उत्तर-मध्य मध्य प्रदेश में राजस्थान सीमा से सटे जिले राजगढ़ में तापमान 40 डिग्री पर है. नरसिंहगढ़ उपमंडल के सोनकच्छ गांव में रंग-बिरंगी टोपी पहने पुरुषों का समूह नीम के पेड़ के नीचे जुटा है और ऐसा लग रहा है कि वे किसी गंभीर राजनीतिक चर्चा में लीन है. असल में वे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के आगमन का इंतजार कर रहे हैं, जिन्हें कांग्रेस ने 33 साल बाद राजगढ़ लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है. समूह में चर्चा उफान पर होती है, तभी दिग्गी राजा चौपाल में पहुंचते हैं और वहां जुटी भीड़ को संबोधित करने से पहले स्थानीय देवता का आशीर्वाद लेने के लिए सीधे गांव के मंदिर जाते हैं.
दिग्विजय सिंह पहली बार 1984 में राजगढ़ सीट से चुनाव मैदान में उतरे थे और जीत भी हासिल की थी. लेकिन 1989 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. फिर 1991 में जनसंघ-भाजपा के विचारक प्यारेलाल खंडेलवाल के खिलाफ नजदीकी मुकाबले में उन्होंने फिर इस सीट पर कब्जा जमाया. दो साल बाद मुख्यमंत्री की भूमिका में आए तो उसके बाद भी जिले के मामलों और लोकसभा सीट की दशा-दिशा में नजर बनाए रहे. लेकिन 33 वर्षों में निर्वाचन क्षेत्र में बहुत कुछ बदल गया है, जिसमें रोजगार की बढ़ती मांग और जातिगत विभाजन जैसी उभरती चुनौतियां शामिल हैं. फिर दिग्विजय का मुकाबला दो बार के भाजपा सांसद रोडमल नागर से है, जो पिछली बार 4,31,000 वोटों के अंतर से जीते थे. चुनौतियों को देखते हुए खुद दिग्विजय भी इसे अपना अंतिम मुकाबला मान रहे हैं और नई रणनीति के साथ किस्मत आजमा रहे हैं. मोदी प्रभाव के मुकाबले के लिए अपने प्रचार अभियान को जमीनी स्तर केंद्रित करते हुए वे पंचायत-शैली अपना रहे हैं.
Bu hikaye India Today Hindi dergisinin May 15, 2024 sayısından alınmıştır.
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