वीरेंद्र सिंह, 65 वर्ष | सपा | चंदौली, उत्तर प्रदेश
पावन नगरी की विस्तारित परिक्रमा के भीतर पड़ने वाले चिरईगांव के इस बनारसी ने राजनैतिक पंसद के मामलों में उदार होने या कट्टर नहीं होने की शिक्षा-दीक्षा संभवतः बीएचयू के छात्र मामलों से हासिल की. 1996 में वे कांग्रेस (अपनी मूल पार्टी) के विधायक बने, उससे टूटकर बने और कम वक्त जिंदा रहे लोकतांत्रिक कांग्रेस नाम के उस धड़े का हिस्सा रहे जिसने कल्याण सिंह की भाजपा सरकार (जिसमें वे मंत्री बने) का समर्थन किया था. टूटकर बना धड़ा जब और बिखरा तो वे जहां के तहां बने रहे, फिर विधायक बनने की गरज से बसपा के अखाड़े में कूदे, उसके बाद मुलायम सिंह यादव के मातहत मंत्री बनने के लिए सपा में आ गए, लेकिन अभी तक पक्का मकान नहीं बनाया. कांग्रेस में लौटने और बसपा का एक और चक्कर लगाने की अफवाहों के बीच उनकी उड़ान आखिरकार जमीन पर उतरी, जहां विचारधारा का साजो-सामान इतना ठोस माना गया कि राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया गया.
नारायणदास अहिरवार, 63 वर्ष | सपा | जालौन, उत्तर प्रदेश
दलबदलुओं के बारे में अक्सर गहरी अवमानना और तिरस्कार से लेकर हल्के मजाक भरे लहजे तक में बात की जाती है. ज्यादा से ज्यादा यह कहा जाता है कि वे अपनी राजनैतिक जरूरतों को ऊपर रखते हैं. लेकिन अहिरवार का 2015 में समाजवादी पार्टी में जाना, और इस बार पांच बार के भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा को बुंदेलखंड के बेशकीमती आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से हराना कुछ और भी बताता है, जिसका वास्ता मुख्य रूप से उनकी राजनैतिक जीवनगाथा से है. बीसेक साल की उम्र में अहिरवार कांशीराम के डीएस4 आंदोलन के असर में आए और 1984 में बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक सदस्य बने. इसलिए अगर उनका जाना बसपा के जाटव वोटों के छितराने का इशारा है, तो वर्मा की हार गैर-जाटवों के भी भगवा खेमे से निकल भागने का प्रमाण है.
बाबू सिंह कुशवाहा, 58 वर्ष | सपा | जौनपुर, उत्तर प्रदेश
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