रद कथाएँ पढ़ीं । आइए , उनकी रचनाओं और व्यक्तित्व से कुछ और बहुमूल्य रत्नों को संजोते हैं ।
करुणावतार श्री आशुतोष !
क्यों हमें बार-बार साधना करने के लिए कहा जाता है? हर सप्ताह सत्संग सुनो, सत्संग सुनोक्यों यही शग हमें निरंतर सुनाया जाता है? सेवा करने के लिए तो विशेष सुझाव दिए जाते हैं, ऐसा क्यों? आखिर गुरु महाराज जी इतने कठोर क्यों हैं, जो हमें इतनी-इतनी अज्ञाओं में बाँध कर रखते हैं?
कन्हाई से रिहाई - असम्भव !!
कन्हैय्या के गोकुल में सूर्यदेव प्रतिदिन उदित होते थे । पर फिर भी आने वाला हर दिन , बीते हुए दिन से विशेष हुआ करता । कारण??? नित्य नूतन ब्रह्म यहाँ नित-नित नई लीलाएँ जो किया करता था ।
एका। तुझे माँ गीता का सौन्दर्य दिखाना है!
आपने विगत अंक में पढ़ा, एका ने 'गारुड़ी-भराड़ी' का अभिन्न अभिनय किया। साथ ही, इस सम्पूर्ण गीत की परतों में छिपा मार्मिक तत्त्वज्ञान भी समझाया। जीव, माया और आत्माइन तीनों तत्त्वों की एका ने ऐसी गहरी व्याख्या की, मानो किसी महान आत्मज्ञानी की वाणी प्रस्फुटित हुई हो। उधर कचहरी में जब एका की नाट्य-कला का समाचार पहुँचा, तो सभी कर्मचारियों सहित स्वयं जनार्दन स्वामी समय से पहले ही किले पर वापिस लौट आए। कोट में खड़े होकर उन्होंने जब यह अद्भुत मंचन देखा, तो प्रसन्न वदन हो साधुवाद कर उठे। उसी क्षण उन्होंने निर्णय लिया कि एका को रसोईघर की नहीं, कचहरी की सेवा में लगाना चाहिए। इतनी कुशाग्र बुद्धि वाले बालक को तो हिसाब-किताब और वेदान्तिक ग्रंथो का सुक्ष्म अध्ययन करना सिखाना चाहिए। उनके इस निर्णय का पहला कदम था - एक पत्र लिखना। उस पत्र में क्या लिखा और किसे लिखा- आइए जानें...!.
आप अकेले हैं या एकाकी ?
अगर आपकी खोज सच्ची है , अधूरे - सधूरे समझौते आपका दर्द नहीं बाँट पाते - तो तारक की तरह एक सच्चे गुरु की गोद खोजिए ।
'ईथरीय से ईश्वरीय आवाज़ो का जफर!
हे ईश्वर, हमारे जीवन में भी ऐसे पूर्ण सदगुरु का पदार्पण हो, जो ब्रह्मज्ञान प्रदान कर हमारी आंतरिक कर्ण-शक्ति को सक्रिय करें। जिसके फलस्वरूप हम अपने भीतर आपके दिव्य एवं कल्याणकारी निर्देशों को सुन सकें।