![ह्यूमैनिटीज का अव्वल अड्डा](https://cdn.magzter.com/India Today Hindi/1719229011/articles/lPbEqqsjc1719306592097/1719307383483.jpg)
लगातार बदलती इस जटिल दुनिया में यह सोच कुछ दशक पहले काफूर हो चुकी है। कि अगर आपमें साइंस की पढ़ाई करने की मानसिक क्षमता नहीं है, तभी आप आर्ट्स की ओर रुख करते हैं. आपमें मानव जीवन, समाज और संस्कृति को गहराई से समझने की क्षमता तैयार करने में ह्यूमैनिटीज पाठ्यक्रमों अंतर्विषयक दृष्टिकोण से बेहतर कुछ नहीं हो सकता.
यह एक ऐसा पहलू है जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदू कॉलेज ने न केवल अच्छी तरह पहचाना बल्कि अपने स्नातक कार्यक्रमों की पढ़ाई में अपनाया भी है. सोशल साइंस विषयों के लिए सबसे ज्यादा मांग वाला यह कॉलेज अपने बैचलर ऑफ आर्ट्स प्रोग्राम के तहत 19 स्नातक पाठ्यक्रमों की सुविधा देता है. छात्रों को बेहतर डिजाइन वाले पाठ्यक्रमों के कारण अपनी पसंद के विषय पर गहन अध्ययन का मौका तो मिलता ही है, खुले माहौल में अकादमिक बहस और परिचर्चा संस्कृति, उद्योग-अकादमिक सहयोग और पाठ्येतर गतिविधियों पर जोर दिए जाने से उनकी समझ भी अच्छी तरह विकसित होती है. यहां शिक्षकों छात्रों के बीच उस्ताद-शागिर्द का बेहतर रिश्ता होता है. हिंदू कॉलेज में 60 से ज्यादा छात्र क्लब और सोसाइटी सक्रिय हैं, जिन्हें नृत्य और नाटक से लेकर संगीत और पेंटिंग, बहस, संवाद और प्रश्नोत्तरी जैसी विभिन्न रुचियों को पूरा करने के उद्देश्य से बनाया गया है.
मसलन, पिछले साल अप्रैल में राजनीतिशास्त्र विभाग और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन ने विदेश मंत्रालय और जी-20 सचिवालय के साथ मिलकर हिंदू-ओआरएफ पॉलिसी कॉन्क्लेव 2023 का आयोजन किया. यह न केवल कक्षा से इतर संवाद और सीखने-सिखाने को आगे बढ़ाने का एक शानदार प्रयास साबित हुआ, बल्कि छात्रों को दुनिया के सामाजिक-राजनैतिक मामलों को समझने और उसमें भागीदार बनने का बेहतरीन मंच भी मिला. आखिरकार उनकी डिग्री का लक्ष्य उन्हें इन्हीं चीजों से तो रू-ब-रू कराना है.
यह दूसरों से अलग कैसे है
हिंदू कॉलेज को नेशनल असेसमेंट ऐंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (एनएसीसी) रैंकिंग में 4 में से 3.6 सीजीपीए स्कोर हासिल है
यहां के छात्रों को 10.6 लाख रुपए औसत वार्षिक वेतन (घरेलू) की पेशकश की गई, जो अन्य आर्ट्स कॉलेज की तुलना में सर्वाधिक है
This story is from the July 03, 2024 edition of India Today Hindi.
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बेरोजगार युवाओं-युवतियों को नौकरी देने के नाम पर उनके साथ ठगी, यौन शोषण और क्रूरता की दहला देने वाली कहानियां
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आर्थिक मंदी ने आइआइटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों से पढ़े छात्रों की नौकरी पर असर दिखाना शुरू कर दिया है. ऐसे संस्थानों की डिग्री अब नौकरी पक्की होने की गारंटी नहीं रही
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“हम परीक्षाओं को 100 फीसद फूलप्रूफ बनाएंगे”
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की कमान संभालने के फौरन बाद धर्मेंद्र प्रधान को राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा प्रणाली में गंभीर अनियमितताओं और गड़बड़ियों को लेकर उठे तूफान से निबटना पड़ा. इस मामले में विपक्ष ने उनके इस्तीफे की मांग तक कर डाली. इंडिया टुडे के ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर राज चेंगप्पा और डिप्टी एडिटर अनिलेश एस. महाजन के साथ 25 जून को एक्सक्लूसिव बातचीत में प्रधान ने इस संकट से पार पाने के लिए केंद्र सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों और आगे की चुनौतियों के बारे में दोटूक और खरी-खरी बात की. इसी बातचीत के अंशः
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तमाशा बनी परीक्षाएं
पर्चा लीक और कई खामियों से चार राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं और करोड़ों युवाओं का भविष्य अधर में. नेशनल टेस्टिंग एजेंसी विवादों के भंवर में. उसमें सुधार और पारदर्शिता वक्त की जरूरत बना
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सूरत बदलने का इंतजार
यह ऐसी योजना थी जैसे ताजा कटा हुआ चमकता नग हो. पांच साल पहले सूरत डायमंड बोर्स (एसडीबी) को मुंबई बढ़ती भीड़ और लागत वृद्धि का एकदम सटीक विकल्प माना गया था. मुंबई, जहां भारत के अधिकांश हीरा व्यापारी हैं, की टक्कर में हीरा कारोबारियों के लिए शानदार, सस्ते और बड़े ऑफिस, चौड़ी सड़कें, उन्नत हवाई अड्डे के साथ योजनाबद्ध अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय हवाई संपर्क की योजना बनाई गई थी. इसमें सोने में सुहागा प्रस्तावित बुलेट ट्रेन थी जो महज दो घंटे में सूरत से मुंबई बांद्रा कुर्ला कांप्लेक्स तक पहुंचा देती.