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जहां आलू, भिंडी, मिर्च, टमाटर और बैगन जैसी सब्जियां रहती थीं वहां पर खूब हंगामा होता था. हंगामे की वजह थी उन की आपस की लड़ाई जो अमूमन रोज होती थी.
शायद ही कभी कोई दिन ऐसा बीता होगा, जिस दिन उन्होंने एकदूसरे के साथ तूतू मैं और फिर हाथापाई न की हो.
इस हाथापाई में कई बार तो सब्जियों को चोट भी लग जाती थी. इस के बावजूद वे एकदूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देती थीं.
एक दिन एक कद्दू ने उन की कौलौनी में एंट्री की. उस का भारीभरकम शरीर और रौबदार चेहरा देख कर बाकी सब्जियां सहम गईं.
"आज के बाद आपस में लड़नाझगड़ना बिलकुल बंद. अगर किसी ने गड़बड़ की तो उस के किए की सजा देने के लिए मैं आ गया हूं," कद्दू ने आते ही ऐलान कर दिया.
"क्या तुम हमारे राजा हो जो हम तुम्हारी हर बात मानेंगे? जाओ, नहीं मानते तुम्हारी बात. बोलो, क्या कर लोगे?" कद्दू की बात मिर्च को सहन नहीं हुई तो उस ने तमक कर पूछा.
कद्दू को इस तरह मिर्च का सवाल करना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. उस ने उस से कहा कि कुछ नहीं. बस, अपनी जगह से थोड़ा लुढ़का और फिर मिर्च के ऊपर गिर गया.
जिस तरह सड़क पर रोलर चलता है ठीक वैसे ही कद्दू का मिर्च पर से गुजरना उसे भारी पड़ गया. बेचारी मिर्च का तो कचूमर ही निकल गया.
"क्या किसी को अब भी कुछ पूछना है?" मिर्च को मिट्टी में मिलाने के बाद कट्टू ने वहां मौजूद सब्जियों से पूछा तो उन में से किसी ने चूं तक नहीं की.
सब्जी कौलौनी में अनुशासन कायम हो चुका था. कद्दू के आ जाने के बाद अब वहां न चिकचिक होती थी न ही आपस में तूतू मैं मैं.
कुछ दिन तो सब ठीक रहा पर बाद में कद्दू को अपनी ताकत पर घमंड हो गया. अब तो वह बातबात पर अपने से छोटी और कमजोर सब्जियों पर जा गिरता और उन का कचूमर निकाल देता.
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जिफ्फी ने डाला वोट
डेरी हिरण अपने स्कूटर् से जा रहा था तो रास्ते में उसकी मुलाकात जिफ्फी बंदर से हुई. “जिफ्फी, तुम सजधज कर कहां जा रहे हो?\" डेरी ने अपना स्कूटर रोक कर पूछा.