फ्रांस गर्भपात को संवैधानिक अधिकार देने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है. फ्रांस के सांसदों ने 1958 के संविधान में बदलाव कर महिलाओं को गर्भपात से जुड़े मामले में पूरी तरह से फैसला लेने की आजादी दे दी है. इस संविधान संशोधन के पक्ष में 780 और विरोध में महज 72 वोट पड़े.
फ्रांस का यह कदम पूरी दुनिया में एक नजीर की तरह से देखा जा रहा है. दुनियाभर में इस की चर्चा हो रही है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने अपने संदेश में कहा कि 'यह पूरी दुनिया को एक संदेश देगा.' वहीं गर्भपात अधिकार के समर्थकों ने पेरिस में जुट कर इस फैसले की तारीफ की.
मौड फ्रांस के संविधान में 2008 के बाद से यह 25वां संशोधन है. इस फैसले पर लोगों ने एफिल टावर पर इकट्ठे हो कर 'माई बौडी माई चौइस' के नारे लगाते हुए अपना समर्थन जताया. गर्भपात को संवैधानिक अधिकार बनाने वाले संशोधन पर वोटिंग से पहले फ्रांस के प्रधानमंत्री गैब्रियल एटल ने संसद में कहा कि 'गर्भपात का अधिकार खतरे में था और निर्णय लेने वालों की दया पर निर्भर था. हम सभी महिलाओं को एक संदेश दे रहे हैं कि आप के शरीर पर आप का ही अधिकार है और कोई दूसरा इसे ले कर फैसला नहीं कर सकता है.'
दिल्ली प्रैस प्रकाशन की विचारोत्तेजक पत्रिका 'सरिता' बहुत पहले से गर्भपात के मसले पर महिलाओं की पुरजोर आवाज को उठाने का काम करती रही है. उस ने भी समयसमय पर अपने लेखों में यह समझाने का काम किया कि 'गर्भपात डाक्टर और महिला के बीच का फैसला होना चाहिए. जैसे किसी अंग के प्रभावित होने या शरीर के साथ खतरा बनने पर उस को शरीर से अलग करने का फैसला डाक्टर और मरीज लेते हैं. वैसे ही गर्भपात का फैसला डाक्टर और महिला मिल कर लें. कानून का दखल इस में नहीं होना चाहिए.'
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