मेक इन इंडिया' ने स्थानीय स्तर की मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा दिया है लेकिन यह सिर्फ बाहर से लाई ई टेक्नोलॉजी और कलपुर्जों को असेंबल करने का ही काम है. नतीजा, इससे बहुत कुछ हासिल होने वाला नहीं है. अगर हम विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य रखते हैं तो हमें भारत में डिजाइन और विकास करने, और जहां तक संभव हो, स्थानीय घटकों का इस्तेमाल करने, उत्पादन के लिए मशीनरी बनाने और उत्पादों के लिए आइपीआर में महत्वपूर्ण हिस्सेदारी रखने की जरूरत है. हमें कम से कम कुछ क्षेत्रों में खुद को टेक्नोलॉजी लीडर्स में शुमार कराना होगा. हम यह कैसे कर सकते हैं? यह जानने के लिए हमें सबसे पहले भारत की ताकत को समझना होगा:
हमारे पास उच्च गुणवत्ता की विशेषज्ञता वाले युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की संख्या बढ़ रही है. उन्होंने बेहतरीन प्रशिक्षण हासिल किया है. अगर इन्हें सही मायने में सहयोग और बढ़ावा मिले तो वे आगे बढ़ने और नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.
हमारे पास नए इंजीनियरिंग स्नातकों का एक बड़ा समूह है जो साधारण कॉलेजों से पढ़े होने के बावजूद अच्छे हो सकते हैं. उन्हें लंबे समय तक कड़ी मेहनत करने, एक-दूसरे से सीखने और असंभव चुनौतियों को लेने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए. अच्छी बात यह है कि भारत में ऐसी प्रतिभा की लागत दूसरी जगहों की तुलना में बहुत कम है.
हमारे पास बहुत बड़ा बाजार है, लेकिन सिर्फ किफायती उत्पादों के लिए. इस तरह के उत्पादों को विकसित करने का काम चुनौतीपूर्ण है, अगर हम उनसे निबट पाएं तो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी स्थान हासिल करने की ओर बढ़ सकते हैं.
This story is from the August 28, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the August 28, 2024 edition of India Today Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
मिले सुर मेरा तुम्हारा
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता संगीतकार अमित त्रिवेदी अपने ताजा गैर फिल्मी और विधा विशेष से मुक्त एल्बम आजाद कोलैब के बारे में, जिसमें 22 कलाकार शामिल
इंसानों की सोहबत में आलसी और बीमार
पालतू जानवर अपने इंसानी मालिकों की तरह ही लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं और उन्हें वही मेडिकल केयर मिल रही है. इसने पालतू जानवरों के लिए सुपर स्पेशलाइज्ड सर्जरी और इलाज के इर्द-गिर्द एक पूरी इंडस्ट्री को जन्म दिया
शहरी छाप स लौटी रंगत
गुजराती सिनेमा दर्शक और प्रशंसा बटोर रहा है क्योंकि इसके कथानक और दृश्य ग्रामीण परिवेश के बजाए अब शहरी जीवन के इर्द-गिर्द गूंथे जा रहे हैं. हालांकि सीमित संसाधन और बंटे हुए दर्शक अब भी चुनौती बने हुए हैं
चट ऑर्डर, पट डिलिवरी का दौर
भारत का खुदरा बाजार तेजी से बदल रहा है क्योंकि क्विक कॉमर्स ने तुरंत डिलिवरी के साथ पारंपरिक खरीदारी में उथल-पुथल मचा दी है. रिलायंस जियो, फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसे कॉर्पोरेट दिग्गजों के इस क्षेत्र में उतरने से स्पर्धा तेज हो गई है जिससे अंत में ताकत ग्राहक के हाथ में ही दिख रही
'एटम बम खुद फैसले नहीं ले सकता था, एआइ ले सकता है”
इतिहास के प्रोफेसर और मशहूर पब्लिक इंटेलेक्चुअल युवाल नोआ हरारी एक बार फिर चर्चा में हैं. एआइ के रूप में मानव जाति के सामने आ खड़े हुए भीषण खतरे के प्रति आगाह करती उनकी ताजा किताब नेक्सस ने दुनिया भर के बुद्धिजीवियों का ध्यान खींचा है.
सरकार ने रफ्ता-रफ्ता पकड़ी रफ्तार
मुख्यमंत्री सिद्धरामैया उपचुनाव में कांग्रेस के शानदार प्रदर्शन की बदौलत राजनैतिक चुनौतियों से निबटने लोगों का विश्वास बहाल करने और विकास तथा कल्याण की महत्वाकांक्षी योजनाओं पर दे रहे जोर
हम दो हमारे तीन!
जनसंख्या में गिरावट की आशंकाओं ने परिवार नियोजन पर बहस को सिर के बल खड़ा कर दिया है, क्या परिवार बड़ा बनाने के पैरोकारों के पास इसकी वाजिब वजहें और दलीलें हैं ?
उमरता कट्टरपंथ
बांग्लादेश में हिंदुओं का उत्पीड़न जारी है, दूसरी ओर इस्लामी कट्टरपंथ तेजी से उभार पर है. परा घटनाक्रम भारत के लिए चिंता का सबब
'इससे अच्छा तो झाइदारिन ही थे हम'
गया शहर के माड़रपुर में गांधी चौक के पास एक बैटरी रिक्शे पर बैठी चिंता देवी मिलती हैं. वे बताती हैं कि वे कचहरी जा रही हैं. उनके पास अपनी कोई सवारी नहीं है, सरकार की तरफ से भी कोई वाहन नहीं मिला है.
डीएपी की किल्लत का जिम्मेदार कौन?
3त्तर प्रदेश में आजमगढ़ के किसान वैसे तो कई दिनों से परेशान थे लेकिन 11 दिसंबर को उन्होंने डीएपी यानी डाइअमोनियम फॉस्फेट खाद उपलब्ध कराने की गुहार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचा दी.