■ 1984 के दंगे में पुलिस प्रशासन की संवेदनहीनता रही, इसे आप कैसे देखते हैं?
देखिए, लगभग 190 मामले मैंने दोबारा नहीं, बल्कि तिबारा छानबीन के लिए भेजे थे। एसआईटी पहले से गठित थी । एसआईटी ने इन केसों के बारे में यह रिपोर्ट दी थी कि इनमें ने दोबारा किसी प्रकार की कोई संभावना नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय में दूसरे पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि वे इस रिपोर्ट से संतुष्ट नहीं हैं। तब सर्वोच्च न्यायालय ने मेरी अध्यक्षता में एसआईटी बनाई ताकि इन मामलों को फिर से एक बार देखें। हमारी कमेटी ने प्राथमिकी नंबर, थाना लिखकर अखबारों में विज्ञापन दिया कि कोई गवाह, कोई भी व्यक्ति इन मामलों के बारे में किसी प्रकार की जानकारी रखता है तो वह आकर एसआईटी को अपना बयान दे सकता है। अगर नहीं आ सकता तो लिखित भेज दे, शपथपत्र भेद दे। हमें पत्र लिखें और हम उसका संज्ञान लेंगे । लेकिन कोई भी व्यक्ति इस मामले में गवाही देने सामने नहीं आया । यही रिपोर्ट पिछली एसआईटी ने भी दी थी। इससे पहले शायद यही कहकर इन मामलों को बंद कर दिया गया था कि इनमें कोई गवाह नहीं है। इनमें से बहुत मामले ऐसे थे जिनमें ट्रायल हो चुका था, फैसला आ चुका था। लेकिन फुलका जी एवं अन्य वकील इससे संतुष्ट नहीं थे ट्रायल के निष्कर्ष से।
इसके बाद मैंने उन मामलों का अध्ययन किया। अध्ययन के बाद मैंने निष्कर्ष दिया कि इसमें प्रथम तो पुलिस ने बड़े गैरजिम्मेदाराना ढंग से काम किया। फिर उसके बाद अभियोजन पक्ष ने इन मामलों के साथ अन्याय किया। और फिर ट्रायल के लिए के ये मामले न्यायपालिका में गए तो वहां न्यायपालिका ने भी इनके साथ अन्याय किया। इसमें तीनों अंगों की विफलता थी। मेरी अनुशंसा ये थी कि जिन मामलों में बरी कर दिया गया है, उनमें काफी गवाही थी और उन गवाहों को जजों ने न तो ढंग से देखा, न पढ़ा और इस सोच के साथ कि हमें तो बरी करना ही है, एक यांत्रिक ढंग से इन मुलजिमों को बरी कर दिया। गवाह गवाही दे रहा है, तो कहा कि हम विश्वास नहीं करते और जहां गवाह ने विश्वसनीय गवाही दी, वहां ये कहकर बरी कर दिया कि प्राथमिकी दर्ज करने में बहुत देरी हुई।
Bu hikaye Panchjanya dergisinin November 27, 2022 sayısından alınmıştır.
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रुद्रपुर स्थित दूधिया बाबा कन्या छात्रावास में छात्राओं को निःशुल्क शिक्षा के साथ-साथ संस्कार और स्वावलंबन का पाठ पढ़ाया जा रहा। इस अनूठे छात्रावास के कार्यों से अनेक लोग प्रेरणा प्राप्त कर रहे
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वामपंथियों ने छत्रपति शिवाजी की जयंती पर भाग्यनगर में उनका पोस्टर लगाया, तो दिल्ली के जेएनयू में इन लोगों ने शिवाजी के चित्र को फाड़कर फेंका दिया। इस दोहरे चरित्र के संकेत क्या हैं !
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अरविंद केजरीवाल सरकार की 'कट्टर ईमानदारी' का ढोल फट चुका है। उनकी कैबिनेट के 6 में से दो मंत्री सलाखों के पीछे। शराब घोटाले में सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय की जांच की आंच कभी भी केजरीवाल तक पहुंच सकती है
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आनंद का उत्कर्ष फाल्गुन
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नागालैंड की जीत और एक मजबूत भाजपा
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