भीम का संकल्प
Champak - Hindi|April First 2024
वर्ष 1901 की बात है. उस समय भारत में अंग्रेजों का राज था. महाराष्ट्र के सतारा में एक 9 वर्ष का बालक भीम अपने बड़े भाई, भतीजे और दादी के साथ रहता था. उस के पिता कोरेगांव में खजांची की नौकरी करते थे.
कुसुम अग्रवाल
भीम का संकल्प

पिता के लिए बारबार सतारा आ कर बच्चों से मिलना संभव नहीं था. अतः उन्होंने अपने बच्चों को पत्र द्वारा संदेश भिजवाया कि वे इन छुट्टियों में उन से मिलने कोरेगांव आ जाएं.

पिता का संदेश पा कर नन्हा बालक भीम बहुत खुश हुआ. खुश होने के दो कारण थे. सब से पहले जब से उसकी मां का निधन हुआ था तब से सतारा में जीवन उन के लिए चुनौतीपूर्ण हो गया था. उस समय वह 5 वर्ष का था. घर को संभालने वाला कोई नहीं था. ऐसे में उन की बुआ पर उन की देखभाल की जिम्मेदारी आई, परंतु वह भी अपने कमजोर शरीर के कारण घरेलू कामकाज करने में असमर्थ थीं. इसलिए बच्चों को अकसर खाना स्वयं ही पकाना पड़ता था. परंतु वे केवल चावल पकाना जानते थे इसलिए अधिकतर वही खा कर गुजारा होता था.

दूसरा, भीम अपने साथ स्कूल में होने वाले भेदभाव से दुखी था. भीम का परिवार हिंदू महार जाति से संबंध रखता था, जो उन दिनों अछूत समझा जाता था. उन के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से भेदभाव किया जाता था. भीम के पिता ने सेना में अपनी हैसियत का इस्तेमाल कर अपने होनहार बच्चे का सरकारी स्कूल में दाखिला तो करवा दिया मगर महार जाति का होने के कारण उसे कक्षा के अन्य बच्चों के साथ बैठ कर शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति नहीं थी. उसे अन्य अस्पृश्य बच्चों के साथ विद्यालय में बाहर बिठाया जाता था. ब्राह्मण अध्यापकों द्वारा न तो उन का ध्यान रखा जाता था और न ही उन्हें कोई सहायता दी जाती थी. फलस्वरूप भीम कक्षा के बाहर अपना बोरा बिछा कर ही बैठता था और वहीं से सब याद करता था.

प्यास लगने पर उसे स्कूल के प्याऊ से पानी पीने का भी अधिकार नहीं था. वह चपरासी द्वारा अपने हाथों पर गिराया पानी ही पी सकता था. यदि किसी कारणवश चपरासी छुट्टी पर रहता तो भीम को दिनभर प्यासा ही रहना पड़ता था.

कक्षा के बच्चे न तो उस के साथ खेलते थे और न ही उसे अपनी किसी चीज को हाथ लगाने देते थे. ऐसे में भी अकेला ही रहता था. यह सब उसे अच्छा नहीं लगता था.

"भैया, हम लोग पिताजी के पास कब जाएंगे," भीम ने उतावला हो कर अपने भाई से पूछा.

"जल्दी ही चलेंगे. पहले थोड़ी तैयारी तो हो जाए." भैया ने भीम को समझाते हुए कहा.

Bu hikaye Champak - Hindi dergisinin April First 2024 sayısından alınmıştır.

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रिटर्न गिफ्ट
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\"डिंगो, बहुत दिन से हम ने कोई अच्छी पार्टी नहीं की है. कुछ करो दोस्त,\" गोल्डी लकड़बग्घा बोला.

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चांद पर जाना
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चांद पर जाना

होशियारपुर के जंगल में डब्बू नाम का एक शरारती भालू रहता था. वह कभीकभी शहर आता था, जहां वह चाय की दुकान पर टीवी पर समाचार या रेस्तरां में देशदुनिया के बारे में बातचीत सुनता था. इस तरह वह अधिक जान कर और होशियार हो गया. वह स्वादिष्ठ भोजन का स्वाद भी लेता था, क्योंकि बच्चे उसे देख कर खुश होते थे और अपनी थाली से उसे खाना देते थे. डब्बू उन के बीच बैठता और उन के मासूम, क 'चतुर विचारों को अपना लेता.

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चाय और छिपकली
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पार्थ के पापा को चाय बहुत पसंद थी और वे दिन भर कई कप चाय पीने का मजा लेते थे. पार्थ की मां चाय नहीं पीती थीं. जब भी उस के पापा चाय पीते थे, उन के चेहरे पर अलग खुशी दिखाई देती थी.

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शेरा ने बुरी आदत छोड़ी
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शेरा ने बुरी आदत छोड़ी

दिसंबर का महीना था और चंदनवन में ठंड का मौसम था. प्रधानमंत्री शेरा ने देखा कि उन की आलीशान मखमली रजाई गीले तहखाने में रखे जाने के कारण उस पर फफूंद जम गई है. उन्होंने अपने सहायक बेनी भालू को बुलाया और कहा, \"इस रजाई को धूप में डाल दो. उस के बाद, तुम में उसके इसे अपने पास रख सकते हो. मैं ने जंबू जिराफ को अपने लिए एक नई रजाई डिजाइन करने के लिए बुलाया है. उस की रजाइयों की बहुत डिमांड है.\"

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