भ्रामक विज्ञापन से जुड़े अवमानना मामले में आखिरकार पतंजलि को घुटनों के बल आना पड़ा. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव को फटकार लगाई और बड़े साइज का माफीनामा विज्ञापन प्रकाशित करने को कहा.
दरअसल पिछले 8-10 सालों में भगवान टाइप बनने वाले जो आदमी पैदा हुए हैं रामदेव उन में से एक हैं. योग और आयुर्वेद की आड़ में रामदेव ने देखते ही देखते अरबोंखरबों का साम्राज्य खड़ा कर लिया और साबित कर दिया कि इस देश के लोग घोषिततौर पर मूर्ख हैं जो चमत्कारों के नाम पर तबीयत से पैसा लुटाते हैं. लेकिन किस्सा यहीं खत्म नहीं होता बल्कि शुरू होता है कि साल 2010 के बाद जब एकाएक ही हिंदुत्व की आंधी चली और 2014 में राजनीति, कौर्पोरेट और धर्म के घालमेल से एक ऐसे गिरोह का जन्म हुआ जिस ने राष्ट्रवाद के नाम पर नाना प्रकार के पाखंडों को जम कर भुनाया. सिलसिला अभी भी चालू है. सुप्रीम कोर्ट ने तो उस के एक हिस्से पर अपना सख्त रवैया भर दिखाया है जो बेहद जरूरी भी हो चला था.
बेहिचक कहा जा सकता है कि पापों का घड़ा भरने वाला मुहावरा यों ही नहीं गढ़ दिया गया है. पतंजलि के अघोषित मालिक रामदेव अब घुटनों के बल आ गए हैं और जैसे भी हो, इस लोकतांत्रिक झंझट से मुक्ति चाहते हैं. लेकिन यह कोई धार्मिक मोक्ष नहीं है जो गंगा में डुबकी लगाने या ब्राह्मण को दान देने से मिल जाएगा. यह एक ठग और अपराधी के प्रति देश की सब से बड़ी अदालत का कानूनी शिकंजा है जिस का मकसद करोड़ों लोगों को भ्रम और चमत्कारों के नाम पर की जा रही ठगी और चारसौबीसी से बचाना है, नहीं तो केंद्र और भाजपाशासित राज्य सरकारें तो जितना मुमकिन हो सकता था उस से भी ज्यादा रामदेव को सिर चढ़ा चुकी हैं. जायजनाजायज सहूलियतें और बेशकीमती जमीनें उसे और पतंजलि को कौड़ियों के भाव दान कर चुकी हैं जिस के एवज में रामदेव उन के सनातनी एजेंडे का प्रचार किया करता है.
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"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
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