वर्ष 1919 में बैसाखी के दिन अमृतसर में हुए जलियांवाला कांड के जैसा ही भयावह कांड दक्षिण भारत में 1948 में हुआ भैरनपल्ली गांव का नरसंहार है। अंतर मात्र इतना है कि जलियांवाला बाग में गोलियां अंग्रेजी हुकूमत द्वारा चलाई गई थीं और भैरनपल्ली में गोलियां चलाने वाले निजाम की निजी फौज के रजाकार थे।
हैदराबाद एक ऐसा रजवाड़ा था जिसका निजाम एक मुसलमान था परंतु राज्य में बहुमत हिंदुओं का था । निजाम हिंदुओं से नफरत करते थे। अपनी एक कविता में निजाम ने लिखा है: 'मैं पासबाने दीन हूं, कुफ्र का जल्लाद हूं।' अर्थात मैं इस्लाम का रक्षक हूं और हिंदुओं का भक्षक हूं । निजाम के अंतर्गत हैदराबाद में 13 प्रतिशत ही मुसलमान थे परंतु उच्च पदों पर 88 प्रतिशत मुसलमान थे। इसी तरह 77 प्रतिशत हाकिम मुसलमान थे। अफसरों में हिंदू ना के बराबर थे। हैदराबाद की आमदनी का 97 प्रतिशत हिंदुओं से वसूला जाता था। इसके बावजूद निजाम हिंदू विरोधी था। उसके हरम में 360 स्त्रियां थीं। उनमें से अधिकतम 'काफिर' अर्थात् गैर मुस्लिम थीं। उसके अधीनस्थ उसको खुश करने के लिए अफगानिस्तान से चुरा कर लाई गई 10-12 साल की गैर-मुस्लिम लड़कियां भी खरीद कर लाते थे।
मुसलमान निजाम पाकिस्तान में मिलना चाहता था। परंतु हैदराबाद पाकिस्तान से बहुत दूर था और चारों तरफ से भारत से घिरे द्वीप की भांति था। यह याद करने की जरूरत है कि 1933 में एक मुसलमान बुद्धिजीवी चौधरी रहमत अली द्वारा लिखे एक घोषणापत्र 'अब या कभी नहीं' में पाकिस्तान की स्थापना का विचार पहली बार रखा गया था। इसके उपरांत मुहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग ने 1940 में पाकिस्तान की औपचारिक मांग की थी। चौधरी रहमत अली के प्रकाशित विचारों में उस्मानिस्तान नाम के एक प्रांत का भी उल्लेख है, जो कि डेक्कन में पाकिस्तान के एक अंतःक्षेत्र के तौर पर प्रस्तावित किया गया था। रहमत अली ने उस्मानिस्तान नाम हैदराबाद के आखिरी निजाम उस्मान अली खान के सम्मान में दिया था।
Bu hikaye Panchjanya dergisinin November 13, 2022 sayısından alınmıştır.
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