"चिली में फिल्मकारों के विचारों की हत्या कर दी जाती है। वहां कई फिल्मकार जेलों में हैं।" यह बात आज से कोई पैंतालीस साल पहले 1979 में चिली के प्रतिष्ठित फिल्म निर्देशक मिग्वेल लिटिन ने दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कही थी, जिसमें वे जूरी के सदस्य थे। तब चिली में तख्तापलट को हुए केवल छह बरस गुजरे थे। उस राजनीतिक घटनाक्रम ने न केवल उनकी जिंदगी, बल्कि उस देश की पीढ़ियों का मुस्तकबिल बदल डाला था। लिटिन उसके प्रत्यक्ष गवाह और भुक्तभोगी थे, इसलिए वे जो कह रहे थे उसे अच्छे से समझते भी थे।
चिली में सैन्य तानाशाही का अंत 1990 में हुआ। उसके बाद वहां कई चुनाव हुए, लेकिन आज भी वहां कानून का राज स्थिर नहीं है। जिन फौजी जनरलों ने हजारों असहमतों को 'ईश्वर, राष्ट्र और परिवार' के नाम पर मौत के घाट उतार दिया, उन्होंने चुनाव इस शर्त पर करवाए कि उनके ऊपर मुकदमे नहीं चलाए जाएंगे। ऐसे एक काले समझौते के साथ जो कथित 'प्रायश्चित' की प्रक्रिया चली, जाहिर है वह सच्ची नहीं हो सकती थी। इस अर्थ में देखें तो लिटिन के शब्द आज भी सत्य हैं - भले वहां कोई फिल्मकार आज जेल में न हो, लेकिन बीते पांच दशक के दौरान चिली के इतिहास पर या फिर मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों पर उसके उठाए सवाल आज भी उसे गंभीर संकट में डाल सकते हैं।
This story is from the October 02, 2023 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the October 02, 2023 edition of Outlook Hindi.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
गांधी पर आरोपों के बहाने
गांधी की हत्या के 76 साल बाद भी जिस तरह उन पर गोली दागने का जुनून जारी है, उस वक्त में इस किताब की बहुत जरूरत है। कुछ लोगों के लिए गांधी कितने असहनीय हैं कि वे उनकी तस्वीर पर ही गोली दागते रहते हैं?
जिंदगी संजोने की अकथ कथा
पायल कपाड़िया की फिल्म ऑल वी इमेजिन ऐज लाइट परदे पर नुमाया एक संवेदनशील कविता
अश्विन की 'कैरम' बॉल
लगन और मेहनत से महान बना खिलाड़ी, जो भारतीय क्रिकेट में अलग मुकाम बनाने में सफल हुआ
जिसने प्रतिभाओं के बैराज खोल दिए
बेनेगल ने अंकुर के साथ समानांतर सिनेमा और शबाना, स्मिता पाटील, नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी, गिरीश कार्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अनंतनाग जैसे कलाकारों और गोविंद निहलाणी जैसे फिल्मकारों की आमद हिंदी सिनेमा की परिभाषा और दुनिया ही बदल दी
सुविधा पचीसी
नई सदी के पहले 25 बरस में 25 नई चीजें, जिन्होंने हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पूरी तरह से बदल डाली
पहली चौथाई के अंधेरे
सांस्कृतिक रूप से ठहरे रूप से ठहरे हुए भारतीय समाज को ढाई दशक में राजनीति और पूंजी ने कैसे बदल डाला
लोकतंत्र में घटता लोक
कल्याणकारी राज्य के अधिकार केंद्रित राजनीति से होते हुए अब डिलिवरी या लाभार्थी राजनीति तक ढाई दशक का सियासी सफर
नई लीक के सूत्रधार
इतिहास मेरे काम का मूल्यांकन उदारता से करेगा। बतौर प्रधानमंत्री अपनी आखिरी सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस (3 जनवरी, 2014) में मनमोहन सिंह का वह एकदम शांत-सा जवाब बेहद मुखर था।
दो न्यायिक खानदानों की नजीर
खन्ना और चंद्रचूड़ खानदान के विरोधाभासी योगदान से फिसलनों और प्रतिबद्धताओं का अंदाजा
एमएसपी के लिए मौत से जंग
किसान नेता दल्लेवाल का आमरण अनशन जारी लेकिन केंद्र सरकार पर असर नहीं