संहिता से क्या सधेगा?
India Today Hindi|February 21, 2024
बस कुछ ही हफ्ते बचे हैं आम चुनाव का ऐलान होने में और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पूरा यकीन है कि उससे ठीक पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अपनी पार्टी भाजपा को एक ऐसा मुद्दा दे दिया है जिसमें मतदाताओं को लुभाने के वास्ते सियासी ध्रुवीकरण करने लायक पूरा मसाला है.
अनिलेश एस. महनजन
संहिता से क्या सधेगा?

मेजों की थपथपाहट और जय श्रीराम तथा वंदेमातरम् की जोरदार गूंज के बीच राज्य विधानसभा ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) मसौदा विधेयक को पारित कर दिया. इसके साथ ही विवाह, तलाक, उत्तराधिकार और गोद लेने जैसे मामलों में सभी धर्मों के लिए समान नागरिक कानूनों का रास्ता साफ हो गया.

विवाह, तलाक, गोद लेने और उत्तराधिकार सरीखे मामलों में लागू नागरिक कानून संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत आते हैं और इस पर राज्यों और केंद्र दोनों को कानून बनाने का अधिकार है. हालांकि, किसी विवाद की स्थिति में केंद्र का कानून ही मान्य होता है. उत्तराखंड में पारित यूसीसी में थोड़े-बहुत बदलावों के साथ भाजपा शासित गुजरात और असम में भी इसी तरह का कानून बनाने की तैयारी चल रही है और मार्च मध्य में चुनाव आचार संहिता लागू होने से पहले ही इन्हें मंजूर कराया जा सकता है. यूसीसी पर उत्तराखंड में लाए गए अपनी तरह के पहले विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट की सेवानिवृत्त न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अगुआई वाली समिति ने व्यापक चर्चा की. इसने चार खंड में 749 पन्नों की रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया और कई सिफारिशें कीं. दूसरी तरफ, केंद्र अभी देशव्यापी यूसीसी पर विधि आयोग की रिपोर्ट का इंतजार कर रहा है. खैर, नया कानून राष्ट्रीय स्तर पर यह मुद्दा गर्माए रखने के लिए काफी है. राम मंदिर उद्घाटन, ज्ञानवापी मस्जिद के एक तहखाने में हिंदुओं को पूजा की अनुमति मिलने, अनुच्छेद 370 रद्द होने और सीएए यानी नागरिकता (संशोधन) अधिनियम पर जारी बहस के बीच यूसीसी ने आम चुनाव से पहले हिंदुत्व के मुद्दे को और धार दे दी है.

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