जम्मू के रियासी में आतंकवादी हमले और पंजाब में दो कट्टरपंथियों की चुनावी जीत के साथ उनकी बढ़ती पैठ के मद्देनजर यही कहा सकता है कि भारत अभी आतंकवाद से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाया है. मणिपुर हिंसा के घाव हरे हैं और वामपंथी उग्रवाद भले ही देश के दूरदराज के कुछ इलाकों तक सिमटकर रह गया हो लेकिन इसे जड़ से मिटाया नहीं सका है. ये ऐसी चुनौतियां हैं जिन पर गृह मंत्री और उनकी टीम को खास ध्यान देना होगा. इसके अलावा, पिछले कार्यकाल के कई काम अधूरे पड़े हैं. मसलन, यूसीसी, सीएए और एनआरसी को लागू करना. अब यह बात अलग है कि गठबंधन धर्म के कारण उन्हें ठंडे बस्ते में न डालना पड़ जाए. भारतीय न्याय संहिता सहित नए कानून लागू करना भी प्राथमिकता में शुमार होगा, जो आइपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेंगे. फिर राष्ट्रीय जनगणना कराने की चुनौती भी सामने है, जिसमें पहले ही तीन साल की देरी हो चुकी है. महिला आरक्षण एक और ऐसा वादा है जो अभी पूरा नहीं हुआ है. कुल मिलाकर, गृह मंत्री के मौजूदा कार्यकाल के लिए एक लंबी फेहरिस्त सामने है.
क्या किया जाना चाहिए
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'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'
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