मेरे मां-पिता आज भी पीने का पानी लाने के लिए घर से बहुत दूर जाते हैं. गांव में होने पर मैं भी ऐसे ही पानी लाती हूं. गांव में मोबाइल नेटवर्क जीरो है. मुश्किल ही परिजनों से बात कर पाती हूं. गांव के हिंदुओं को तो पीएम आवास मिला है पर क्रिश्चियनों को नहीं. आज के जमाने में ऐसा भेदभाव मैंने नहीं देखा. " यह किसी और का नहीं, बल्कि भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान सलीमा टेटे का दर्द है.
खेल ने बेशक जिंदगियां बदली हैं. खिलाड़ी की और परिवार की जिंदगी. यहां तक कि उसके समाज को भी बदला है. पर अपवादों की कमी नहीं. बीती 2 मई को सविता पूनिया की जगह झारखंड की आदिवासी सलीमा टेटे को भारतीय महिला सीनियर हॉकी टीम का कप्तान घोषित किया गया. इसके बाद वे झारखंड में महेंद्र सिंह धोनी के बाद सबसे बड़ी खिलाड़ी बन गईं. लेकिन उनके घर पर हालात ये हैं कि सलीमा के माता-पिता आज भी पीने का पानी लेने के लिए रोज यही कोई तीन किलोमीटर का सफर करते हैं. वे भी और घर के दूसरे लोग भी. राजधानी रांची से 165 किमी दूर सिमडेगा जिले में उनके गांव बड़कीछापर में पीने के पानी की मुकम्मल सुविधा नहीं है.
कुल 107 इंटरनेशनल मैच खेल चुकीं सलीमा के पिता सुलक्षण टेटे कहते हैं, "गांव में चापाकल है, पानी की सरकारी टंकी भी है लेकिन पानी ऐसा कि आप पी नहीं सकते. यहां तक कि उस पानी से दाल भी नहीं पकती. गांव के दूसरे छोर पर एक पुराना कुआं है. पीने और खाना बनाने के लिए हम उसी का पानी इस्तेमाल करते हैं. रोज करीब 40 लीटर पानी खपता है. घर के लोग 3-4 बार में लाते हैं."
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