हर बदलाव के लिए प्रतिपक्ष जरूरी है। प्रतिपक्ष यानी राजकाज और राज्य सत्ता का वैकल्पिक नजरिया, उसकी वैकल्पिक रूपरेखा । सत्ता के विरोध या विपक्ष का गठजोड़ भी शायद तभी कारगर होता है। सत्ता में कायम रहने के लिए भी विपक्ष के बरक्स मजबूत प्रतिपक्ष की दरकार होती है। आजाद भारत में जब जब सत्ता परिवर्तन हुआ है, प्रतिपक्ष के बेहतर एजेंडे के साथ तमाम छोटीबड़ी राजनैतिक-सामाजिक ताकतों के गठजोड़ से ही संभव हुआ है। जिसका जितना बड़ा गठजोड़, मोटे तौर पर उसकी जीत होती रही है। आज के राजनैतिक घटनाक्रमों पर गौर करें तो सब कुछ इसी राजनैतिक एहसास के इर्द-गिर्द घुमड़ रहा है। चाहे पटना में जनता दल (यूनाइटेड) या जदयू के नेता, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राष्ट्रीय जनता दल या राजद के नेता, उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की अगुआई में विपक्षी पार्टियों के नेताओं की बैठक हो; या फिर केंद्रीय सत्ता में मौजूद भारतीय जनता पार्टी या भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार के, बकौल विपक्ष, गैर-भाजपा सरकारों के लिए मुश्किल खड़ा करने के तौर-तरीके और विपक्ष की लगभग सभी पार्टियों के नेताओं पर ईडी-सीबीआइ का फंदा डालना हो; या छोटी-छोटी पार्टियों-समूहों को फिर से अपने पाले में वापस ले आने की कोशिश हो- ये सब उसी प्रतिपक्ष के एजेंडे और गठजोड़ को तैयार करने की रणनीतियां हैं जिनके सहारे सत्ता में कायम रहना या उसे हासिल करना मुमकिन है।
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गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं