"सभी व्यक्ति समान रूप से विवेक की स्वतंत्रता, धर्म की स्वतंत्रता, उसे मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के अधिकार के हकदार हैं। इस अनुच्छेद की कोई भी बात किसी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगी या राज्य को किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को नियामित या प्रतिबंधित करने वाला कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगी, जो धार्मिक अभ्यास से जुड़ी हो सकती है।"।'
"सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, (क) प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी खंड को धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और रखरखाव करने का; और (ख) धर्म से जुड़े मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार होगा।"" -अनुच्छेद 25, भारत का संविधान
इस प्रकार भारतीय राज्य ने धार्मिक समूहों को, चाहे वे अल्पसंख्यक हों या नहीं, सरकार के किसी भी हस्तक्षेप के बगैर अपने धर्म का पालन करने की आजादी दी है।
जब 1949 में भारत के संविधान का मसौदा तैयार किया जा रहा था, तब इन दो अनुच्छेदों के प्रमुख निहितार्थों में से एक धार्मिक कानूनों के कार्यान्वयन से संबंधित था। एक अन्य अनुच्छेद में कहा गया है कि, "राज्य समूचे भारत में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करेगा।" समान नागरिक संहिता का मतलब है कि भारत में सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक और अन्य व्यक्तिगत मामलों से जुड़े कानून के मसलों का नियमन करने के लिए देश में एक सामान्य कानून होना चाहिए, चाहे वे किसी भी धर्म के हों। अनुच्छेद 44 को शामिल करने को सरकार के कुछ सदस्यों द्वारा भारतीय समाज को 'एकीकृत' करने के रूप में देखा गया था, लेकिन मुसलमानों द्वारा इसे देश के मुख्य अल्पसंख्यक समूह की सांस्कृतिक पहचान को कमजोर करने और यहां तक कि इसे हाशिये पर डालने के प्रयास के रूप में देखा जाता है।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin August 07, 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber ? Giriş Yap
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin August 07, 2023 sayısından alınmıştır.
Start your 7-day Magzter GOLD free trial to access thousands of curated premium stories, and 9,000+ magazines and newspapers.
Already a subscriber? Giriş Yap
हिंदी सिनेमा में बलात्कार की संस्कृति
बलात्कार की संस्कृति को हिंदी फिल्मों ने लगातार वैधता दी है और उसे प्रचारित किया है
कहानी सूरमाओं की
पेरिस में भारत के शानदार प्रदर्शन से दिव्यांग एथलीटों की एक पूरी पीढ़ी को आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली
शेखपुर गुढ़ा की फूलन देवियां
शेखपुर गुढ़ा और बेहमई महज पचास किलोमीटर दूर स्थित दो गांव नहीं हैं, बल्कि चार दशक पहले फूलन देवी के साथ हुए अन्याय के दो अलहदा अफसाने हैं
महाशक्तियों के खेल में बांग्लादेश
बांग्लादेश का घटनाक्रम दक्षिण एशिया के भीतर शक्ति संतुलन और उसमें अमेरिका की भूमिका के संदर्भ में देखे जाने की जरूरत
तलछट से उभरे सितारे
फिल्मों में मामूली भूमिका पाने के लिए वर्षों कास्टिंग डायरेक्टरों के दफ्तरों के चक्कर लगाने वाले अभिनेता आजकल मुंबई में पहचाने नाम बन गए हैं, उन्हें न सिर्फ फिल्में मिल रही हैं बल्कि छोटी और दमदार भूमिकाओं से उन्होंने अपना अलग दर्शक वर्ग भी बना लिया
"संघर्ष के दिन ज्यादा रचनात्मक थे"
फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर के लगभग सभी कलाकार आज बड़े नाम हो चुके हैं, लेकिन उसके जरिये एक्टिंग की दुनिया में कदम रखने वाले फैसल मलिक के लिए संघर्ष के दिन कुछ और साल तक जारी रहे। बॉलीवुड में करीब 22 साल गुजारने वाले फैसल से राजीव नयन चतुर्वेदी की खास बातचीत के संपादित अंश:
ग्लोबल मंच के लोकल सितारे
सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल का दौर खत्म होने और मल्टीप्लेक्स आने के संक्रमण काल में किसी ने भी गांव-कस्बे में रह रहे लोगों के मनोरंजन के बारे में नहीं सोचा, ओटीटी का दौर आया तो उसने स्टारडम से लेकर दर्शक संख्या तक सारे पैमाने तोड़ डाले
बलात्कार के तमाशबीन
उज्जैन में सरेराह दिनदहाड़े हुए बलात्कार पर लोगों का चुप रहना, उसे शूट कर के प्रसारित करना गंभीर सामाजिक बीमारी की ओर इशारा
कांग्रेस की चुनौती खेमेबाजी
पार्टी चुनाव दोतरफा होने के आसार से उत्साहित, बाकी सभी वजूद बचाने में मशगूल
भगवा कुनबे में बगावत
दस साल की एंटी-इन्कंबेंसी और परिवारवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद जैसे समीकरण साधने के चक्कर में सत्तारूढ़ भाजपा कलह के चक्रव्यूह में फंसी