जातक पंजिका - 262 : जन्मपत्रिका विश्लेषण
19 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध का भारत दासता की बेड़ियों से मुक्त होने के लिए छटपटा रहा था, उसके साथ ही सांस्कृतिक पुनर्जागरण का भी आभास दे रहा था । हिन्दू धर्म एवं अध्यात्म भी इससे अछूता नहीं रहा, जिसके चलते ब्रह्मसमाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन इत्यादि राष्ट्रीय स्तर की संस्थाएँ जनमानस के आध्यात्मिक मतों को आडोलित कर रही थीं। इस पृष्ठभूमि में कलकत्ता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पिता डा. कृष्णधन घोष एवं माता स्वर्णलता की तीसरी सन्तान के रूप में 15 अगस्त, 1872 के दिन जब सूर्य पूर्वी क्षितिज पर उदित होने के लिए तैयार हो रहे थे, उसी समय एक बालक का जन्म होता है, जो भारत के आधुनिक इतिहास में महर्षि अरविन्द के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
यद्यपि महर्षि अरविन्द का परिवार ब्रह्मसमाज का अनुयायी था, परन्तु पिता डॉ. कृष्णधन घोष अंग्रेजी संस्कृति से पूरी तरह प्रभावित थे और उन्होंने अपने बच्चों को पूरा ‘अंग्रेज’ बनाने का प्रयास किया। यहाँ तक कि परिवार में वार्तालाप भी अंग्रेजी में ही होता था। डॉ. घोष ने अपने तीनों पुत्रों (विनय भूषण, मनमोहन और अरविन्द) को दार्जिलिंग के लॉरेटो कॉन्वेंट स्कूल में दाखिल करवा दिया। उस समय अरविन्द केवल पाँच वर्ष के ही थे। वहाँ वे दो वर्ष तक रहे। उनकी एक छोटी बहिन सरोजिनी और एक छोटा भाई बारीन भी था। उसके बाद महर्षि अरविन्द का परिवार इंग्लैण्ड चला गया। वहाँ कुछ समय तक उनके मातापिता रहे, परन्तु बाद में पिता नौकरी पर भारत लौट आए और उसके कुछ समय बाद ही माता स्वर्णलता अपने दो छोटे बच्चों के साथ वापस भारत लौट गयीं।
अरविन्द और उनके दोनों बड़े भाइयों की शिक्षा इंग्लैण्ड में ही हुई। अरविन्द लगभग 14 वर्ष (18791892) तक इंग्लैण्ड में मैनचेस्टर, लंदन एवं केम्ब्रिज में रहे थे। स्थानीय संरक्षक के परिवार में रहते हुए अरविन्द ने लैटिन, फ्रेंच, ग्रीक आदि भाषाएँ सीख ली थीं और इनके साहित्य का अध्ययन किया। यहाँ तक कि बाल्यावस्था में ही वे कविता करने लग गए थे और उन्हें ‘फॉक्स फैमिली' मैगजीन में भी भेजते थे। अपनी औपचारिक शिक्षा के दौरान भी उन्होंने लगातार कविताएँ लिखीं और उनका प्रकाशन करवाया।
This story is from the February 2024 edition of Jyotish Sagar.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Sign In
This story is from the February 2024 edition of Jyotish Sagar.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Sign In
सात धामों में श्रेष्ठ है तीर्थराज गयाजी
गया हिन्दुओं का पवित्र और प्रधान तीर्थ है। मान्यता है कि यहाँ श्रद्धा और पिण्डदान करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है, क्योंकि यह सात धामों में से एक धाम है। गया में सभी जगह तीर्थ विराजमान हैं।
सत्साहित्य के पुरोधा हनुमान प्रसाद पोद्दार
