परम पावन दलाई लामा और तिब्बत का नामोनिशान मिटाने पर चीन की कम्युनिस्ट ने 1959 कम्युनिस्ट सत्ता ने 1959 से हर वह हथकंडा अपनाया है, जिससे वहां बौद्ध धर्म का समूल नाश हो जाए। तब वर्तमान दलाई लामा के निवास, तिब्बती आस्था के केन्द्र पवित्र पोटाला पैलेस पर जबरन चढ़ आए चीनी सैनिकों की बौद्ध धर्म, तिब्बत और दलाई लामा के विरुद्ध उस वक्त शुरू हुई आक्रामकता हमेशा बढ़ती ही रही है। पूज्य दलाई लामा तबसे ही भारत में हिमाचल प्रदेश स्थित धर्मशाला में निर्वासित जीवन व्यतीत करते हुए तिब्बती संस्कृति और बौद्ध धर्म के संरक्षण में लगे हुए हैं। तिब्बतियों के लिए धर्मशाला किसी पतुली तीर्थ से कम नहीं है।
लेकिन अब तिब्बत, तिब्बत नहीं रह गया है। किसी भी अन्य चीनी शहर की तरह यहां चीनी प्रभुत्व सिर चढ़कर बोल रहा है। यहां के लगभग सभी महत्वपूर्ण बौद्ध मठों पर चीनी सत्ता का हुक्म चलता है। लामाओं को अब अपनी आस्था पर चलने की खुली छूट नहीं है। कितने ही लामा रातोंरात गायब कर दिए गए, जिनका फिर कभी पता नहीं चला। मठों में वरिष्ठ बौद्ध लामाओं, अवतारों की जयंती नहीं मनाई जा सकती। बौद्ध उत्सवों पर सरकारी शिकंजा कसा है। यहां की मूल आबादी, सांस्कृतिक पहचान और मूल्यों को बुरी तरह रौंद दिया गया है। अब वहां हर जगह 'हान' नस्ल के चीनी नजर आते हैं या संकरित नस्ल !
चीन ने तिब्बत में किस सुनियोजित तरीके से जनसांख्यिक परिवर्तन किया है, यह अब कोई छुपा तथ्य नहीं है। वहां के प्राकृतिक संसाधनों के अकूत दोहन के साथ ही, तिब्बत को अब चीनी सेना पीएलए की सैन्य छावनी की शक्ल दे दी गई है। पीएलए के सबसे महत्वपूर्ण पश्चिमी थियेटर कमांड का मुख्यालय बना दिया गया है तिब्बत में। कारण? भारत इसके ठीक बगल है, और बीच में अब कोई 'बफर' नहीं है। युद्ध होने की सूरत में, चीन तिब्बत से एक बड़ा मोर्चा खोलेगा और इसकी तैयारियों पर किसी को संदेह नहीं रहना चाहिए।
Bu hikaye Panchjanya dergisinin September 18, 2022 sayısından alınmıştır.
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