इक्कीसवीं सदी की शुरुआत एक अपशकुनी आशंका से हुई थी। वाइ2 के (यानी वर्ष दो हजार) अब शायद बहुतों को दिमाग पर काफी जोर देने पर याद इ आए। मिलेनियल्स, जेन जेड या ऐसी ही संज्ञाओं से जानी जाने वाली पीढ़ियां तो शायद सुनकर हैरान रह जाएं। उन्हें यह फिक्शन लगे, लेकिन डर वास्तविक था। कंप्यूटिंग एल्गोरिद्म वर्ष के आखिरी दो अंक ही दर्ज करता था (मसलन, 1999 का 99), ऐसे में अगला वर्ष 00 दर्ज होता तो सब कुछ गड़बड़ा जाता, पीछे का खो जाता। बड़ी मशक्कत से दुरुस्त हुआ। वर्ष के चार अंक शुरू से डाले गए, लेकिन इक्कीसवीं सदी की पहली चौथाई बीतते-बीतते टेक्नोलॉजी इतनी तेज गति से बदली कि यह बाबा आदम के जमाने की बात लगती है। स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और अब हमारे सामने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) का नफा-नुकसान, खतरा-जोखिम मुद्दा बना हुआ है। अपने दौर के महान वैज्ञानिक स्टीफेन हॉकिंग तो गहरे चेता गए हैं कि एआइ मानव सभ्यता को खत्म कर सकती है। टेक्नोलॉजी की छलांग हमारे जीवन, लोकाचार, रहन-सहन, संस्कृति, व्यापार, पेशा, राजनीति, अर्थव्यवस्था सब पर गहरा असर डाल रही है।
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गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं