महारानी अहिल्या बाई होल्कर
Kendra Bharati - केन्द्र भारती|February 2023 Issue
भारत में नारी की भूमिका प्राचीन के अर्वाचीन समय में ममतामयी 'माँ' के रूप में रही है।
स्मिता बेन झाला
महारानी अहिल्या बाई होल्कर

मुख्यतः भारतीय स्त्री समर्पित पत्नी और वात्सल्यमयी माँ के स्वरूप में समाई हुई है। मातृ रूप में स्त्री की गरिमा, शक्ति रूप में देवी और राष्ट्रीयता के सन्दर्भ में मातृभूमि की परिकल्पना, सांस्कृतिक परम्परा में प्रतिष्ठित है। अस्त्र-शस्त्र तथा शासन वंश में प्रवीण वीरांगना के स्वरूप में संघर्षरत नारी देखने को मिलती है।

नारी की शासकीय भूमिका को गौरव प्रदान करनेवाली महारानी अहिल्याबाई होल्कर का तीन दशक का शासनकाल भारत के इतिहास का एक अत्यन्त संकटग्रस्त काल था। अट्टाहरवीं शताब्दी की अव्यवस्था में भी उनका राज्य और उनका प्रशासन उनकी देखभाल में समृद्ध हो रहा था।

अहिल्या बाई को उसके श्वसुर (मल्हार राब होल्कर) ने प्रशिक्षित किया था। श्वसुर मल्हार राव अपनी बेटी से भी अधिक उन पर स्नेह रखते थे। जिन्होंने उसे राजस्व इकट्ठा करने, सन्देश तथा विज्ञप्ति लेखन और सेना को सम्भालने का सारा कार्य सिखाया था । आठ वर्ष की छोटी आयु में विवाह के बावजूद उन्हें न केवल राज्य कार्य में प्रशिक्षित किया गया अपितु उन्होंने युद्ध कला में महारथ हासिल की श्री। पानीपत के युद्ध में वह सिंथिया के साथ थी। उनके पति खंडेराव भी उनसे प्रेरणा लेते थे। बीस वर्ष की आयु से भी पहले वह विधवा हो चुकी थी। कुछ समय बाद उन्होंने अपने पुत्र माळेराव को भी खो दिया था। इन कठिनाइयों के बावजूद १७६५ से १७६५ तक होल्कर राज्यों पर साहस और निपुणता से राज करती रहीं। लोकमाता पुण्यश्लोका अहिल्याबाई के विरुद को सार्थक किया।

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