Aha Zindagi - August 2024Add to Favorites

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रोचक और उपयोगी सूचनापरक सामग्री से भरपूर एक पठनीय और संग्रहणीय अंक। आमुख कथा के लेखों में प्रतिभाशाली फोटोग्राफर्स के गहन अनुभवों का निचोड़ है जो आम पाठकों के बहुत काम आएगा। 'अहा! अतिथि' स्तंभ में तिरंगा और क्रांतिवीर जैसी फिल्मों के निर्माता-निर्देशक मेहुल कुमार सुना रहे हैं मो. इब्राहिम के रूप में शुरू हुई अपनी कहानी। 'ज़िंदगी की किताब' में इस बार है कालजयी व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई का संपूर्ण जीवन और कई अनसुने प्रसंग। इस सबके साथ सेहत, फाइनेंस, लोकप्रिय विज्ञान, इतिहास, संस्कृति, धर्म आदि पर हमेशा की तरह स्तरीय लेख, उम्दा कहानियां, कविताएं और स्थायी स्तंभ।

एक लम्हा, कई सच, अनंत संभावनाएं

अपने ग्रह के समयांतर से हम परिचित हैं। किस समय कहां दिन होगा, ठीक उसी समय कहां रात, संध्या या दोपहर होगी, हम जान सकते हैं। इससे भी सूक्ष्म है पलों का हिसाब, जिसकी समग्र समझ विविधता, निरंतरता और संभावनाओं के सबक़ हैं।

एक लम्हा, कई सच, अनंत संभावनाएं

2 mins

इच्छा जताएं कि अनुशासन बनाएं?

इच्छाशक्ति सीमित है, इस्तेमाल करने पर कम हो जाती है। आत्म-अनुशासन एक आदत है, व्यवस्था है- एक बार बन जाए, फिर प्रयास करने की आवश्यकता नहीं रह जाती। फ़ैसला आपका है!

इच्छा जताएं कि अनुशासन बनाएं?

3 mins

सिनेमा में क्रांति लाने वाले वीर

क़लम-कहानी की लाग ने उन्हें रंगमंच से सिने जगत और वहां से आमजन के दिलों तक पहुंचा दिया। तिरंगा और क्रांतिवीर जैसी फिल्में बनाने वाले मेहुल को अपने दौर के सिनेमा का ट्रैक बदलने के साथ ही राजकुमार, नाना पाटेकर और अमिताभ बच्चन जैसी क़द्दावर हस्तियों के कॅरियर में अहम मोड़ लाने का श्रेय भी जाता है। एक लेखक, रंगमंच हस्ती और फिल्म निर्देशक के रूप में आधी सदी तक दर्शकों की नब्ज पकड़े रखने वाले मेहुल कुमार हैं इस बार हमारे अहा ! अतिथि। मेहुल बयां कर रहे हैं अपना सफ़रनामा, जिसमें परदे के पीछे के कई रोचक क़िस्से भी चले आए हैं।

सिनेमा में क्रांति लाने वाले वीर

10+ mins

एक क्लिक का कमाल

कैमरा हाथ में आते ही व्यक्ति विशिष्ट हो जाता है। दुनिया को देखने की उसकी दृष्टि बदल जाती है। वह व्यापक फलक पर नज़र डालता है और बहुत बारीकी से भी। तब सौंदर्य की परिभाषा ही परिवर्तित हो जाती है, क्योंकि छायाकार के लिए संसार में कुछ भी असुंदर नहीं होता। वह प्रकृति के हर अंश में ख़ूबसूरती खोज लेता है, या यूं कहें कि कैमरे की बदौलत हर शै को आकर्षक बनाने की कुव्वत रखता है। कैमरे के क्लिक के ज़रिए किसी पल को क़ैद कर लेना कला ही तो है ! 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस के मौक़े पर हमारी आमुख कथा इस कला के विभिन्न पहलुओं को समझने और इसका वास्तविक आनंद उठाने के लिए आमंत्रित कर रही है।

एक क्लिक का कमाल

4 mins

जंगल में रोमांच की राहें

इंसानों को विभिन्न मुद्राएं बनाने के लिए कहा जा सकता है, दृश्यों की तस्वीरें अलग-अलग कोणों से ली जा सकती हैं, किंतु जंगली पशु-पक्षियों के छायाचित्रण के लिए धैर्य रखने और सटीक क्षण का इंतज़ार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं हो सकता। इसके साथ ही रखनी पड़ती है सावधानी और सतर्कता, क्योंकि एक छोटा-सा पक्षी भी गहरी चोट पहुंचा सकता है। वन्यजीवन फोटोग्राफी के रोमांचक संसार में आपका स्वागत है!

जंगल में रोमांच की राहें

6 mins

हर हाथ कैमरा तो है...

परंतु फोटोग्राफी का शऊर कहां है! खटाखट आड़ी-तिरछी आठ-दस तस्वीरें लेकर उनमें से एकाध पर ढेर फिल्टर लगा देना न तो कला है न ही साधना | विचार कीजिए...

