राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
Jyotish Sagar|September 2024
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि

दिनकर की सृजनशीलता इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि 'वादों' और 'खेमों' के दौर से गुजरती हुई उनकी सृजन-यात्रा न तो किसी वाद में बँधी और न ही किसी खास पड़ाव पर ठहरी । दिनकर की कविता का मुख्य स्वर आदि से अन्त तक केवल और केवल मानवतावादी रहा। छायावाद, प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का अभ्युदय उस दौर पर भारीभरकम और धमाकेदार घटनाएँ थीं, किन्तु दिनकर इन सबसे न केवल अप्रभावित रहे, वरन् तटस्थ भाव से अपने सृजन को नई दिशा देते रहे।

दिनकर छायावादोत्तर काल के बाद के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण, प्रतिभा सम्पन्न और विचारशील कवि थे। निराला, मैथिलीशरण गुप्त, प्रसाद, महादेवी वर्मा, बच्चन, रामेश्वर शुक्ल 'अंचल' और पं. नरेन्द्र शर्मा जैसे कवियों की श्रृंखला में दिनकर ने अपने रचनाधर्म से एक विशिष्ट स्थान बनाया।

दरअसल दिनकर की कविता एक पौरुष काव्य है, जिसे सुनकर अन्दर एक आग-सी सुलगने लगती है। उनकी कविता में ठुमक ठुमककर चलने की नजाकत नहीं है, वरन् एक लय और रफ्तार है, जो जीवन को गतिशील करती है। दिनकर ने हिन्दी कविता को मशाल, नारी का सौन्दर्य, फूल, तितलियों, आकाश में जगमगाते सितारों, सावन की फुहारों आदि के शाब्दिक स्वप्नलोक से बाहर निकलकर और पौरुष सिंहनाद की गर्जन से भरे नए मुहावरे दिए।

ठण्डी, शीतल और स्निग्ध हिन्दी कविता के आँचल में उन्होंने जिन्दगी की सच्चाइयों में धधकते अँगारे रख दिए। दिनकर के शब्दों में तेज, ओजस्विता, प्रखरता और साहस ने हिन्दी कविता को एक नई खुरदरी छवि और यथार्थ की गरिमा प्रदान की।

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