आम चुनाव के आखिरी चरण में 1 जून को मतदान के लिए तैयार पंजाब से ‘मैजिक’ गायब है। मैजिक के बजाय यहां बेरोजगारी, नशा, किसानों को एमएसपी की कानूनी गारंटी जैसे मुद्दे बहुत गहरे हैं। एमएसपी की गारंटी का मुद्दा पूरी तरह से गरम है। पार्टियों के चुनावी प्रचार के समानांतर सड़कों पर उतरे किसानों के आंदोलन की आंच से कोई दल अछूता नहीं है। उधर, आंदोलन पर सवाल खड़े करते हुए पंजाब भाजपा के अध्यक्ष सुनील जाखड़ कह रहे हैं कि किसान विरोधी दलों के महज मोहरे बनकर रह गए हैं।
हकीकत यह है कि आंदोलनकारी किसान भाजपा के उम्मीदवारों का भारी विरोध कर रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल के लिए श्री गुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी का मुद्दा अब भी गले की फांस बना हुआ है। सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) को 2022 के विधानसभा चुनाव की आधी-अधूरी गारंटियों को लेकर घेरा जा रहा है। नेताओं के पलायन से खाली हुई कांग्रेस 2019 के लोकसभा नतीजे (कुल 13 में से 8 सीटों पर जीत) दोहराने की जद्दोजहद में लगी है। 2019 में गठबंधन में अकाली दल ने दो और भाजपा ने दो सीटें जीती थी जबकि आप के खाते में एक संगरूर की सीट भगवंत मान ने जीती थी। इस बार पंजाब से किसी एक दल के लिए लोकसभा की डगर आसान नहीं है।
पहली दफा राज्य में बगैर किसी गठबंधन के चार बड़े दल कांग्रेस, अकाली दल, आप और भाजपा आमने-सामने हैं, इसलिए 4 जून को आ रहे नतीजे भी चौंकाने वाले हो सकते हैं। कोई भी बड़ा सियासी चेहरा जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है। भाजपा के कई दिग्गजों में कैप्टन अमरिंदर सिंह, सुनील जाखड़ और अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल सरीखे वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव लड़ने से तौबा की तो मैदान में उतरने से पहले कई ने जमकर पाले बदले हैं। कुल 13 लोकसभा सीटों में 6 सीटों पर बड़ी पार्टियों के ज्यादातर उम्मीदवार दल बदलू हैं। उनमें एक दर्जन से अधिक उम्मीदवार मंत्री, सांसद और विधायक भी रहे हैं। दल बदलू उम्मीदवारों से पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में विरोध के स्वर तेज होते जा रहे हैं, जिससे दल बदलुओं की साख दांव पर लगी है।
Bu hikaye Outlook Hindi dergisinin June 10, 2024 sayısından alınmıştır.
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