अशोक कुमार
अशोक कुमार 1947 से बरसों पहले स्टार बल्कि हिंदी सिनेमा के पहले पुरुष स्टार बन चुके थे. वे नायक के रूप में बंदिनी (1963) जैसी फिल्मों में दिखे या प्रदीप कुमार मीना कुमारी के साथ एक तिकड़ी को लेकर बनी चंद फिल्मों में उन्होंने अहम मौजूदगी दर्ज कराई. लेकिन दादा मुनि ने दशकों तक चरित्र अभिनेता के रूप में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी, इस बीच कभी-कभार ज्वेल थीफ (1967) या आशीर्वाद (1968) जैसी कुछेक फिल्मों में जरूर केंद्रीय भूमिका के आसपास दिखे. बाद में हमारे सर्वाधिक प्रिय पितामह सरीखी सर्वश्रेष्ठ शख्सियतों में से एक बन गए. हालांकि इनमें से कोई भी किरदार अछूत कन्या (1936) के 25 वर्षीय नायक, किस्मत (1943) के चालाक हिप्पी और कई अन्य ब्लैक एंड व्हाइट क्लासिक्स युवा अशोक कुमार को भुला नहीं पाता.
बलराज साहनी
उनका किसान से रिक्शा वाला बनकर बड़े शहर में भटकना (दो बीघा ज़मीन, 1953) और इस दौरान भारी मुश्किलों में भी अनंत धैर्य वाले भाव फिल्म अभिनय की कसौटी बन गए. धरती के लाल (1946) से लेकर गरम हवा (1973) में घर के मुखिया के रूप में अपने अंतिम जोरदार अभिनय तक उन्होंने एक ही समय में रौबदार और कमजोर चरित्रों को बहुत ही सहजता के साथ जिया. उन्होंने मेथड ऐक्टर के तौर पर अपने संवाद और सहजता से किरदार को जिंदा कर दिया. इस बीच कई भूमिकाएं, जिनमें वे हीरो नहीं थे फिर भी उन्होंने अपने किरदार को खासी गहराई दी, और कभी-कभार चंचल भी बना दिया, जैसा वक्त (1965) के शुरुआती दृश्यों में दिखता है.
अमिताभ बच्चन
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin January 04, 2023 sayısından alınmıştır.
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