![श्रीगुरुगीता (भाग-18)](https://cdn.magzter.com/1382621400/1679744238/articles/kzJ4ywWm31679920282319/1679920604109.jpg)
स्कन्दपुराणोक्त 'श्रीगुरुगीता' की व्याख्या पर आधारित प्रस्तुत लेखमाला में विगत 17 भागों में प्रारम्भ के 126 श्लोकों की व्याख्या प्रकाशित की जा चुकी है। अब उससे आगे के श्लोक व्याख्या सहित प्रस्तुत है।
॥ श्लोक 127 ॥
स देश: शुद्धौ: यत्रासौ स्वभावाद्यत्र तिष्ठति।
तत्र देवगणा: सर्वे क्षेत्रे पीठे वसन्ति हि॥
अन्वय: यत्रासौ स्वभावाद्यत्र तिष्ठति स देश: शुद्धौः तत्र क्षेत्रे पीठे सर्वे देवगणा: हि वसन्ति।
शब्दार्थ : यत्रासौ = जहाँ वह; स्वभावाद्यत्र = स्वभाविक रूप से जहाँ; तिष्ठति = निवास करते हैं अथवा विराजमान होते हैं; स = वह; देश: = प्रदेश; शुद्धौ: = पवित्र; तत्र = वहाँ; क्षेत्रे = क्षेत्र में; पीठे=पीठों में; सर्वे = सभी; देवगणा: = देवतागण; हि = भी; वसन्ति = निवास करते हैं।
भावार्थ : जहाँ कहीं वह (सद्गुरु) स्वाभाविक रूप से निवास करते हैं, उन सभी प्रदेशों एवं पीठों में देवतागण भी निवास करते हैं।
व्याख्या : सद्गुरु के निवास से न केवल वह आश्रम या पीठ ही शुद्ध या पवित्र होती है, वरन् वह सम्पूर्ण प्रदेश भी पवित्र और ऊर्जावान् बन जाता है। फलतः उस प्रदेश के सभी क्षेत्रों एवं पीठों में स्वयं देवतागण भी निवास करते हैं।
।। श्लोक 128-129 ॥
आसनस्थ: शयानो वा गच्छंस्तिष्ठन् वदन्नपि ।
अश्वारूढो गजारूढ: सुप्तो व जागृतोऽपि वा ।।
शुचिमांश्च सदा ज्ञानी गुरुगीताजपेन तु ।
तस्य दर्शनमात्रेण पुनर्जन्म न विद्यते ॥
अन्वय : आसनस्थ शयानो गच्छ: तिष्ठन: वदन्नपि वा अश्वारूढो गजारूढ: सुप्तो वा जागृतोऽपि वा तु ज्ञानी गुरुगीताजपेन सदाशुचिः एवं तस्य दर्शनमात्रेण पुनर्जन्म न विद्यते।
This story is from the April-2023 edition of Jyotish Sagar.
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![एकादशी व्रत का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1718785/wx1Dd0-dn1717490549774/1717490752361.jpg)
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व्रत और उपवास भारतीय जनमानस में गहरे गुँथे हुए शब्द हैं। 'व्रत' का अर्थ होता है, 'संकल्प हैं। लेना' अर्थात् अपने मन और शरीर की आवश्यकताओं को नियंत्रित करते हुए स्वयं को संयमित करना।
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आरोग्य की दृष्टि से शारीरिक रोगों के साथ-साथ मानसिक व्याधियों की भी मुख्य भूमिका रहती है।
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मूल रूप से 'जयन्ती' शब्द ' जन्मदिवस' या 'जन्मोत्सव' के रूप में प्रयुक्त नहीं होता था, परन्तु श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक भेद के रूप में कृष्ण जयन्ती से चलते हुए यह शब्द अन्य देवी-देवताओं के जन्मतिथि के सन्दर्भ में भी प्रयुक्त होने लगा।
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आखिर ऐसा क्या है कि इतना प्रसिद्ध तीर्थस्थल होने के बाद भी गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में जाने वाले दर्शनार्थियों की संख्या जैसी उम्मीद की गई थी, उसकी तुलना में हमेशा ही बहुत कम रहती है।
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ज्योतिष शास्त्र अति प्राचीन काल से जाना जाता है। सिद्धान्त, संहिता तथा होरा नामक तीन स्कन्धों से युक्त इसे 'वेदों का नेत्र' कहा गया है। वैसे तो वेद के दो नेत्र होते हैंस्मृति और ज्योतिष।
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गोचराष्टक वर्ग से शनि के गोचर का अध्ययन
यदि ग्रह गोचराष्टक वर्ग में 4 या अधिक रेखाओं वाली राशि पर गोचर कर रहा है, तो जिन-जिन कक्षाओं में उस राशि को शुभ रेखाएँ प्राप्त हुई हैं, उन कक्षाओं के स्वामी ग्रह के जन्मपत्रिका में भावों और नैसर्गिक कारकत्वों से सम्बन्धित शुभफलों की प्राप्ति होती है।
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सप्तर्षि और सप्तर्षि मण्डल
प्रत्येक मनु के काल को मन्वन्तर कहा जाता है। प्रत्येक मन्वन्तर में देवता, इन्द्र, सप्तर्षि और मनु पुत्र भिन्न-भिन्न होते हैं। जैसे ही मन्वन्तर बदलता है, तो मनु भी बदल जाते हैं और उनके साथ ही सप्तर्षि, देवता, इन्द्र आदि भी बदल जाते हैं।
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अजमेर की भगवान् नृसिंह प्रतिमाएँ
विधानानुसार नृसिंहावतार मानव एवं पशु रूप धारण किए, शीश पर मुकुट, बड़े नाखून, अपनी जानू पर स्नेह के साथ प्रह्लाद को बिठाए हुए है। बालक प्रह्लाद आँखें मूँदे, करबद्ध विनम्र भाव से स्तुति करते प्रतीत हो रहे हैं।
![सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/4730/1679328/vHJD203bs1714473957430/1714474112917.jpg)
सूर्य नमस्कार से आरोग्य लाभ
सूर्य नमस्कार की विशेष बात यह है कि इसका प्रत्येक अगले आसन के लिए प्रेरित करता है। इस क्रम में लगातार 12 आसन होते हैं। इन आसनों में श्वास को पूरी तरह भीतर लेने और बाहर निकालने पर बल दिया जाता है।