कांग्रेस ग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के कार्यकाल में आरटीआई, शिक्षा का अधिकार, मनरेगा का विस्तार, डायरैक्ट बेनिफिट ट्रांसफर जैसी जनकल्याणकारी योजनाएं सरकार की प्रमुख उपलब्धियां रहीं. गांवों के समग्र विकास के लिए प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की गई तो देश के हर नागरिक को बैंकिंग की सुविधा देने के लिए योजनाएं चलाई गईं.
सोनिया गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी किसी खास नारे के साथ चुनाव नहीं लड़ी थी पर लगता है कि भाजपा नेता अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में देश जिस दिशा में जा रहा था उसे आम जनता ने पसंद नहीं किया. 2004 और 2014 में फर्क यह था कि तब भारतीय जनता पार्टी के पास नरेंद्र मोदी जैसा विशुद्ध हिंदूवादी नेता नहीं था. 2004 में भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज, मुरली मनोहर जोशी, जसवंत सिंह जैसे नेताओं के हाथों में था जो हिंदूहिंदू तो कहते थे पर हिंदू समाज को काटपीट करने का उपदेश दे कर मुसलमानों से अलग नहीं करना चाहते थे.
यूपीए-2 के 4 वर्षों के कार्यकाल में भी ऐसे कई मुश्किल मौके आए जब लगा कि सरकार खतरे में है, लेकिन इन सब के बावजूद सरकार चलती रही. 2जी विवाद, जेपीसी बनाने को ले कर सदन में हुए हंगामे और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर कई बार ऐसा लगा कि सदन में सरकार नंबर गेम में पिछड़ जाएगी. फिर भी इस तरह की अफरातफरी में भी कई कानून बने जिन का जनता और समाज पर असर पड़ा.
हाशिए पर खड़े लोगों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश
2004 से 2014 के बीच यूपीए 1 और यूपीए 2 सरकारों के कार्यकालों में इन कानूनी सुधारों का काम सोनिया गांधी की अपनी दृष्टि, सामाजिक सरोकार और उन की बलवती इच्छा से संभव हुआ. सरकार ने महिलाओं, एससीएसटी और माइनोरिटी के हक में अहम फैसले लिए, कानून पास कराए. इस श्रृंखला में हम महिलाओं के लिए सबला, मातृत्व सहयोग योजना, प्रियदर्शिनी और नैशनल वुमन एंपावरमेंट मिशन जैसी योजनाओं, जो यूपीए-2 की देन हैं, की बात न कर के सिर्फ कानूनों की कर रहे हैं.
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अच्छा लगता है सिंगल रहना
शादी को ले कर लड़कियों में पुराने रूढ़िगत विचार नहीं रहे. जौब, सैल्फ रिस्पैक्ट, बराबरी ये वे पैमाने हैं जिन्होंने उन्हें देर से शादी करने या नहीं करने के औप्शन दे डाले हैं.
मां के पल्लू से निकलें
पत्नी चाहती है कि उस का पति स्वतंत्र व आत्मनिर्भर हो. ममाज बौयज पति के साथ पत्नी खुद को रिश्ते में अकेला और उपेक्षित महसूस करती है.
पोटैशियम और मैग्नीशियम शरीर के लिए कितने जरूरी
जिन लोगों को आहार से मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे अति आवश्यक तत्त्व पर्याप्त मात्रा में नहीं मिल पाते और शरीर में इन की कमी हो जाती है, उन में कई प्रकार की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा हो सकता है.
क्या शादी छिपाई जा सकती है
शादी का छिपाना अब पहले जैसा आसान नहीं रहा क्योंकि अब इस पर कानूनी एतराज जताए जाने लगे हैं. हालांकि कई बार पहली या दूसरी शादी की बात छिपाना मजबूरी भी हो जाती है. इस की एक अहम वजह तलाक के मुकदमों में होने वाली देरी भी है जिस के चलते पतिपत्नी जवान से अधेड़ और अधेड़ से बूढ़े तक हो जाते हैं लेकिन उन्हें तलाक की डिक्री नहीं मिलती.
साइकोएक्टिव ड्रग्स जैसा धार्मिक अंधविश्वास
एक परिवार सायनाइड खा लेता है, एक महिला अपने लड्डू गोपाल को स्कूल भेजती है, कुछ बच्चे काल्पनिक देवताओं को अपना दोस्त मानते हैं. इन घटनाओं के पीछे छिपा है धार्मिक अंधविश्वास का वह असर जो मानव की सोच व व्यवहार को बुरी तरह प्रभावित करता है.
23 नवंबर के चुनावी नतीजे भाजपा को जीत पर आधी
जून से नवंबर सिर्फ 5 माह में महाराष्ट्र व झारखंड की विधानसभाओं और दूसरे उपचुनावों में चुनावी समीकरण कैसे बदल गया, लोकसभा चुनावों में मुंह लटकाने वाली पार्टी के चेहरे पर मुसकान आ गई लेकिन कुछ काटे चुभे भी.
1947 के बाद कानूनों से बदलाव की हवा
क्या कानून हमेशा समाज सुधार का रास्ता दिखाते हैं या कभीकभी सत्ता के इरादों का मुखौटा बन जाते हैं? 2014 से 2024 के बीच बने कानूनों की तह में झांकें तो भारतीय लोकतंत्र की तसवीर कुछ अलग ही नजर आती है.
अदालती पेंचों में फंसी युवतियां
आज भी कानून द्वारा थोपी जा रही पौराणिक पाबंदियों और नियमकानूनों के चलते युवतियों का जीवन दूभर है. मुश्किल तब ज्यादा खड़ी हो जाती है जब कानून बना वाले और लागू कराने वाले असल नेता व जज उन्हें राहत देने की जगह धर्म का पाठ पढ़ाते दिखाई देते हैं.
"पुरुष सत्तात्मक सोच बदलने पर ही बड़ा बदलाव आएगा” बिनायफर कोहली
'एफआईआर', 'भाभीजी घर पर हैं', 'हप्पू की उलटन पलटन' जैसे टौप कौमेडी फैमिली शोज की निर्माता बिनायफर कोहली अपने शोज के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का संदेश देने में यकीन रखती हैं. वह अपने शोज की महिला किरदारों को गृहणी की जगह वर्किंग और तेजतर्रार दिखाती हैं, ताकि आज की जनरेशन कनैक्ट हो सके.
पतिपत्नी के रिश्ते में बदसूरत मोड़ क्यों
पतिपत्नी के रिश्ते के माने अब सिर्फ इतने भर नहीं रह गए हैं कि पति कमाए और पत्नी घर चलाए. अब दोनों को ही कमाना और घर चलाना पड़ रहा है जो सलीके से हंसते खेलते चलता भी है. लेकिन दिक्कत तब खड़ी होती है जब कोई एक अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ते अनुपयोगी हो कर भार बनने लगता है और अगर वह पति हो तो उस का प्रताड़ित किया जाना शुरू हो जाता है.