श्री मद्भागवत् गीता के दूसरे अध्याय में । भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—
अविनाशि त तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।
विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति ॥
अर्थात् पूरे शरीर में व्याप्त अविनाशी आत्मा को नष्ट करने में कोई भी समर्थ नहीं है। अजर, अमर और अनश्वर चेतना ही आत्मा है। आत्मा का निवास ही शरीर को जीवित रखता है।
यह एक परम सत्य है कि सूर्य की ऊर्जा और प्रकाश ही संसार के प्रत्येक जीव में जीवन का संचार करती है। तभी तो हमारे मनीषियों ने वेदों में सूर्य को 'आत्मा' की संज्ञा प्रदान की गई है। सूर्य का एक नाम आदित्य भी है, जिसका न आदि है और न ही अन्त, जो सदा सर्वदा व्याप्त है।
ज्योतिष में सूर्य को राजसी पद प्राप्त है। सूर्य ग्रहों का राजा है। तभी तो बाकी सारे ग्रह चन्द्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि सूर्य के करीब आते ही अस्त हो जाते हैं। चन्द्रमा-मन, मंगल-शक्ति, बुध-बुद्धि, बृहस्पति-ज्ञान, शुक्र ऐश्वर्य और शनि दु:ख का कारक है।
अन्य शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि आत्मा के तेज के समक्ष बाकी सब कुछ अस्तित्व विहीन अथवा नगण्य हो जाते हैं।
चंचलं हि मनः कृष्णं प्रमाथि बलवद् दृढम् ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥
श्रीमद्भगवत्गीता में अर्जुन भगवान् श्रीकृष्ण से कहते हैं, “हे कृष्ण! मन बड़ा ही चंचल, अशांत, हठी और बलवान् है। उसको वश में करना अत्यन्त कठिन है।” मन को मस्तिष्क का ही एक भाग माना जा सकता है, जिसकी सहायता से मनुष्य चिन्तन करता है। मन ही मनुष्य को स्मरण शक्ति, निर्णय करने की बुद्धि, इन्द्रियग्राह्यता, एकाग्रता, व्यवहारकुशलता, अंतर्दृष्टि आदि के लिए के लिए सक्षम बनाता है। मन ही भावनाओं का केन्द्र भी होता है, लेकिन मन चंचल होता है, तभी तो मनुष्य की स्मरण शक्ति, भावनाएँ, इन्द्रिय सुख प्राप्त करने की इच्छा, एकाग्रता सब-कुछ परिवर्तनशील है, नश्वर है। मन भौतिक है, उसका अस्तित्व तन से ही है। तन नहीं, तो मन भी नहीं, लेकिन आत्मा तो दिव्य है, शाश्वत है।
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सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
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राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।