वसंत एकाएक वसंत नहीं होता, व पतझड़ भी एकाएक नहीं होता। दोनों सहयात्री की भांति हैं। प्रकृति में सबका अपना अलग-अलग वसंत होता है। कुछ वृक्षों में लाल-लाल किसलय जल्दी आ जाते हैं तो कुछ बहुत दिनों तक निपात खड़े रहते हैं। पर एक बात सभी वृक्षों और फूलों के लिए सत्य है कि पतझड़ वसंत के आगमन की आहट है। खाली होने और भरने की यह प्रक्रिया पूरे वसंत चलती रहती है।
हमारे यहां चैत्र और वैशाख को वसंत ऋतु माह माना गया है, परंतु इसके आने की आहट माघ पंचमी से शुरू हो जाती है और फाल्गुन पूर्णिमा तक आते-आते सब कुछ इतना भर जाता है कि छलकने लगता है। प्रकृति अपने सुंदरतम रूप में होती है और जब सौंदर्य चारों ओर पसरा हो तो शिव के माध्यम से सत्य को जानने की उत्कंठा बढ़ जाती है।
यह उत्कंठा ही है जो सभी के मन को एक विशेष प्रकार के उल्लास के रंग में, रंग डालती है। मन किसी अबूझ रहस्य की ओर भागने लगता है। आकाश का मौन चुपके-चुपके मन में उतर किसी भेद की ओर इशारा करने लगता है। नक्षत्रों से एक विशेष आभा छलकने लगती है। कोयल की कूक और चिड़ियों के कलरव में दिशाएं मानो मंत्र पाठ करती हुई किसी दिव्य शक्ति का आह्वान करने लगती हैं। चारों ओर बरसने लगता है एक अनहद निनाद। मंजरियों का रस, फूलों का सौरभ, भ्रमरों का प्रेम तो मलय समीर का धैर्य छलकने लगता है। कोलाहल के बीच भी यमुना तट का एकांत निर्मित हो जाता है और मन की गोपियों के प्रेम की गागर छलक पड़ती है। बच्चों में उल्लास, युवाओं में प्रेम तो बूढ़ों में सुधियां छलकने लगती हैं।
परमानंद की अवस्था
Bu hikaye Panchjanya dergisinin March 12, 2023 sayısından alınmıştır.
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वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
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