बुद्ध के इसी विचार को ध्यान में रखते हुए प्रेमचंद साहित्य संस्थान के निदेशक और साखी पत्रिका के संपादक सदानन्द शाही ने 2019 में एक यात्रा का आरंभ किया. करुणा, मैत्री और संवाद का संदेश लेकर चली 'बुद्ध की धरती पर कविता' शीर्षक से यात्रा ने अगले चार वर्षों तक लुम्बिनी (2020), बोध गया (2022), सारनाथ (2023) और कुशीनगर (2023) को बुद्धरत किया. इस विचार से सहमति रखने वाले कवि, लेखक, कलाकार, इतिहासविद् और समाजशास्त्री इस यात्रा में सहभागी और सहयोगी रहे. साहित्य के जाने-माने नाम इस यात्रा से जुड़कर साहित्य में सर्वजन का हित विचारते रहे. डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी, प्रोफेसर हरीश त्रिपाठी, ज्ञानेंद्रपति, अरुण कमल, आलोक धन्वा और उदय प्रकाश जैसे नाम बुद्ध पथ की इन यात्राओं में शामिल रहे.
This story is from the September 18, 2024 edition of India Today Hindi.
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चांदनी ओढ़े एक रेगिस्तान
सर्दियों के मौसम में कच्छ के रण में 100 दिन तक आयोजित होने वाला रण उत्सव नमक, संस्कृति और सितारों से जगमगाती भव्यता का एक मंत्रमुग्ध कर देने वाला कैनवस है
सीधे जन्नत का सफर
पर्यटन के विज्ञापन अभियानों में 'गॉड्स ओन कंट्री' सुनहरा मानदंड है. इसने केरल को अंतरराष्ट्रीय शीर्ष 10 पर्यटक स्थलों में जगह दिलवाई, जहां पर्यटन अब राज्य के जीडीपी में 12 फीसद का योगदान दे रहा
तंदूरी नाइट्स
आइटीसी के बुखारा और दम पुख्त ने दुनिया को तंदूरी व्यंजनों की तरफ मोड़ा और फूड ऐंड बेवरेज इंडस्ट्री पर जबरदस्त असर डाला. दशकों बीत चुके हैं मगर आज भी दिल्ली आने वाली मशहूर हस्तियां और राष्ट्र प्रमुख इनके लिए वक्त जरूर निकालते हैं
कमाल करती हिंदुस्तानी कूची
भारतीय कला परिदृश्य के लिए 1990 के दशक का आर्थिक उदारीकरण किसी प्राणवायु से कम नहीं रहा, जिसने हर तरफ इसकी जगमगाहट फैला दी. आज स्थापित कलाकारों की कलाकृतियां आम तौर पर बहुत ज्यादा कीमत पर बिकती हैं
एकला चलो
अभिनेत्री निमरत कौर, जिन्हें आखिरी बार थ्रिलर, सजनी शिंदे का वायरल वीडियो में देखा गया था, सफर से जुड़े अपने तजुर्बे पर
थम गई धड़कन की थाप
ज़ाकिर हुसैन आवाजाही के हरेक तजुर्बे की लय उठाते और अपनी तालों में शामिल कर लेते. उनके लय चक्र में केवल खुशी, खिलखिलाहट और थपथपाहटें झलकतीं...ऐसा था ज़ाकिर की उंगलियों का जादू
छोटा पर्दा बड़ा बना
भारतीय टेलीविजन अस्सी के दशक में नीरस बेरंग बक्से से लुभावनी किस्सागोई के भरे-पूरे रंगों में बदल गया. उधर बहुत सारे चैनलों की क्रांति धमाके के साथ घटित होने का इंतजार कर रही थी
एक सटीक निशाने ने बदली सूरत
चेहरे पर संन्यासियों जैसा संयम और शिकारी की तरह लक्ष्य पर टिकी आंखें. अभिनव बिंद्रा को इसी की जरूरत थी, क्योंकि उन्हें अपने अचूक निशाने से भारतीय मानस पर छाई गहरी उदासीनता को निकाल फेंकना जो था
दस हजारी शतक वीर
वे अपने उत्तराधिकारी सचिन की तरह ही धूम मचा सकते थे, पर मुश्किल से ही उन्होंने ऐसा किया. आमतौर पर उनका ढंग परंपरागत रहा, सलीकेदार और संपूर्ण
एक वायरस के खिलाफ उठ खड़ा हुआ देश
यह बच्चों को स्थायी विकलांगता का शिकार बनाने वाली एक खतरनाक बीमारी थी. भारत ने सरकार, गैर सरकारी संगठनों और स्थानीय समुदायों के सदस्यों की ओर से निरंतर और ठोस प्रयास के माध्यम से पोलियो उन्मूलन के असंभव से दिखते लक्ष्य को हासिल कर दिखाया