होली को लेकर आज भी इतना सम्मोहन क्यों है?
होली हमारी सांस्कृतिक परंपरा की देन है। सबको मिलाकर एक कर देती है, ऐसी ताकत है इसमें। जहां तक होली की बात है तो यह तो पूरे हिन्दुस्थान में मनाई जाती है और दुनिया के तमाम देशों में भी, जहां भारत के लोग रहते हैं। गायन की बात करें तो राधा-कृष्ण की होली तो बहुत लोग गाते हैं, जैसे वृंदावन की होली।
...और काशी की होली!
(जैसे उनकी आंखों में कोई फिल्म चलने लगी हो) हमारी काशी में भी खूब होली मनाई जाती थी। परंपरा ऐसी थी कि महिलाएं घर में पकवान बनाती थीं, और गाना-बजाना भी चलता रहता था । पुरुष सुबह से ही खूब रंग खेलते थे। और फिर शाम को शहनाई बजाते हुए पचासों की तादाद में इकट्ठे होकर दूसरे मोहल्ले में जाते थे होली मिलने। लोग अबीर लगाते थे, गले मिलते थे, हिन्दू-मुसलमान सभी। होली के रंग सबको ऐसा मिला देते थे कि हिन्दू-मुसलमान के बीच फर्क मालूम ही नहीं होता था।
अब कुछ तो वातावरण बदला है और कुछ लोगों के पास समय कम है, काम ज्यादा। सबको घर चलाने के लिए पैसे की जरूरत है। उसी के जुगाड़ में लोग खटते रहते हैं। फुर्सत बची ही नहीं। तो इस तरह काशी की जो होली पूरी दुनिया में मशहूर हुआ करती थी, उसमें अब बहुत कमी आ गई है।
बदलाव क्या आया है होली मनाने में?
Bu hikaye Panchjanya dergisinin March 12, 2023 sayısından alınmıştır.
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