और, आप तो यही सोच रहे होंगे कि गेहूं उत्पादकों को 125 रुपये प्रति क्विंटल के बोनस भुगतान के साथ अन्य राज्यों की तुलना में ज्यादा दाम-2,275 रुपये की तुलना में 2,400 रुपये प्रति क्विंटल-देने वाले मध्य प्रदेश में अपनी फसल बेचने के लिए किसानों की कतार ही लग गई होगी. मगर मध्य प्रदेश में गेहूं खरीद में दिखी सुस्ती ने बहुत लोगों की यह चिंता बढ़ा दी है कि इससे कहीं देश की खाद्य सुरक्षा ही प्रभावित न हो जाए. भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के पास 303 लाख टन गेहूं का स्टॉक है, जो बफर मानक 275 लाख टन से थोड़ा ही अधिक है.
मध्य प्रदेश में गेहूं की खरीद 15 मार्च को पहले कुछ जिलों में शुरू हुई, फिर 25 मार्च को पूरे राज्य में इसकी शुरुआत कर दी गई. वैसे, खरीद की अंतिम तिथि 15 मई थी, लेकिन खरीद में तेजी न आती देख इसे पहले 31 मई और फिर 25 जून तक बढ़ा दिया गया. सरकारी सूत्रों की मानें तो केंद्र के कहने पर भी इसे आगे बढ़ाने का फैसला लिया गया, जो खुद इस स्थिति को लेकर खासा चिंतित था. देश में कुल खरीद 16 जून को 266 लाख टन दर्ज की गई, जो इस विपणन सत्र के लिए 373 लाख टन के लक्ष्य से काफी कम है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस कमी का मुख्य कारण मध्य प्रदेश में पर्याप्त खरीद न होना ही है.
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