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विषाणु: उधार की ज़िन्दगी या फिर जैव-विकास के अनोखे खिलाड़ी
इस लेख के शीर्षक को पढ़कर यह ख्याल आना लाज़मी है कि भला उधार की ज़िन्दगी भी कोई जी सकता है! जी हाँ, यह सच ही है, विषाणु या वायरस दरअसल, उधार पर ही ज़िन्दगी जी रहे हैं लेकिन इस एक वाक्य से विषाणुओं को पूरी तरह से नज़रन्दाज़ नहीं कर सकते, न ही उन्हें हल्के में लिया जा सकता है। यहाँ इनसे अलग जैविक वायरस या विषाणुओं की बात करेंगे (कम्प्यूटर वायरस पर लेख संदर्भ अंक-83 में पढ़ा जा सकता है।
पेड़-पौधे कैंसर से क्यों नहीं मरते?
चेर्नोबिल विभीषिका का पर्याय बन गया है। हाल ही में चेर्नोबिल दुर्घटना को इसी नाम के एक अत्यन्त लोकप्रिय टीवी शो ने वापिस लोगों के सामने ला खड़ा किया।
प्रकाश की गति
सन् 2015 अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाश वर्ष के रूप में मनाया जा रहा था। प्रकाश के गुण, प्रकाश सम्बन्धी परिघटनाओं और प्रकाश के अनुप्रयोग पर चर्चा के लिए जगह-जगह गोष्ठी, सम्मेलन, वक्तव्य, कार्यशाला आदि आयोजित हो रहे थे, तो मन में प्रकाश के बारे में और पढ़ने की जिज्ञासा हुई। इसी क्रम में पढ़ते-पढ़ते कुछ लिखने का भी मन हुआ तो प्रकाश द्वारा एक सेकण्ड में तय की जाने वाली 30,00,00,000 मीटर की यात्रा पर जाने का विचार जागा। प्रस्तुत लेख में उसी यात्रा के कुछ अंश का ज़िक्र कर रही हूँ।
बच्चों और बड़ों की किताब 'पूड़ियों की गठरी'
हिन्दी बाल साहित्य में अच्छी रचनाएँ कम ही मिल पाती हैं। उसमें भी ऐसी रचनाएँ और कम होंगी जिनमें बच्चों के रोज़मर्रा के जीवन का स्पन्दन हो। इस बात को ध्यान में रखते हुए नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित पुस्तक पूड़ियों की गठरी एक ताज़ी हवा के झोंके के समान है।
पुस्तकालय में डिस्प्ले का महत्व
हमारा पुस्तकालय गौरा गाँव में एक छोटे-से कमरे में संचालित होता है। यह ढेर सारी किताबों और डिज़ाइनर सूचना पटलों से लैस तो नहीं है, पर हमारी कोशिश होती है कि हम एक पुस्तकालय के लिए ज़रूरी सभी सामग्री इस छोटे-से पुस्तकालय में ला पाएँ।
मधुमक्खी का दिशा ज्ञान
हम इधर-उधर घूमते हैं, अनजानी जगहों पर अपनी स्थिति-दिशा जान लेते हैं और फिर तुरन्त ही अपने घर या स्कूल का रास्ता पहचान लेते हैं। और यह सब करते हुए हमें उस प्रक्रिया का तनिक भी भान नहीं होता जिसकी वजह से हम यह सब कर पाते हैं | हमारे जैसे जटिल शहरों में दिशा ढूँढ़ने का हुनर कोई आसान नहीं, हमें दूरी और दिशा का ज्ञान होना चाहिए।
क्या भारी वस्तुएँ हल्की वस्तुओं की तुलना में तेज़ी-से गिरती हैं?
हमारे दैनिक अनुभव से हम देखते हैं कि भारी वस्तुएँ हल्की वस्तुओं की तुलना में तेज़ी-से गिरती हैं। एक नोटबुक और उसी नोटबुक से लिए गए एक पेपर के टुकड़े को एक ही ऊँचाई से गिराते हैं तो नोटबुक बहुत तेज़ी-से गिरती है। लम्बे समय तक यह माना जाता था कि गिरने वाली वस्तु की गति उसके द्रव्यमान पर निर्भर करती है।
नई शिक्षा नीति और स्कूलों की बोर्ड परीक्षाएँ
नई शिक्षा नीति के प्रारूप (ड्राफ्ट नेशनल एजुकेशन पॉलिसी - डीएनईपी) का एक महत्वपूर्ण सुझाव है कि स्कूल से निकलने वाले बच्चों की बोर्ड परीक्षा के पैटर्न में बदलाव किया जाए।
बैंकिंग प्रणाली के लिए भरोसा और नियमन
कुछ ही दिन पहले लोगों में यस बैंक से पैसे निकालने को लेकर भगदड़ मच गई थी। यह तब हुआ था जब रिज़र्व बैंक ने घोषित कर दिया था कि यह बैंक संकट में है और इसका अधिग्रहण कर लिया जाएगा। लोग पैसा निकालने को दौड़ पड़े और इसे ही 'बैंक पर टूट पड़ना' कहा जाता है।
मातृभाषा आधारित बहुभाषी शिक्षा क्यों लाज़मी?
एक से चार अप्रैल 2013 के बीच मुझे आधिकारिक रूप से छत्तीसगढ़ एस.सी.ई.आर.टी. टीम के साथ बस्तर जाने का अवसर मिला था। बस्तर जाने का यह मेरा पहला मौका था।
जीवजगत में लिंग निर्धारण: क्या जानते हैं हम?
मनुष्यों सहित अधिकांश बहु- कोशिकीय जीवों में जीवन की निरन्तरता बनाए रखने में लैंगिक प्रजनन एक महत्वपूर्ण गुण है। पीढ़ियों की उत्तरजीविता में प्रजनन दरअसल पहला कदम होता है।
सवालीराम
सवालः हमें गुदगुदी क्यों होती है?
भारतीय भाषाएँ व संविधान
जब हिन्दी व अंग्रेज़ी का फैसला हो गया था तो फिर आठवीं सूची बनाने की क्या आवश्यकता थी? दो प्रश्न संविधान सभा की बहसों में निरन्तर टाले गए । एक भाषा का और दूसरा संसद का सदस्य होने के लिए आवश्यक योग्यता का । दोनों आज तक हमारे गले में लटके हैं ।
धर्म और विज्ञान का बन्दर मुकदमा
अकसर हम एक ही तरह के मुद्दों से बार-बार लगातार जूझते रहते हैं । कभी लोग बदल जाते हैं तो कभी स्थान, कभी काल । मसलन, जो किस्सा मैं कहने जा रहा हूँ, वह 1925 के अमरीका का है । स्थान है एक छोटा कस्बा डेटन, टेनेसी प्रान्त | कस्बा भी क्या, इसे गाँव कहना ही बेहतर होगा कुल आबादी 1800 होगी ।
डियर लाइफ
जब मैं छोटी थी, एक लम्बी सड़क के आखिरी सिरे पर रहती थी, या ऐसा कहूँ कि उस सड़क पर रहती थी जो मुझे बेहद लम्बी लगती थी ।
किताब उपलब्ध करा देने से पढ़ना सुनिश्चित नहीं होता
किताब उपलब्ध करा देने से पढ़ना सुनिश्चित नहीं होता
अनुभवों के खोये से बनती हैं अवधारणाओं की मिठाइयाँ
हाल में ही मेरा बेटा जसकरन (जस) पाँच साल का हुआ है, डेढ़ साल का होते-होते वह पूरे वाक्य अच्छी तरह से बोलने लगा और अपनी बातें भी हमें समझाने लगा।