बिहार
मशहूर हिंदी कवयित्री अनामिका की ये पंक्तियां हैं, जिन्हें 2020 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है. दुर्भाग्य से, उनकी ये पंक्तियां आज उनके ही शहर बिहार के मुजफ्फरपुर पर सटीक बैठ रही हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (एनएफएचएस-5) की रिपोर्ट के मुताबिक मुजफ्फरपुर जिले में पिछले पांच साल में एक हजार बालकों के मुकाबले 685 बालिकाओं ने ही जन्म लिया है. नवजात शिशुओं के लिंगानुपात के मामले में यह संभवत: देश का सबसे पिछड़ा जिला है.
इस मामले में काफी बदनाम रहे हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और आंध्र प्रदेश-तेलंगाना जैसे राज्यों के किसी जिले में इतना बुरा लिंगानुपात नहीं है. नवजात शिशुओं के लिंगानुपात के मामले में देश में एक हजार के मुकाबले 700 से कम बेटियों वाले सिर्फ तीन जिले हैं, मुजफ्फरपुर (685), किन्नौर (691) और वारंगल (ग्रामीण) (698).
अनामिका कहती हैं, "सहज भरोसा नहीं होता, क्योंकि यह इलाका हमेशा से स्त्रियों को सम्मानित जीवन जीने का अवसर देता रहा है. यह जो पुराना तिरहुत का इलाका है, यह सीता का मायका तो है ही, मंडन मिश्र की विद्वान पत्नी भारती और वाचस्पति मिश्र की पत्नी भामती का भी इलाका है. यह बुद्धकालीन थेरियों का इलाका रहा है. इस इलाके में छठ पूजा के मौके पर महिलाएं बेटे ही नहीं, बेटियों के लिए भी प्रार्थना करती रही हैं. वे गीत गाती हैं, रुनकी- झुनकी बेटी दिहो... उस इलाके में बेटियां इतनी कम पैदा हो रही हैं, यह काफी दुखद और चौंकाने वाली बात है."
बिहार राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य रह चुके मुजफ्फरपुर शहर के ही चिकित्सक निशिंद्र किंजिल्क कहते हैं, "सहसा विश्वास नहीं होता कि ये सही हैं, मगर ये प्रामणिक आंकड़े गंभीर संकेत दे रहे है. इसका मतलब है कि मुजफ्फरपुर में बड़े पैमाने पर अवैध लिंग परीक्षण और भ्रूण हत्या का कारोबार फल-फूल रहा है."
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin October 26, 2022 sayısından alınmıştır.
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