सभी ने इस हकीकत की तरफ ध्यान दिलाया कि अर्थव्यवस्था बाहरी झटकों के साथ-साथ, ऊंची मुद्रास्फीति और बढ़ती ब्याज दरों के प्रति संवेदनशील बनी हुई है और इससे घरेलू मोर्चे पर मांग में और नरमी आएगी. अब जब 1 फरवरी को केंद्र का सालाना बजट पेश करने की तारीख नजदीक आ रही है, बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर सरकारी खर्च बढ़ाते हुए बेहतर रोजगार सृजन के जरिए मांग को बढ़ावा देने की तत्काल जरूरत है.
मसलन, गोल्डमैन सैक्स ग्रुप इंक भारत की आर्थिक वृद्धि को अगले साल धीमी पड़ते देख रहा है. इसके पीछे उसने उधारी की ऊंची लागत और महामारी के बाद अर्थव्यवस्था के खुलने से हुए फायदों के कम होने का असर उपभोक्ता मांग पर पड़ने का हवाला दिया है. वृद्धि का पूर्वानुमान घटाते हुए एक रिपोर्ट में उसने कहा कि 2023 के कैलेंडर साल में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अब केवल 5.9 फीसद बढ़ने की उम्मीद है, जबकि उसने पहले 6.9 फीसद वृद्धि का अनुमान जाहिर किया था. इस बीच रेटिंग फर्म क्रिसिल ने भी 2022-23 के लिए जीडीपी वृद्धि का अनुमान 7.3 फीसद से घटाकर 7 फीसद कर दिया. क्रिसिल ने 2024 के वित्तीय साल में भी भारत की जीडीपी वृद्धि पहले के अनुमान 6.5 फीसद से धीमी पड़कर 6 फीसद पर आने की आशंका जाहिर की है, खासकर तब जब वैश्विक वृद्धि अगले वित्तीय साल और भी तेजी से गिरने के आसार हैं. इसके अलावा, उसने कहा कि घरेलू मांग पर भी दबाव आ सकता है, क्योंकि ब्याज दरों में बढ़ोतरी का ज्यादा बोझ उपभोक्ता पर आ जाएगा और रिटेल तथा हॉस्पिटैलिटी सरीखी अनुबंध-आधारित सेवाओं की बहाली के फायदे फीके पड़ते जाएंगे. नवबंर में मूडीज ने 2022 के लिए भारत की जीडीपी वृद्धि का अपना अनुमान पहले के 7.7 फीसद से घटाकर 7 फीसद कर दिया. आरबीआइ ने भी 2022-23 के लिए जीडीपी की वृद्धि दर के अपने अनुमान को के संशोधित करते हुए इसे 7.2 फीसद से घटाकर 7 फीसद कर दिया. इस बीच मौजूदा वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था के महज 6.5 फीसद की दर से बढ़ने के संकेत हैं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin December 14, 2022 sayısından alınmıştır.
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