अतुल और आभा भाई बहन थे. वे राजस्थान के एक शहर में रहते थे तथा एक ही स्कूल में पढ़ते थे. अतुल 9वीं कक्षा में था और आभा छठी में पढ़ती थी.
स्कूल में गर्मियों की छुट्टियां होने वाली थी. उनकी टीचर ने बताया, "बच्चो, 18 मई को इंटरनैशनल म्यूजियम डे है. इस अवसर पर तुम स्कूल की तरफ से शहर का म्यूजियम देखने जा सकते हो. तब तक स्कूल की छुट्टियां हो चुकी होंगी, जो भी बच्चे म्यूजियम देखने जाना चाहते हैं, उन्हें अपना नाम लिखवाना होगा और 18 मई को सुबह साढ़े 9 बजे तक स्कूल पहुंचना होगा.”
"हम म्यूजियम में क्या देखेंगे?" आभा ने पूछा.
"म्यूजियम में हम राजामहाराजाओं द्वारा इस्तेमाल की गई वस्तुओं, उन के कपड़ों, हथियारों और आभूषणों को देखेंगे."
आभा और अतुल ने म्यूजियम देखने जाने के लिए अपना नाम लिखवा लिया.
18 मई को वे समय से स्कूल पहुंचे और दोनों स्कूल
बस से म्यूजियम के लिए रवाना हो गए.
संग्रहालय में घूमते हुए उन्होंने कई दिलचस्प वस्तुएं देखीं.
एक हौल में राजारानी के शाही कपड़े देख कर आभा हैरान रह गई, उस ने कहा, "ये कितने बड़े व भारी कपड़े हैं, इन्हें पहन कर वे कैसे चलते होंगे?”
“वह औरेंज लहंगा इसी रंग का है, जैसी मेरी फ्रौक है. मैं ने इसे अपने बर्थडे पर पहना था,” आभा ने अपनी सहेली मीतू को बताया.
"और उस पर जो मोर बने हैं, उस पर कितने शीशे व मोती लगे हैं,” मीतू बोली.
उन के सामने एक दीवार पर कुछ तसवीरें टंगी थीं, जिन में सुंदर सजेधजे हाथी आमनेसामने खड़े थे.
"ऐसा लगता है जैसे सामने ही युद्ध हो रहा हो. सैनिकों के अस्त्रशस्त्र भी कितने अलग हैं," अतुल अपने दोस्त से बोला.
उन्होंने भाले, तलवार व ढाल जैसे विभिन्न प्रकार के हथियार भी देखे.
संग्रहालय में प्रदर्शित आभूषणों और मुकुटों की कर बच्चे बहुत हैरान हो गए. उन्होंने ऐसी वस्तुएं पहले कभी नहीं देखी थीं.
कुछ दिन बाद आभा और अतुल को अपनी बू आ साथ म्यूजियम देखने का एक और मौका मिल गया. दोनों सारे रास्ते जानते थे. अतः सब को बताते हुए वे आगे चल रहे थे.
आभा ने जब रानी के लंहगे को देखा, तो वह चौंक गई, "उस दिन तो इस का रंग मेरी फ्रौक जैसा दिखा था. आज हलका क्यों लग रहा है."
Bu hikaye Champak - Hindi dergisinin May Second 2023 sayısından alınmıştır.
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