![पुण्यपर्व अक्षया तृतीया शास्त्रीय और लौकिक महत्त्व](https://cdn.magzter.com/1382621400/1679744238/articles/o5wi6umED1679918521081/1679918824217.jpg)
कुछ धार्मिक पर्व हैं, जो देवी-देवताओं को समर्पित होते हैं तथा कुछ लोक पर्व हैं, जो कि किसी ऐतिहासिक घटना के आधार पर लोकमानस ने प्रारम्भ किए थे। इन सबसे हटकर कुछ ऐसे पर्व भी हैं, जो मानव जीवन और मानव चिन्तन को एक विश्वजनीय, अखण्ड, अनादि और अनन्त सत्ता के साथ जोड़ते हैं। अक्षय तृतीया ऐसे ही पर्वों में से एक है, जिसे ‘पुण्य पर्व' कहा जा सकता है।
हमारे प्रत्येक धार्मिक कार्य के प्रारम्भ में जो संकल्प किया जाता है, उसमें देश और काल के स्मरण के नाम पर वह कार्य करने वाला व्यक्ति अपनेआपको सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर आज तक का इतिहास याद करते हुए वर्तमान बिन्दु से जोड़ता है। इसमें वह बतलाता है कि सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक इतने कल्प, मन्वन्तर इतने और इतने युग बीत गए हैं। सृष्टि का यह कॅलेंडर अरबों वर्षों का है।
यह कॅलेंडर बिन्दु से वर्तमान इस प्रकार फैलता है : वर्तमान में हम कलियुग में बैठे हैं, जो 4 लाख 32 हजार वर्ष का होता है। इससे दोगुना द्वापर युग कहलाता है, जो इससे पूर्व बीत गया। कलियुग से तिगुना त्रेता युग कहलाता है, जो उससे पूर्व बीत गया और चौगुना सत्य युग कहलाता है, जो उससे भी पूर्व बीता था। इस प्रकार 43 लाख 20 हजार वर्ष की 'एक चतुर्युगी' हुई। यह हमारे कॅलेंडर का एक पैमाना है। ऐसी 71 चतुर्युगियों का 'एक मन्वन्तर' होता है और ऐसे 14 मन्वन्तरों का एक कल्प'।
सृष्टि के एक क्रम में ऐसे सात कल्प माने जाते हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर 4 अरब 32 करोड़ वर्ष के कल्प का सृष्टि क्रम प्रतिदिन हमें याद रखना होता है। इतनी बड़ी काल यात्रा से हमारा मन प्रतिदिन जुड़ा रहता है। वर्तमान में जो कल्प चल रहा है, उसका नाम 'श्वेतवाराह' है, जो मन्वन्तर चल रहा है, उसका नाम 'वैवस्वत ।' इस मन्वन्तर में 27 चतुर्युगियाँ बीत चुकी हैं, 27वीं चल रही है।
هذه القصة مأخوذة من طبعة April-2023 من Jyotish Sagar.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك ? تسجيل الدخول
هذه القصة مأخوذة من طبعة April-2023 من Jyotish Sagar.
ابدأ النسخة التجريبية المجانية من Magzter GOLD لمدة 7 أيام للوصول إلى آلاف القصص المتميزة المنسقة وأكثر من 9,000 مجلة وصحيفة.
بالفعل مشترك? تسجيل الدخول
![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण
व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
![पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/zegU84DgF1717490350227/1717490505401.jpg)
पवित्र दिवस है गंगा-दशहरा
गंगा दशमी न केवल पूजा-पाठ और अध्यात्म तक सीमित रहना चाहिए वरन् इसके साथ-साथ हमें गंगा नदी के संरक्षण और गंगा जल जैसे पक्षों पर शोध की दिशा में भी आगे बढ़ना चाहिए।
![मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/bbPdmvJN-1717490130991/1717490336592.jpg)
मनोचिकित्सा से आरोग्य लाभ
आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
![हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/vL5RQQZhC1717489780838/1717490123259.jpg)
हनुमान् 'जयन्ती' या 'जन्मोत्सव'?
मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
![पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nIlnEEMbu1717489473517/1717489776705.jpg)
पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतारपुर साहिब और नवनिर्मित कोरीडोर-टर्मिनल
आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
![शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nlnWRtezY1717485878963/1717486133863.jpg)
शनि साढ़ेसाती और मनुष्य के जीवन पर प्रभाव
ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
![गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/nvu03X-qv1717485453437/1717485866948.jpg)
गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
![सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/vayhOmmzt1717485129027/1717485421191.jpg)
सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
![अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/2yWm_u4W31714474136097/1714474267037.jpg)
अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
![सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/vHJD203bs1714473957430/1714474112917.jpg)
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।