जो पहले से राजनीतिक दुराग्रह और नकारात्मकता पाले हुए थे उन्हें छोड़ दें तो शायद ही कोई भारतीय, भले वह विश्व के किसी कोने में हो, पूरे कार्यक्रम के दौरान अपने अन्दर रोमांच और स्फुलिंग का अनुभव नहीं किया होगा। आजादी के अमृत काल में भारत को स्वनिर्मित संसद भवन मिलना सबके लिए गर्व और उल्लास का विषय होना चाहिए । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका उद्घाटन करते हुए कहा भी कि नए संसद भवन को देखकर हर भारतीय गौरवान्वित है क्योंकि इसमें विरासत और वास्तु कला व कौशल है तो संस्कृति के साथ संविधान के स्वर ही है। किसी राष्ट्र के कालखंड में ऐसे अवसर बार-बार नहीं आते। इसलिए राजनीति सहित समाज जीवन के हर क्षेत्र को आपसी मतभेद भुलाकर एक साथ खड़ा होना चाहिए था। दुर्भाग्य है कि ऐसे मंगल अवसर पर भी विपक्ष के बड़े समूह ने बहिष्कार और अशोभनीय टिप्पणियों की नकारात्मकता प्रदर्शित की है। हालांकि बहिष्कार व विरोध करनेवाले विपक्षी दलों के अन्दर भी ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है जो मान रहे हैं कि यह एक बड़ी चूक है और उन्हें उद्घाटन समारोह में शामिल होना चाहिए था। उद्घाटन समारोह में उपस्थित सांसदों, नेताओं की सूची देखी जाएगी तो उसमें वे नहीं होंगे। आप व्यक्तिगत बात करेंगे तो ऐसी पश्चाताप भरी भावना प्रकट करनेवाले नेता मिल जाएंगे।
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प्रेमकृष्ण खन्ना
स्थानिक विभूतियों की कथा - २५
स्वस्थ विश्व का आधार बना 'मिलेट्स'
मिलेट्स यानी मोटा अनाज। यह हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अन्तरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारम्भ समारोह के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी के इस सन्देश से समझा जा सकता है :
जब प्राणों पर बन आयी
एक नदी के किनारे एक पेड़ था। उस पेड़ पर बन्दर रहा करते थे।
देव और असुर
बहुत पहले की बात है। तब देवता और असुर इस पृथ्वी पर आते-जाते थे।
हर्षित हो गयी वानर सेना
श्री हनुमत कथा-२१
पण्डित चन्द्र शेखर आजाद
क्रान्तिकारियों को एकजुट कर अंग्रेजी शासन की जड़ें हिलानेवाले अद्भुत योद्धा
भारत राष्ट्र के जीवन में नया अध्याय
भारत के त्रिभुजाकार नए संसद भवन का उद्घाटन समारोह हर किसी को अभिभूत करनेवाला था।
समान नागरिक संहिता समय की मांग
विगत दिनों से समान नागरिक संहिता का विषय निरन्तर चर्चा में चल रहा है। यदि इस विषय पर अब भी कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया तो इसके गम्भीर परिणाम आनेवाली सन्तति और देश को भुगतना पड़ सकता है।
शिक्षा और स्वामी विवेकानन्द
\"यदि गरीब लड़का शिक्षा के मन्दिर न आ सके तो शिक्षा को ही उसके पास जाना चाहिए।\"
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
२३ जुलाई, जयन्ती पर विशेष