विनायक शेखी बघारते बोला, "इस बार पापा ने मुझे होली पर ऐसी पिचकारी देने का वादा किया है, जिस के साथ पानी की टंकी भी है ताकि लगातार दूर तक फेंका जा सके."
सिया ने कहा, “मैं इस बार सूखे रंगों से होली खेलूंगी. पिछली बार पानी में भीग कर मुझे बुखार आ गया था. मैं इस बार किसी पर पानी नहीं डालूंगी.”
"मुझे होली के दिन पानी में भीग कर और खूब रंग लगा कर ही मजा आता है. सूखे रंगों से लगता ही नहीं कि होली खेली है," पारस ने कहा.
"तुम बताओ रूही, होली पर तुम्हारा क्या प्लान है? तुम ने पिछले साल दीवाली नहीं मनाई थी, " विनायक ने पूछा.
"तुम जानते हो, दीवाली से एक हफ्ते पहले मेरी दादी का निधन हो गया था," रूही ने दुखी हो कर कहा.
"क्या इस बार होली नहीं मनाओगी?” पारस ने पूछा.
"यह तो दादाजी पर निर्भर करता है कि वह क्या चाहते हैं?" रूही ने जवाब दिया.
विनायक ने बताया, “हमारे घर में बुजुर्गों के निधन के बाद दो हफ्ते तक कोई शुभ कार्य नहीं होते. उस के बाद सब पहले की तरह त्योहार मनाते हैं. मेरे दादाजी कहते हैं कि साल भर खुशियां अवश्य मनानी चाहिए. जाने वाले व्यक्ति को अपने पीछे परिवार को खुश देख कर शांति मिलती है."
"तुम अपनी बड़ी बड़ी बातें रहने दो विनायक. जब देखो, तब ज्ञान बघारने लगते हो,” पारस बोला.
"मुझे सब से अच्छा होली का त्योहार लगता है. मुझे बहुत अच्छा लगा जब पिछली बार रंग से पुते चेहरे पहचान में ही नहीं आ रहे थे. सब एक जैसे दिखाई देते हैं, " रूही बोली.
Bu hikaye Champak - Hindi dergisinin March Second 2024 sayısından alınmıştır.
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