मिनट भर का अंधेरा हमें अंधा नहीं कर सकता...
Outlook Hindi|October 02, 2023
आधुनिक विश्व में सबसे घृणित चिली में तख्तापलट और सर्वाधिक त्रासद तानाशाही सत्ता के आगमन के पचास साल पूरे होने पर सिनेमा के बहाने एक महान कवि की याद
विद्यार्थी चटर्जी
मिनट भर का अंधेरा हमें अंधा नहीं कर सकता...

"चिली में फिल्मकारों के विचारों की हत्या कर दी जाती है। वहां कई फिल्मकार जेलों में हैं।" यह बात आज से कोई पैंतालीस साल पहले 1979 में चिली के प्रतिष्ठित फिल्म निर्देशक मिग्वेल लिटिन ने दिल्ली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में कही थी, जिसमें वे जूरी के सदस्य थे। तब चिली में तख्तापलट को हुए केवल छह बरस गुजरे थे। उस राजनीतिक घटनाक्रम ने न केवल उनकी जिंदगी, बल्कि उस देश की पीढ़ियों का मुस्तकबिल बदल डाला था। लिटिन उसके प्रत्यक्ष गवाह और भुक्तभोगी थे, इसलिए वे जो कह रहे थे उसे अच्छे से समझते भी थे।

चिली में सैन्य तानाशाही का अंत 1990 में हुआ। उसके बाद वहां कई चुनाव हुए, लेकिन आज भी वहां कानून का राज स्थिर नहीं है। जिन फौजी जनरलों ने हजारों असहमतों को 'ईश्वर, राष्ट्र और परिवार' के नाम पर मौत के घाट उतार दिया, उन्होंने चुनाव इस शर्त पर करवाए कि उनके ऊपर मुकदमे नहीं चलाए जाएंगे। ऐसे एक काले समझौते के साथ जो कथित 'प्रायश्चित' की प्रक्रिया चली, जाहिर है वह सच्ची नहीं हो सकती थी। इस अर्थ में देखें तो लिटिन के शब्द आज भी सत्य हैं - भले वहां कोई फिल्मकार आज जेल में न हो, लेकिन बीते पांच दशक के दौरान चिली के इतिहास पर या फिर मौजूदा सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों पर उसके उठाए सवाल आज भी उसे गंभीर संकट में डाल सकते हैं।

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