भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास की अगुआई वाली छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने दरों में कटौती के खिलाफ 4-2 से फैसला किया. इसका मतलब था कि रेपो रेट यानी व्यावसायिक बैंकों के आरबीआइ से कर्ज उठाने की ब्याज दर 6.5 फीसद पर बनी रहेगी. 6 दिसंबर को एमपीसी की बैठकों के बाद आरबीआई गवर्नर के नाते अपनी आखिरी प्रेस वार्ता में दास ने कहा कि केंद्रीय बैंक अपने चार्टर के अनुसार, "विकास पर जोर देने के साथ महंगाई पर काबू रखने के उपाय पर खास ध्यान देगा." दास का कार्यकाल 10 दिसंबर को समाप्त हुआ और अब 1990 बैच के आइएएस अधिकारी तथा केंद्रीय वित्त मंत्रालय में राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा को आरबीआइ का नया गवर्नर नियुक्त किया गया है.
दास के पास गवर्नर के रूप में एमपीसी में वीटो पावर था, इसलिए उन्होंने दो साल पहले के अपने सख्त रुख को बनाए रखने का फैसला किया, जब महंगाई की वजह से खपत में कटौती दिखी थी. उनका पक्का विश्वास था कि ब्याज दरों को ऊंचा रखकर महंगाई की दर कम करने से लोगों के हाथों में खर्च करने के लिए ज्यादा पैसा आएगा, जिससे मांग और विकास को बढ़ावा मिलेगा.
लेकिन केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और निर्मला सीतारमण शर्तिया यह नहीं सुनना चाहते थे क्योंकि दोनों ने सार्वजनिक रूप से वही कहा था जिसे कई लोग नरेंद्र मोदी सरकार की ख्वाहिश बताते हैं, यानी विकास रफ्तार बढ़ाने के लिए ब्याज दरों को घटाया जाए.
हालांकि, आरबीआइ ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में 50 आधार अंकों की कटौती की है. सीआरआर वह होता है, जो किसी व्यावसायिक बैंक को अपनी कुल जमाराशि के मुकाबले केंद्रीय बैंक के पास नकदी सुरक्षित रखनी होती है. यह महामारी से पहले के 4 फीसद के बराबर है. इससे बैंकिंग प्रणाली में 1.16 लाख करोड़ रुपए की नकदी आ जाएगी, जिससे बैंकों की औद्योगिक और खुदरा ग्राहकों को उधार देने की क्षमता बढ़ेगी.
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