हर हाथ कैमरा तो है...

4 mins

कैमरे की ऊंची उड़ान

कैमरा दुनिया को उस नज़रिये से दिखा सकता है जो इंसानी आंखों के बस की बात नहीं। ड्रोन फोटोग्राफी इसका जीवंत उदाहरण है।

कैमरे की ऊंची उड़ान

4 mins

समस्या में ही है समाधान

समस्या से हम भागते हैं या उसका समाधान खोजने में जुट जाते हैं। दोनों ही रास्ते ग़लत हैं। पहले तो समस्या को समझना होगा, यह देखना होगा कि वह समस्या है भी या नहीं। फिर समाधान भी उसी के अंदर मिल जाएगा।

समस्या में ही है समाधान

4 mins

कप के साथ सबक़

अनिश्चितताओं का खेल कहे जाने वाले क्रिकेट के फटाफट फॉर्मेट टी20 में मैच के दौरान इतने उतार-चढ़ाव होते हैं, जितने पूरे जीवन में भी न आते हों। इस रोमांचक मनोरंजन के बीच थोड़ा ठहरकर ग़ौर करें तो वहां हर लम्हे से उपयोगी सबक़ लिए जा सकते हैं। इस बार के टी20 विश्वकप में हमें ख़िताब के साथ मिली हैं ऐसी ही कुछ अहम सीखें ....

कप के साथ सबक़

7 mins

जय कन्हैया लाल की

द्वापर के अवतार की, कलजुग के कालजयी किरदार की। अधरों पर मंद मुस्कान धरे- प्रेम, ज्ञान, मैत्री, भक्ति और मुक्ति के धुरीधार की। भारतीय दर्शन की आत्मा, भादव-भाग्य में आलोकित नीलाभ की। पावन कथा पर्व प्रसंग में, इस बार जन-जन के नाथ की, तो बोलिए हाथी, घोड़ा, पालकी...

जय कन्हैया लाल की

7 mins

आज़ादी की अगस्त पीठिका

वह साल बयालीस था । अगस्त का भीगता मौसम भारतीयों के मन में प्रज्वलित स्वतंत्रता की अग्नि को ठंडी करने के स्थान पर और भी प्रचंड कर रहा था। इसी के फलस्वरूप जन्मी एक क्रांति जो हमारी बहुप्रतीक्षित आज़ादी की नींव बनी। अगस्त के उसी आगाज़ का रोचक वृत्तांत पूर्वपीठिका और परिणति के साथ।

आज़ादी की अगस्त पीठिका

8 mins

शांत घाटी में शीत की छटा

कश्मीर में गुलमर्ग, पहलगाम जैसे सुपरिचित स्थलों के उलट, आम सैलानियों की नज़रों से दूर एक संवेदनशील घाटी है गुरेज़। कभी आतंकियों की घुसपैठ से सिसकती थी, लेकिन आज अपनी शांत शीत आभा लिए पर्यटकों का स्वागत कर रही है। इस बार की हमारी यायावरी में है नीलम नदी के तट पर सफ़ेद चादर ओढ़े गुरेज़ वैली की ख़ूबसूरती और प्रकृति के साथ ताल मिलाती इसकी संस्कृति की बानगी।

शांत घाटी में शीत की छटा

6 mins

जब लबालब थे तालाब

...तब जीवन भी ख़ुशियों से लबालब हुआ करता था। पानी की तरह था समाज- साथ खेलने वाला, मिलजुलकर पर्व-उत्सव मनाने वाला और जुटकर काम करने वाला। तालाब सूखे तो शायद समाज का पानी भी सूख गया। अब तो सावन भी सूखे तालाबों को जिला नहीं पाता।

जब लबालब थे तालाब

6 mins

जंगल में मोर नाचा

मेह के मेघ आसमान में गहराए नहीं कि केहूं-केहूं का स्वर उच्चारता मोर, इंद्र की हज़ार आंखें अपने पंखों में सजाए, रिमझिम की अगवानी में थिरकने लगता है। मयूर नृत्य की ऋतु में उसके अद्वितीय सौंदर्य और मनमोहक नर्तन का साक्षात कीजिए इन शब्दों में....

जंगल में मोर नाचा

4 mins

नाम में क्या रखा है!

पश्चिम ने नाम को नगण्य माना, परंतु पूर्व ने नाम को शिरोधार्य रखने की वस्तु बनाया। नामकरण को उत्सव बनाया और नाम को सोच-विचारकर शृंगार की तरह धरा। नाम की बड़ी महिमा है। नाम लोक प्रदत्त प्रथम निधि है, यह कुल का वह प्रतीक है जिसका संग मृत्युशय्या तक होता है। अच्छा नाम देहदहन के पश्चात भी लोक में रह जाता है और बुरा नाम शरीर से पहले ही मिट जाता है।

नाम में क्या रखा है!

