आखिर यह आग क्यों नहीं बुझ रही है, इसके जवाब में वे कहती हैं कि यह खतरनाक पहचान और अस्मिता की राजनीति का हश्र है, जो अंतत: आइडिया ऑफ इंडिया पर ही चोट है। लेकिन वे यह भी कहती हैं कि दरअसल इसके मूल में जमीन के बाजारीकरण का पूंजीवादी अभियान ही है। उन्होंने हरिमोहन मिश्र से बातचीत में मणिपुर में महिलाओं के साथ अत्याचार, मैतेई और कुकी लोगों के बीच हिंसक लड़ाई को पृष्ठभूमि के साथ विस्तार से बताया। प्रमुख अंशः
मणिपुर में हिंसा इतने लंबे समय तक क्यों खिंच रही है?
मणिपुर में पहले भी देख चुके हैं कि नगा - कुकी, मैतेई-पांगाल, कुकी-पैतें झड़पें हुई हैं, लेकिन कभी ऐसी नौबत नहीं आई कि तीन महीने से ज्यादा समय तक झड़पें चली हों। लगता नहीं कि यह अभी बंद होगा और यह फैलता जा रहा है। इसमें मिजोरम भी अब आ गया है। नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कुछ कह दिया है। बाहर अमेरिका, यूरोपीय संघ सब जगह बयान जारी हो रहे हैं। तो पहला सवाल हमें यही पूछना चाहिए कि यह इतनी देर कैसे चल रहा है। पहले हम देखते हैं कि कुछ लोगों ने कहा कि इस हिंसा में मणिपुर राज्य सरकार या मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह या भाजपा का हाथ है। ऐसा कहने वाले सब लोगों के खिलाफ मणिपुर में मानहानि के मामले दायर हो गए। एक तो आप जानते हैं कि एनएफआइडब्लू की टीम जब गई थी तो उसके खिलाफ मानहानि के मामले दायर हो गए। लेकिन अब आप देखिए तो स्पष्ट हो जाता कि इस पूरे मामले में स्टेट का हाथ है। इसे कैसे हम कह सकते हैं? हाल में पत्रकार प्रवीण स्वामी के साथ एक इंटरव्यू में साउथ एशिया टेररिस्ट पोर्टल के अजय साहनी ने कहा कि ज्यादातर 24 या 48 घंटे में इस तरह की हिंसा संभल नहीं जाती, तो इसका मतलब ही है कि इसके पीछे स्टेट का हाथ है। मैं उन्हें इसलिए कोट कर रही हूं क्योंकि वे सिक्युरिटी एक्सपर्ट हैं। जब एक एक्सपर्ट कह रहा है कि स्टेट के हाथ के बिना यह इतने लंबे समय तक चल ही नहीं सकता, चाहे मणिपुर की या कोई दूसरी सरकार हो, तो पहला सबूत तो यही है। दूसरे, इस हिंसा में जितने गन, हथियार इस्तेमाल हुए हैं, इतने हथियारबंद गुट इसमें लिप्त हैं, यह कहीं और नहीं हुआ है, जहां तक मुझे मालूम है।
पुलिस शस्त्रागार से हथियार लूटने की घटना को कैसे देखती हैं?
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मराठी महाभारत
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