प्रसिद्ध धार्मिक सचित्र पत्रिका ‘कल्याण’ एवं ‘गीताप्रेस, गोरखपुर के सत्साहित्य से शायद ही कोई हिन्दू अपरिचित होगा। इस सत्साहित्य के प्रचारप्रसार के मुख्य कर्ता-धर्ता थे श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार, जिन्हें 'भाई जी' के नाम से भी सम्बोधित किया जाता रहा है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर अमृत गीत तुम रचो कलानिधि
राष्ट्रकवि स्व. रामधारी सिंह दिनकर को आमतौर पर एक प्रखर राष्ट्रवादी और ओजस्वी कवि के रूप में माना जाता है, लेकिन वस्तुतः दिनकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था। कवि के अतिरिक्त वह एक यशस्वी गद्यकार, निर्लिप्त समीक्षक, मौलिक चिन्तक, श्रेष्ठ दार्शनिक, सौम्य विचारक और सबसे बढ़कर बहुत ही संवेदनशील इन्सान भी थे।
सेतुबन्ध और श्रीरामेश्वर धाम की स्थापना
जो मनुष्य मेरे द्वारा स्थापित किए हुए इन रामेश्वर जी के दर्शन करेंगे, वे शरीर छोड़कर मेरे लोक को जाएँगे और जो गंगाजल लाकर इन पर चढ़ाएगा, वह मनुष्य तायुज्य मुक्ति पाएगा अर्थात् मेरे साथ एक हो जाएगा।
वागड़ की स्थापत्य कला में नृत्य-गणपति
प्राचीन काल से ही भारतीय शिक्षा कर्म का क्षेत्र बहुत विस्तृत रहा है। भारतीय शिक्षा में कला की शिक्षा का अपना ही महत्त्व शुक्राचार्य के अनुसार ही कलाओं के भिन्न-भिन्न नाम ही नहीं, अपितु केवल लक्षण ही कहे जा सकते हैं, क्योंकि क्रिया के पार्थक्य से ही कलाओं में भेद होता है। जैसे नृत्य कला को हाव-भाव आदि के साथ ‘गति नृत्य' भी कहा जाता है। नृत्य कला में करण, अंगहार, विभाव, भाव एवं रसों की अभिव्यक्ति की जाती है।
व्यावसायिक वास्तु के अनुसार शोरूम और दूकानें कैसी होनी चाहिए?
ऑफिस के एकदम कॉर्नर का दरवाजा हमेशा बिजनेस में नुकसान देता है। ऐसे ऑफिस में जो वर्कर काम करते हैं, तो उनको स्वास्थ्य से जुड़ी कई परेशानियाँ आती हैं।
श्रीगणेश नाम रहस्य
हिन्दुओं के पंच परमेश्वर में भगवान् गणेश का स्थान प्रथम माना जाता है। शंकराचार्य जी ने के भी पंचायतन पूजा में गणेश पूजन विधान का उल्लेख किया है। गणेश से तात्पर्य गण + ईश अर्थात् गणों का ईश से है। भगवान् गणेश को कई अन्य नामों से भी पूजा जाता है जैसे विघ्न विनाशक, विनायक, लम्बोदर, सिद्धि विनायक आदि।
प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक 'श्रीराधा'
कृष्ण चरित के प्रतिनिधि शास्त्र भागवत और महाभारत में राधा का उल्लेख नहीं होने के बावजूद वे लोकमानस में प्रेम और भक्ति की अनन्य प्रतीक के रूप में बसी हुई हैं। सन्त महात्माओं ने उन्हें कृष्णचरित का अभिन्न अंग माना है। उनकी मान्यता है कि प्रेम और भक्ति की जैसे कोई सीमा नहीं है, उसी तरह राधा का चरित, उनकी लीला और स्वरूप भी प्रेमाभक्ति का चरमोत्कर्ष है।
राजस्थान के लोकदेवता और समाज सुधारक बाबा रामदेव
राजस्थान के देवी-देवताओं में बाबा रामदेव का नाम काफी विख्यात है। इनके अनुयायी राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात और सिन्ध (पाकिस्तान) आदि में बड़ी संख्या में हैं।
जन्मपत्रिका में चन्द्रमा और मनुष्य का भावनात्मक जुड़ाव
जिस प्रकार लग्न हमारा शरीर अर्थात् बाहरी व्यक्तित्व है, उसी प्रकार चन्द्रमा हमारा सूक्ष्म व्यक्तित्व है, जो किसी को भी दिखाई नहीं देता, लेकिन महसूस अवश्य होता है।