4 mins

दिल की बात दांत-आंत के साथ

जन्म के पहले जो धड़कने लगता है और जीवनपर्यंत चलता ही रहता है, जिसका सुचारु रूप से काम करना शरीर के हर अंग के लिए अनिवार्य होता है-

दिल की बात दांत-आंत के साथ

7 mins

क़र्ज़ दो और घी पियो

डेट फंड में निवेश किया गया आपका धन सरकार या कंपनियों को ऋण के रूप में दिया जाता है। यह क़र्ज़ किसे दिया जाता है, उससे तय होता है कि आपको अपने निवेश पर कितना रिटर्न मिलेगा और आपका पैसा कितना सुरक्षित रहेगा। इनमें समझदारी से लगाया गया पैसा अन्य सुनिश्चित लाभ योजनाओं के मुक़ाबले अधिक कमाऊ हो सकता है।

क़र्ज़ दो और घी पियो

5 mins

ऐसी भी क्या जल्दी है

सड़क पर कोई गाड़ी आंधी की रफ़्तार से बग़ल से गुजरे तो सहसा मुंह से यही निकलता है कि भई ... जो दूसरों की जान जोखिम में डाल दे? इसलिए, थोड़ा ठहरिए और जानिए कि जल्दबाज़ी इस युग में क्यों बन गई है बीमारी।

ऐसी भी क्या जल्दी है

7 mins

वेदों में वृक्ष

निरंतर बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण का समाधान हमारी वैदिक ऋचाओं में समाया है। हमारी प्राच्य विद्याओं में फैली असंख्य रचनाओं में सर्वत्र प्रकृति-प्रेम और पर्यावरण चेतना का तुमुलनाद है। इसे आत्मसात करके ही हम एक सुखद भविष्य की ओर बढ़ सकते हैं।

वेदों में वृक्ष

7 mins

विशिष्ट है यह किरण

विज्ञान की एक अनोखी खोज जो कैंसर के जन्म का कारण भी बनी और कैंसर निवारक भी। कभी जादू कहलाकर इंसान के भीतर झांकने वाली ऊर्जा विकिरण की यह तकनीक कैसे प्राणघातक होते हुए भी जीवनदायिनी बनी, जानिए इस बार आगामी अतीत में।

विशिष्ट है यह किरण

6 mins

अंधेरे समय में टॉर्च दिखाने वाले

जन्म के सौ साल बाद तथा मृत्यु के लगभग तीस साल बाद भी हरिशंकर परसाई की रचनाएं उसी प्रकार पढ़ी जा रही हैं, जिस प्रकार आज से तीस, चालीस, पचास साल पहले पढ़ी जा रही थीं। सोशल मीडिया पर तैर रहे उनके व्यंग्य-अंशों के साथ लगा हुआ नाम हटा दिया जाए तो कोई विश्वास नहीं करेगा कि वे चालीस-पचास साल पहले लिखे गए हैं, आज के नहीं हैं। दूसरे बड़े और महान लेखकों के मामले उनके नाम काल को जीता है, वहीं हरिशंकर परसाई के मामले में उनकी रचनाओं ने काल को जीता है। परसाई की ही रचना 'टॉर्च बेचने वाले' के शीर्षक को कुछ बदलकर कहें तो वे बेचने वाले नहीं, अंधेरे समय में टॉर्च दिखाने वाले हैं। कालजयी हरिशंकर परसाई और उनकी क़लम का सफ़र इस बार ज़िंदगी की किताब मेंविशेष अवसर है इस महीने की 22 तारीख़ को परसाई जयंती का....

अंधेरे समय में टॉर्च दिखाने वाले

10+ mins

सबै भूमि गोपाल की

गोपालगंज! प्राचीन गोपाल मंदिर की भूमि | अपनी अलहदा पहचान के साथ आबाद है यह शहर | इसके मनोहारी रूप में एक ओर तीखे तेवर का चटकारा है तो दूजी ओर हर एक के प्रति अपनेपन का लिहाज़ भी । मिठास इतनी कि कचहरी तक में परस्पर विरोधी पक्ष साथ आते और मिलकर खाते हैं। ऐसे निराले शहर की गाथा इस बार शहरनामा में ...

सबै भूमि गोपाल की

7 mins

खेत में ख़ुशहाली की फ़सल

प्राकृतिक खेती में पारंगत कानसिंह निर्वाण को सिर्फ़ साक्षर होते हुए भी समझ आ गया कि प्राकृतिक खेती, मूल्य संवर्धन और खुद कृषि विपणन करने के साथ कृषि पर्यटन को अपनाना ग्रामीण खुशहाली की बेहतरीन पगडंडी है। उनकी कहानी, उनकी जुबानी...

खेत में ख़ुशहाली की फ़सल

3 mins

अपने दुश्मनों से दो-दो हाथ कीजिए

समय निकालिए ताकि आप कुछ ऐसा कर सकें, जिससे आप अपने जीवन में लय और आनंद को वापस हासिल कर सकें। ऊब और थकान आपके दो दुश्मन हैं। इनसे दो-दो हाथ कीजिए क्योंकि ये आपका वक़्त क़त्ल कर रहे हैं।

अपने दुश्मनों से दो-दो हाथ कीजिए

4 mins

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