अफसाना नया नहीं है। नया कुछ है तो बस आधुनिक बाजार की पैठ । विवाह, विवाहेतर रिश्ते, सुख की विविध आकांक्षाएं, वफा - बेवफाई तो शायद अनादिकाल से हैं। दुनिया भर के साहित्य, प्राचीन ग्रंथ, महाकाव्य, पौराणिक कथाओं में अनेक तरह के किस्से हमारी याददाश्त का हिस्सा हैं। शायद किसी भी दौर और किसी भी समाज में तमाम तरह की मानव-प्रवृत्तियां सक्रिय रहती हैं, लेकिन ये सब व्यक्तिगत मामले रहते आए हैं। हाल के दौर में रिश्तों की तलाश के व्यावसायीकरण की थोड़ी-बहुत या छोटे-मोटे धंधे का एक नजारा उत्तर भारत के शहरों और रेललाइनों के किनारे दीवार पर लिखे में देखा जा सकता था कि, “एक बार मिल तो लें।" अब कई डेटिंग ऐप ने इसे बाकायदा संगठित कारोबार और बाजार की शक्ल दे दी है। ये ऐप बाजार बनाने की तमाम मार्केटिंग रणनीतियां अपना रहे हैं और दबी-छुपी लालसाओं, वासनाओं के लिए मौका मुहैया करा रहे हैं। विवाहितों के लिए बने डेटिंग ऐप्स उन लोगों के लिए भी नए दरवाजे खोल रहे हैं, जिन्हें अब तक शादी 'निभाने' की बात लगा करती थी। यह पेशकश भी है कि बिना मिले सिर्फ बात या चैट करके (सेक्सटिंग) भी संतुष्टि पा सकते हैं। ये ऐप इंटरनेट और स्मार्टफोन के दौर में महानगरों से आगे छोटे शहरों और कस्बों तथा दूर-दराज के इलाकों में बाजार तलाश रहे हैं। कुछेक दावों को मानें तो दूसरे-तीसरे दर्जे के शहरों में विवाहेतर सेक्स इच्छाओं की पूर्ति का आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है।
विवाहित लोगों के लिए बनाई गई डेटिंग ऐप ग्लीडेन का दावा है कि फिलहाल 20 लाख लोग उसके एक्टिव यूजर हैं। ग्लीडेन ने हाल में एक सर्वेक्षण के जरिये दावा किया है कि महानगरों (टीयर -1) में 58 फीसदी लोगों ने विवाहेतर संबंधों की बात कबूली जबकि टीयर-2, 3 शहरों में 56 फीसदी लोग इसके हक में हैं। कथित तौर पर 1500 लोगों का यह सर्वे देश के 12 शहरों में किया गया है (देखें, आंकड़े कुछ कहते हैं )। ग्लीडेन की भारत में कंट्री मैनेजर सिबिल शिडेल के मुताबिक, महिलाओं द्वारा खास तौर से महिलाओं के लिए बनाए गए इस ऐप ने छोटे शहरों को भी वह आजादी दी जिसके बारे में खुद उन्होंने सोचा नहीं था। यह अलग बात है कि ग्लीडेन के पहले भी एक रिपोर्ट के अनुसार ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स के प्रयोग के मामले में भारत शीर्ष पांच देशों में शामिल था।
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