इस बार के लोकसभा चुनाव प्रचार में जो हलकापन देखने में आया उसे छिछोरापन कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी. हद तो यह भी थी कि राजद नेता तेजस्वी यादव के मांसमछली खाने तक को मुद्दा बनाने की कोशिश की गई. आम लोगों की दिलचस्पी पहले से ही इस आम चुनाव में नहीं थी, ऊपर से घटिया चुनावप्रचार ने उसे और उकता कर रख दिया. पहले ही चरण के कम मतदान से विपक्ष और खासतौर से सत्तारूढ़ भाजपा सहित सभी पार्टियां कम मतदान से सकते में आ गई थीं. लिहाजा, वोटर को लुभाने और मतदान बढ़ाने के लिए क्याक्या हथकंडे व टोटके नहीं अपनाए गए, यह बहुत जल्दी भूलने वाली बात नहीं है.
भाजपा को जब समझ आ गया कि धर्म, हिंदुत्व और राममंदिर का कार्ड उम्मीद के मुताबिक नहीं चल रहा है तो उस ने बारबार मुद्दे बदले उस के पास उपलब्धियों के नाम पर गिनाने को कुछ खास नहीं था तो ईडी गठबंधन के पास भी उसे घेरने के लिए आकर्षक मुद्दे नहीं थे. बेमन से वोट करते लोग चौकन्ने तब हुए जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यह कहना शुरू किया कि भाजपा अगर तीसरी बार सत्ता में आई तो संविधान नष्ट कर देगी.
इस से ऐसा लगा मानो जाने अनजाने में उन्होंने नरेंद्र मोदी और भाजपा की दुखती रंग पर हाथ रख दिया है. जिस का न केवल अतीत बल्कि भविष्य से भी गहरा संबंध है. इस के बाद आरक्षण पर घमासान मचा. दोनों ही गठबंधन पूरे प्रचार में एकदूसरे पर आरक्षण खत्म करने और संविधान बदलने का आरोप लगाते रहे.
400 पार का नारा लगा रहे नरेंद्र मोदी की बौखलाहट तब देखने लायक थी जिन्हें एक झटके में घुटनों के बल आते बारबार यह सफाई देनी पड़ी थी कि मोदी तो छोड़िए खुद बाबासाहेब अंबेडकर भी आ कर कहें तो भी कोई संविधान नहीं बदल सकता. उन्होंने कांग्रेस पर भीमराव अंबेडकर के अपमान और पीठ पर छुरा घोंपने का भी आरोप लगाया और 21 मई को तो पूरे नेहरू खानदान को लपेटे में यह कहते ले लिया कि हम नहीं बल्कि ये लोग बारबार संविधान में संशोधन करते रहे हैं. बकौल मोदी, पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान की पहली प्रति डस्टबिन में डाल दी थी क्योंकि उस पर धार्मिक चित्र लगे थे. इमरजैंसी के दौरान भी संविधान को डस्टबिन में डाल दिया गया था. इन आरोपों के जवाब में राहुल गांधी भी अपनी रट पर कायम रहे.
संविधान को ले कर आरोपप्रत्यारोप
Bu hikaye Sarita dergisinin June First 2024 sayısından alınmıştır.
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