सर्वविदित है कि वसंतपंचमी माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। दो कारणों से इसका विशेष महत्व है। पहला, यह सरस्वती पूजन का पर्व है और दूसरा, इसे वसंत ऋतु का प्रवेश द्वार माना जाता है। मां सरस्वती विद्या, ज्ञान और समस्त कलाओं की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा वसंत ऋतु के नवसृजन और नए संवत्सर की प्रथम ऋतु होने के कारण, दोनों ही अत्यन्त महत्वपूर्ण प्रसंग हैं।
प्रश्न है कि वसंतपंचमी से जुड़े इन दोनों प्रसंगों में क्या कोई पारस्परिक संबंध है ?
एक और विचारणीय प्रश्न हमारे सामने आता है कि भारतीय कालगणना की दृष्टि से चैत्र एवं वैशाख वसंत ऋतु के मास हैं जबकि प्रकृति में वसंत ऋतु के चिह्न फाल्गुन मास में ही दिखाई पड़ने लगते हैं। और यह वसंतपंचमी तो उससे भी बहुत पहले माघ मास में आ जाती है।
सरस्वती पूजन एवं वसंतागमन का समवेत पर्व
प्रश्न उठता है कि वसंतपंचमी को शिशिर ऋतु में मनाए जाने की क्या प्रासंगिकता है? शिशिर ऋतु के भी पूर्वार्ध में!
माघ और फाल्गुन दोनों शिशिर ऋतु के महीने हैं। भारतीय परंपरा में छहों ऋतुओं का मासिक क्रम इस प्रकार है-
चैत्र - वैशाख में वसंत, जेष्ठ-आषाढ़ में ग्रीष्म, श्रावण-भाद्रपद में वर्षा, आश्विन-कार्तिक में शरद, मार्गशीर्ष - पौष में हेमंत और माघ-फाल्गुन मास में शिशिर।
भारतीय वाड्मय में इस विषय पर कोई सुस्पष्ट उत्तर नहीं मिलता कि वसंतपर्व, वसंत ऋतु से लगभग चालीस दिन पूर्व क्यों मनाया , जाता है ?
यह अनुमान मात्र है कि अतिप्राचीन काल में कभी माघ और फाल्गुन मासों में ही वसंत के चिह्न प्रकट होने लगे होंगे और यह पर्व उसी कालखण्ड का स्मृतिचिह्न होगा। यह भी संभव है कि वसंत आगमन के चिह्न भारतवर्ष के किसी भूभाग में चैत मास लगने के में पहले ही दिखाई देने से वहां यह वसंत पर्व मनाया जाने लगा होगा, जो अद्यावधि निरंतर बना हुआ है। इधर आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ सुश्रुत संहिता में एक समांतर कालगणना का उल्लेख मिलता है जिसमें फाल्गुन और चैत्र मास को वसंत ऋतु के अन्तर्गत माना गया है। इस प्रकार वसंत ऋतु वर्तमान कालगणना से एक महीने पूर्व खिसक आती है।
Bu hikaye Panchjanya dergisinin 05 February 2023 sayısından alınmıştır.
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